scorecardresearch
Monday, 23 September, 2024
होमदेशस्वतंत्रता सेनानियों का गांव सामूहिक रूप से नोटा दबाएगा

स्वतंत्रता सेनानियों का गांव सामूहिक रूप से नोटा दबाएगा

Text Size:

पिथौरागढ़ (उत्तराखंड), 31 जनवरी (भाषा) लिंक रोड की अपनी पुरानी मांग पूरी नहीं होने से प्रशासन से नाराज उत्तराखंड के चंपावत विधानसभा क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों के गांव आम खर्क के लगभग 25 परिवारों ने 14 फरवरी को मतदान के दौरान सामूहिक रूप से नोटा दबाने का फैसला लिया है।

गांव के निवासियों ने बताया कि वे 2007 से 1500 मीटर लिंक रोड के निर्माण की मांग कर रहे हैं लेकिन परियोजना को जिला योजना में शामिल किए जाने के बावजूद अब तक इस दिशा में कुछ नहीं किया गया है।

लिंक रोड के निर्माण से गांव टनकपुर-चंपावत राजमार्ग से जुड़ जाएगा और इससे ग्रामीणों की कई समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

गांव की एक महिला गंगा देवी ने कहा, ‘‘जब भी चुनाव आते हैं, हमें विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से आश्वासन मिलता है कि निर्वाचित होने के बाद वे सड़क का निर्माण करवा देंगे। लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद वे सभी बातें भूल जाते हैं। हमारे पास नोटा का सहारा लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।’’

गांव की एक अन्य महिला तारा देवी ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों का गांव होने के बावजूद आम खर्क शिक्षा, चिकित्सा और बैंकिंग सुविधाओं से वंचित है।

चंपावत जिले के स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के अध्यक्ष महेश चौराकोटी ने कहा, ‘‘सड़क के अभाव में ग्रामीणों को मामूली चिकित्सा लेने के लिए भी टनकपुर पहुंचने हेतु 25 किमी और श्यामलताल पहुंचने के लिए लगभग पांच किमी की दूरी तय करनी पड़ती है।’’

उन्होंने बताया कि राम चंद्र चौराकोटी, बेनीराम चौराकोटी, बच्ची राम चौराकोटी और पदमदत्त चौराकोटी सहित चार गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानियों का जन्म इस गांव में हुआ था और उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अपना योगदान दिया था।

चौराकोटी ने कहा कि सड़क और बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण 65 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण गाँव से पलायन कर गए हैं। उन्होंने बताया कि राज्य के गठन से पहले कुल 71 परिवारों में से अब केवल 25 परिवार ही गांव में बचे हैं।

लिंक रोड नहीं होने से ग्रामीणों की दिन-प्रतिदिन की समस्याओं को भी दूर करने में बहुत समय लग जाता है।

उन्होंने कहा, ‘‘गांव में बिजली आपूर्ति में मामूली खराबी आने पर भी हमें इसे ठीक करने के लिए तकनीशियन का महीनों इंतजार करना पड़ता है।’’

भाषा सं दीप्ति अर्पणा

अर्पणा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments