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Friday, 15 November, 2024
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कर्मचारी चयन आयोग की नियुक्ति नियमावली ‘असंवैधानिक’ प्रतीत हो रही-न्यायालय

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रांची, 27 जनवरी (भाषा) झारखंड उच्च न्यायालय ने आज राज्य सरकार द्वारा झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) की नियुक्ति नियमावलियों में ‘मनमाना बदलाव’ कर सरकारी पदों पर आनन फानन में नियुक्ति करने के प्रयासों को जोरदार झटका देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया यह संशोधित नियमावली ‘असंवैधानिक’ प्रतीत हो रही है ।

अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुये और इस नियमावली को देख कर प्रतीत होता है कि राज्य सरकार सामान्य वर्ग के छात्रों को झारखंड से बाहर जाकर पढ़ाई करने ही नहीं देना चाहती है, ऐसे में क्यों न राज्य में फिलहाल सभी तरह की नियुक्तियों पर रोक लगा दी जाये?

झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डा. रवि रंजन एवं न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद की पीठ ने आज झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) की नियुक्ति नियमावली को चुनौती देने वाली रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘प्रथम दृष्ट्या यह संशोधित नियमावली असंवैधानिक प्रतीत हो रही है। नियमावली को देख कर प्रतीत होता है कि राज्य सरकार सामान्य वर्ग के छात्रों को झारखंड से बाहर जाकर पढ़ाई करने नहीं देना चाहती है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘नियमावली देख कर प्रतीत होता है कि राज्य सरकार सामान्य वर्ग के छात्रों को राज्य में ही रोक कर रखना चाहती है, जबकि आरक्षित वर्ग के छात्रों को इसकी छूट दी गई है। इस तरह के प्रावधान को वैध नहीं माना जा सकता है।’’

सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार की ओर से अब तक जवाब दाखिल नहीं किए जाने पर कड़ी नाराजगी जताई और पूछा कि सरकार की लापरवाही को देखते हुए क्यों न सभी प्रकार की नियुक्तियों पर रोक लगा दी जाये?

अपना पक्ष रखते हुए मामले में प्रार्थी की ओर से कहा गया कि सरकार जवाब दाखिल करने की बजाय नई नियमावली के तहत नियुक्तियों के लिए विज्ञापन जारी कर रही है। अदालत ने पूछा कि क्यों नहीं सभी नियुक्तियों पर ही रोक लगा दी जाए?

सरकार की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए अंतिम मौका देने का आग्रह किया गया जिसे अदालत ने स्वीकार करते हुए मामले की अगली सुनवाई आठ फरवरी को निर्धारित की है।

इससे पहले अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से इस नियमावली को बनाने के पीछे की मंशा समझ में नहीं आ रही है। प्रार्थी की अधिवक्ता अपराजिता भारद्वाज ने अदालत को बताया कि एक दिसंबर 2021 को अदालत ने निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस मामले में मूल संचिका सहित अपना जवाब दाखिल कर दे। मामले में सरकार ने मूल संचिका दाखिल कर दी लेकिन अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया गया है। इस बीच जेएसएससी की ओर से नियुक्ति के लिए चार विज्ञापन जारी कर दिये गये।

इसकी वजह से प्रार्थी सहित अन्य लोग इन नियुक्तियों में आवेदन नहीं कर पा रहे हैं। इसपर अदालत ने कहा कि राज्य में नियुक्ति को लेकर अफरातफरी मची हुई है और कभी नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया जा रहा है तो कभी नई नियमावली के नाम पर विज्ञापन को रद्द करने का खेल चल रहा है।

अदालत ने कहा कि जब राज्य में नियुक्तियों के लिए विज्ञापन निकाला जा रहा है तो इस मामले में जवाब देने में देरी की जाए, यह कहां से उचित है?

इस मामले में याचिकाकर्ता रमेश हांसदा और कुशल कुमार ने संशोधित नियमावली को असंवैधानिक बताते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की है।

याचिका में कहा गया है कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से दसवीं और बारहवीं उत्तीर्ण करने वाले अभ्यर्थियों को ही परीक्षा में शामिल होने की छूट देने की शर्त रखी गई है। इसके अलावा 14 स्थानीय भाषाओं में से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया सहित 12 अन्य भाषाओं को स्थानीय भाषा की सूची में शामिल किया गया है।

याचिका में कहा गया है कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने को अनिवार्य किया जाना संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि वैसे अभ्यर्थी जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है।

इसलिए याचिकाकर्ता ने अदालत से मांग की है कि जेएसएससी के नई नियमावली में निहित इन दोनों प्रावधानों को अविलंब निरस्त किया जाए।

भाष इन्दु

रंजन

रंजन

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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