अक्टूबर 2016 से सैन्य बलों के लिए नाजुक मामला निपटा, सैन्य अधिकारियों की उनके समकक्ष नागरिक अधिकारियों से वरीयता रहेगी बरकरार.
नयी दिल्लीः सैन्य बलों के लिए जो एक तरह से दुखती रग जैसा मसला था, उसे सुलझाने की पहलकदमी करते हुए रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन ने उस विवादास्पद आदेश को वापस लेने को कहा है जिसमें शायद सैन्य बलों का उनके समकक्ष नागरिक अधिकारियों की तुलना में रैंक कम होने का खतरा था.
ताज़ा निर्देशों के तहत, मंत्री ने सैन्य अधिकारियों की उनके समकक्ष नागरिक अधिकारियों की तुलना में वरीयता बरकरार रखी है और आधिकारिक तौर पर अक्टूबर 2016 के उस आदेश को वापस ले लिया गया है, जिस पर हंगामा बरपा था.
सैन्य बलों का विरोध यह था कि सरकार व्यवस्थित तरीके से इसके अधिकारियों का स्टेटस कम कर रही है, जैसे मान लिया जाए कि मंत्रालय का एक प्रिंसिपल डायरेक्टर सेना के मेजर-जनरल के बराबर सरकारी नज़र में दर्ज हो. 2016 के आदेश के पहले एक प्रिंसिपल डायरेक्टर को ब्रिगेडियर की निचली रैंक के बराबर समझा जाता.
2016 के साथ ही, सीतारमन ने सभी स्थानीय पदनाम भी खत्म कर दिए हैं, जो नागरिक और सेवा अधिकारियों को सेवा-मुख्यालय पर दिए गए थे. यह सैन्य बलों की सबसे बड़ी आपत्ति को खत्म कर देगा कि जो नागरिक (सिविलियन) उनसे पहले कनिष्ठ थे, अचानक ही वरीयता-क्रम में ऊपर आ गए.
2016 के पहले की व्यवस्था को लागू करने के साथ ही मंत्री ने आदेश दिया कि नागरिक काडर का पुनर्गठन भी केंद्रीय कैबिनेट की अनुशंसा के बाद किया जाएगा.
वरीयता क्रम का यह मसला सेवा-मुख्यालय में काम को प्रभावित कर रहा था, क्योंकि सैन्य बलों ने नागरिक अधिकारियों की वरिष्ठों के तौर पर नियुक्ति को स्वीकारा नहीं था. ऐसी कई नियुक्तियों की चिट्ठियों- प्रिंसिपल डायरेक्टर या संयुक्त निदेशक मान लीजिए- को सैन्य बलों ने तवज्जो नहीं दी और सामान्य कामकाज प्रभावित हो रहा था.
सैन्य बलों के पांच हिस्सो में एडिशनल डायरेक्टर जेनरल (अतिरिक्त महानिदेशक) के पद सृजित करने का भी फैसला वापस ले लिया गया है. सीतारमन ने साफ किया कि किसी भी तरह का नया पद सेवा-मुख्यालय से बात करने के बाद ही सृजित होगा.
इससे पहले, मंत्रालय ने एक एडिशनल सेक्रेटरी की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति को मामले का अध्ययन करने और सुझाव देने को नियुक्त किया था.