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Friday, 22 November, 2024
होमराजनीति'गोलियां दागने, जमीन हड़पने से लेकर शराबखोरी तक'- नीतीश सरकार में खत्म होने का नाम नहीं ले रहे विवाद

‘गोलियां दागने, जमीन हड़पने से लेकर शराबखोरी तक’- नीतीश सरकार में खत्म होने का नाम नहीं ले रहे विवाद

कुछ लोगों का आरोप है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ से अब ऐसे विवादों पर किसी प्रतिक्रिया में काफी समय लगता है, खासकर जबसे भाजपा गठबंधन में वरिष्ठ सहयोगी बनकर उभरी है. हालांकि, जदयू ने इस पर मुख्यमंत्री का बचाव किया है.

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पटना: बिहार के पर्यटन मंत्री नारायण प्रसाद साह के बेटे पर पिछले रविवार को हवाई फायरिंग करने का एक मामला दर्ज किया गया है. उसने पश्चिम चंपारण में अपने परिवार के स्वामित्व वाले एक बाग में खेल रहे बच्चों के साथ-साथ कुछ ग्रामीणों को तितर-बितर करने के लिए हवा में गोलियां चला दी थी.

हालांकि, साह और उनके बेटे नीरज कुमार उर्फ बबलू ने किसी भी तरह गोलीबारी की बात से इनकार किया है और इस घटना को कथित तौर पर अतिक्रमण की कोशिश करार दिया है.

यह ताजा मामला है जब बिहार की नीतीश कुमार सरकार के मंत्रियों को लेकर किसी तरह का विवाद फिर सुर्खियों में छाया है.

पिछले साल बिहार के उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता तारकिशोर प्रसाद पर कटिहार जिले में अपने रिश्तेदारों को सरकारी ठेके दिलाने का आरोप लगा था (हालांकि, उन्होंने आरोपों से इनकार किया है).

नवंबर 2020 में भाजपा के मंत्री राम सूरत राय के परिवार की तरफ से हाजीपुर में चलाए जा रहे एक स्कूल में कथित तौर पर शराब की बोतलें मिलने के मामले में तूल पकड़ लिया था. (हालांकि, मंत्री ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया).

वहीं, पिछले साल जून में उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता रेणु देवी के भाई रवि कुमार को बेतिया में कथित तौर पर एक जमीन पर अवैध ढंग से कब्जा करने में शामिल पाया गया था (मंत्री ने दावा किया कि वह कई वर्षों से अपने भाई के संपर्क में नहीं थीं).

2020 में ही खाद्य और उपभोक्ता संरक्षण मंत्री और जदयू नेता लेशी सिंह के भतीजे आशीष सिंह पर पूर्णिया में दो राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की हत्या का आरोप लगा. स्थानीय पुलिस को नेता के भतीजे को गिरफ्तार करने में दो महीने से अधिक का समय लगा.

मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार ने एक सुशासन पसंद नेता की छवि बनाई है, जिसे अपने सहयोगी नेताओं के संदिग्ध गलत कामकाज कतई बर्दाश्त नहीं हैं. ऐसे में विवादों का सिलसिला सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है. हालांकि, जदयू सदस्य इस पर जोर देते हैं कि इस सबमें पार्टी का ‘ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा’ है.

जदयू एमएलसी नीरज कुमार कहते हैं, ‘अनंत कुमार सिंह (नीतीश के पूर्व करीबी) को इस तथ्य के बावजूद गिरफ्तार किया गया था कि वह उस समय जदयू में थे. राजद विधायक राज बल्लभ यादव को तब भी बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया जबकि राजद उस समय सहयोगी पार्टी थी और राजद के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के खिलाफ भी कार्रवाई की गई थी.’

उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि साह के बेटे के मामले में भी सोमवार रात ग्रामीणों की शिकायत पर एफआईआर दर्ज हुई है और डीएसपी रैंक के एक अधिकारी मामले की जांच कर रहे हैं. जांच के बाद उपयुक्त कार्रवाई की जाएगी.’


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नीतीश की चुप्पी पर उठ रहे सवाल

नीतीश कुमार ने बतौर मुख्यमंत्री अपने सहयोगियों के संदिग्ध गलत कार्यों को कतई बर्दाश्त न करने वाले राजनेता की छवि बनाई है.

2018 में नीतीश ने जदयू नेता और समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा से इस्तीफा मांग लिया, जब यह पता चला था कि उनके पति मुजफ्फरपुर आश्रय गृह में अक्सर आते थे, जहां नाबालिग लड़कियों का कथित रूप से यौन शोषण होता था.

उसी वर्ष जब केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे के बेटे अरिजीत शाश्वत ने भागलपुर में कथित तौर पर सांप्रदायिक तनाव भड़काया, तो नीतीश कुमार ने जोर देकर कहा कि उन्हें आत्मसमर्पण कर देना चाहिए.

2017 में राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन वाली जदयू सरकार के दौरान नीतीश ने सार्वजनिक तौर पर तत्कालीन उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से रेलवे होटल ट्रांसफर स्कैम में सीबीआई द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों पर जवाब देने को कहा. बाद में यही मामला सरकार गिरने का कारण भी बना.

कुछ लोगों का आरोप है कि इस तरह के विवादों पर नीतीश की प्रतिक्रिया अब अपेक्षाकृत देरी से आती है, खासकर तबसे जबसे भाजपा 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद गठबंधन में वरिष्ठ सहयोगी बनकर उभरी है. दिप्रिंट से बातचीत के दौरान जदयू के एक नेता ने भाजपा की तरफ से की जाने वाली हालिया आलोचनाओं को लेकर नीतीश की ‘चुप्पी’ पर भी सवाल उठाया.

जदयू के एक वरिष्ठ सांसद ने कहा, ‘यह बात अब स्पष्ट तौर पर नज़र आने लगी है कि गठबंधन में जदयू छोटे भाई की भूमिका में है. भाजपा नेता जदयू के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बयान दे रहे हैं और मुख्यमंत्री इस पर कुछ नहीं कर सकते.’

पटना यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर एन.के. चौधरी कहते हैं, ‘मुख्यमंत्री की चुप्पी इस ओर इशारा करती है कि शासन पर उनकी पकड़ कमजोर हो गई है और उनकी राजनीतिक प्राथमिकता अब सिर्फ सत्ता में बने रहना है.’

उन्होंने कहा, ‘जब मंत्रियों के रिश्तेदार अवैध गतिविधियों में लिप्त होते हैं और उन्हें सजा नहीं मिलती, तो सुशासन का दावा ध्वस्त हो जाता है. 2005 में सत्ता में आने पर यह नीतीश कुमार की पहचान हुआ करती थी. यह (बदलाव) न केवल नीतीश कुमार के लिए बल्कि राज्य के लिए भी दुखद है. बिहार अकेला राज्य नहीं है जहां मंत्रियों के रिश्तेदार अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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