नयी दिल्ली, 25 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के टीकाकरण और टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभाव (एईएफआई) की स्थिति में नजर रखने की आवश्यकता को लेकर दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) द्वारा दिए गए सुझावों पर सुविचारित रुख अपनाना केंद्र पर छोड़ दिया।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि अदालत इस तथ्य से अवगत है कि डीसीपीसीआर की ओर से जो सुझाव दिए गए हैं, वे नीति के मुद्दे हैं, लेकिन ये एक वैधानिक निकाय से आये हैं और इसलिए उस पर केंद्र द्वारा सहयोग की उसी भावना के साथ विचार किया जा सकता है, जैसा कि याचिका की सुनवाई के दौरान दिखाया गया है।
इसमें कहा गया है कि डीसीपीसीआर द्वारा दिए गए तीन सुझावों पर निस्संदेह दिमाग लगाने के साथ ही क्षेत्र के विशेषज्ञों के ज्ञान के उपयोग की आवश्यकता होगी और अदालत विशेषज्ञों की मदद के बिना निर्णय लेने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में नहीं हो सकती है।
पीठ ने कहा, ‘हमारा मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा दिखाए गए झुकाव को देखते हुए यह उचित होगा कि केंद्र के हलफनामे में निर्धारित तीन विचारों को संबंधित विशेषज्ञ समूह के समक्ष विधिवत रखा जाए, ताकि सुझावों पर नीति निर्माण के उचित स्तर पर विचार किया जा सके।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस कार्यवाही को आगे बढ़ाने में डीसीपीसीआर द्वारा उठाए गए कदमों के साथ ही जिस जिम्मेदारी की भावना से ये सुझाव दिये गए और इस सुनवायी के दौरान डीसीपीसीआर और केंद्र सरकार दोनों द्वारा जिस तरह से इस पर चर्चा की गई, वह उसकी सराहना करता है।
पीठ ने कहा, ‘हम सुझावों का मूल्यांकन करने के बाद विचार करना भारत सरकार पर छोड़ते हैं, इसके साथ ही हम याचिकाओं का निपटारा करते हैं।’’
भाषा अमित दिलीप
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