नयी दिल्ली, 25 जनवरी (भाषा) धनशोधन निवारण कानून (पीएमएलए) के कतिपय प्रावधानों की व्याख्या से संबंधित मुद्दों पर सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय में यह सवाल रखा गया कि क्या किसी व्यक्ति को उसके खिलाफ मामले की जानकारी दिये बगैर आपराधिक कार्रवाई शुरू की जा सकती है।
न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि शीर्ष अदालत को पेश मामले में इस सवाल पर भी विचार करना होगा। सिब्बल धनशोधन कानून के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस कर रहे थे।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने पीठ से कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में, आपराधिक जांच से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया खुली होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति को यह बताए बिना बुलाया जा रहा है कि वह एक आरोपी है या गवाह, एक और पहलू है जिसे अदालत को जांचना होगा। सिब्बल ने कहा, ‘‘पहला सवाल जिस पर विचार करना होगा – क्या कानून में कोई प्रक्रिया हो सकती है कि किसी व्यक्ति को उसके खिलाफ मामले की जानकारी दिये बगैर आपराधिक कार्रवाई शुरू की जा सकती है।’’
दलीलों के दौरान, पीठ ने कहा कि भ्रष्ट तरीकों से अर्जित धन का पता लगाने के लिए कानून में संशोधन करना होगा।
सिब्बल ने कहा कि वह इस पर विवाद नहीं कर रहे हैं और उनकी दलीलें संवैधानिक मुद्दे पर हैं।
वरिष्ठ वकील ने पीठ से कहा, ‘‘ऐसी गतिविधियों में शामिल लोगों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए लेकिन कानून के तहत आरोपी को कुछ सुरक्षा दी जाती है।’’
पीठ 27 जनवरी को बहस जारी रखेगी। पीठ ने इस बात पर गौर किया कि हाल में एक राज्य में जहां चुनाव चल रहे हैं और वहां छापे के दौरान भारी मात्रा में नकदी बरामद की गई है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पहले पीठ को बताया था कि इस मामले में 200 से अधिक याचिकाएं हैं और कई गंभीर मामलों में अंतरिम रोक लगाई गई है, जिसके कारण जांच प्रभावित हुई है।
इनमें से कुछ याचिकाओं के जरिये पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी गई है।
भाषा
देवेंद्र माधव
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