नई दिल्ली : आजाद समाज पार्टी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जमीनी मुद्दों पर खुली बहस के लिए चुनौती देना चाहते हैं, और उन्हें पूरा विश्वास है कि वे ही जीतेंगे – अब उन्हें बस किसी एक समाचार चैनल द्वारा इसकी तारीख तय किये जाने की प्रतीक्षा हैं’.
दिप्रिंट से बात करते हुए, भीम आर्मी के नेता और आज़ाद समाज पार्टी के प्रमुख ने यह भी कहा था कि आदित्यनाथ द्वारा आगामी राज्य चुनावों में चुनाव लड़ने के लिए जिस भी निर्वाचन क्षेत्र को चुना जायेगा -भले ही वह मथुरा या अयोध्या क्यों न हो – आज़ाद उनके खिलाफ वहीँ से आमने-सामने की भिड़ंत के लिए तैयार हैं’. आदित्यनाथ ने अंततः गोरखपुर को चुना, और अब आजाद वहीँ से उनके खिलाफ चुनाव लड़ेंगे’.
वे कहते हैं, ‘मैं जमीनी मुद्दों पर योगी जी के साथ बहस करने का इंतजार कर रहा हूं, तब लोगों को समझ आ जायेगा कि इस काम के लिए सही आदमी कौन है. मुझे पूरा विश्वास है कि वे मुझे हरा नहीं पाएंगे’.’
अपने गले में गहरे नीले रंग का दुपट्टा पहने हुए और अपनी आगामी वर्चुअल रैलियों और चुनाव अभियान के लिए रोडमैप तैयार करते हुए, आजाद कहते हैं, ‘एक वक्त आएगा जब योगी को उनके सत्ता के अहंकार के कारण निर्दोष लोगों पर की गई ज्यादतियों का सामना करना होगा.’
अम्बेडकरवादी संगठन भीम आर्मी के संस्थापकों में से एक रहे आजाद ने साल 2020 में आजाद समाज पार्टी (एएसपी) की शुरुआत की थी. आगामी विधानसभा चुनाव के साथ उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में पदार्पण करने वाली एएसपी ने इस रविवार को 35 अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन की घोषणा की थी.
एएसपी ने समाजवादी पार्टी (सपा) – जो इस चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सामने मुख्य प्रतिद्वंदी मानी जा रही है – के साथ गठबंधन को खारिज कर दिया, क्योंकि, आजाद के अनुसार, सपा के साथ चली एएसपी के गठबंधन वाली व्यापक बातचीत सीटों की कम संख्या का प्रस्तवा दिए जाने के कारण टूट गई थी. हालांकि, उन्होंने कांग्रेस के साथ किसी चुनाव-बाद गठबंधन की संभावना से इंकार नहीं किया.
आजाद ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) पर भी निशाना साधा और दावा किया कि इसके संस्थापक कांशी राम की विरासत – जिस पर एएसपी भी अपना दावा करती है – की ‘हत्या’ की जा रही है.
योगी को चुनौती
आजाद ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा पेश किये गए उस उदहारण की नक़ल करने की कोशिश है जब केजरीवाल ने 2013 में अपने चुनावी पदार्पण के दौरान नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को चुनौती दी थी और उन्हें हराया भी था’.
आजाद ने कहा, ‘मैं काफी समय से कहता आ रहा हूं कि मुख्यमंत्री जहां से भी चुनाव लड़ेंगे मैं भी वहीँ से लडूंगा. आदित्यनाथ ने (सीट के बारे में) बहुत देर से फैसला किया – पहले मथुरा, फिर अयोध्या का नाम आया, और फिर वे अपने सुरक्षित क्षेत्र गोरखपुर चले गए. लेकिन गोरखपुर की जनता उनकी सरकार की तानाशाही, गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार के बारे में भली-भांति जानती है’. अपनी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद से मुझे नई सरकार के लिए 30,000 से अधिक समर्थन पत्र मिले हैं.’
उन्होंने कहा, ‘अगर योगी आदित्यनाथ अयोध्या या मथुरा से चुनाव लड़ने का फैसला करते तो मैं वहां से भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार था.’
यह पूछे जाने पर कि वह आदित्यनाथ के खिलाफ इस तरह की आमने-सामने वाले लड़ाई के लिए इस तरह क्यों अड़े हैं, आजाद ने कहा कि यह एक स्वाभाविक कारवाई है क्योंकि मुख्यमंत्री इस राज्य में भाजपा के सबसे मजबूत नेता हैं और वह खुद एएसपी के सबसे मजबूत नेता हैं.
उन्होंने इस बार पर भी जोर दिया कि वह आदित्यनाथ को वॉकओवर देने के लिए एक कमजोर विपक्षी नेता को मैदान में नहीं उतारना चाहते थे.
अंत में, मुख्यमंत्री ने गोरखपुर से चुनाव लड़ने का फैसला किया, जिसे आजाद ने उनके लिए ‘सुरक्षित सीट’ बताया, क्योंकि आदित्यनाथ 1998 से 2017 तक लगातार पांच बार यहां से सांसद रहे हैं. हालांकि, आजाद ने इस तथ्य की ओर भी इशारा किया कि 1971 में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह को गोरखपुर से चुनाव हारने के बाद अपने पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था’.
उन्होंने कहा, ‘गोरखपुर का एक इतिहास यह भी है.’
पार्टी का यूपी में चुनावी पदार्पण
उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में आजाद समाज पार्टी की यह पहली पारी होगी. आजाद ने इस रविवार को ‘सामाजिक परिवर्तन मोर्चा’ नाम से एक मोर्चे के तहत 35 अन्य छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन की घोषणा की, जो आगामी यूपी चुनावों में 403 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है.
बमुश्किल दो साल की राजनैतिक आयु वाली एएसपी की योजनाएं काफी बड़ी हैं. आजाद ने कहा कि 2024 में अगले लोकसभा चुनाव तक, ‘हमारे समुदाय का कोई व्यक्ति अगला प्रधानमंत्री होगा’.
उन्होंने कहा कि हालांकि वह यूपी की कई सीटों पर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने जा रहे हैं, फिर भी उनके लिए यह एक तरह से ये ‘परीक्षण वाला चुनाव’ भी है ताकि यह पता चल सके कि भीम आर्मी और एएसपी के काम की धमक लोगों के बीच कैसे पहुंच रही है.
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कांग्रेस से गठबंधन से इंकार नहीं करेंगे, कैसे टूटी सपा की बातचीत?
हालांकि सपा के साथ गठबंधन का सवाल अब पूरी तरह से ख़त्म हो चुका है, आजाद ने इस बारे में कोई प्रतिबद्धता नहीं दिखाई कि क्या एएसपी चुनाव के तुरंत बाद, या बाद में फिर कभी, कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन करेगी.
उन्होंने कहा कि हालांकि वह व्यक्तिगत रूप से कांग्रेस नेताओं प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी का बहुत सम्मान करते हैं, फिर भी उनके और कांग्रेस के बीच कुछ वैचारिक विसंगतियां हैं जिनके साथ वह इस समय समझौता नहीं कर सकते.
कांग्रेस के साथ किसी संभावित गठबंधन पर आजाद ने कहा, ‘काफी सारे मुद्दे हैं. हालांकि, मैं फिलहाल इस बारे में मौन हीं रहूंगा. राजनीति में सब कुछ संभावना पर निर्भर करता है. इसलिए, कौन जानता है कि भविष्य में क्या हो सकता है? मैं इसे पूरी तरह से नहीं ख़ारिज भी नहीं करूंगा.’
उन्होंने कहा कि प्रगति की दिशा में काम करते हुए कई सारी चीजें बदल सकती है. लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल उन्होंने किसी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं करने का फैसला किया है.
यह निर्णय समाजवादी पार्टी वाले गठबंधन का हिस्सा नहीं बनने के फैसले के ठीक बाद किया गया है.
उन्होंने सपा पर सिर्फ दलित वोट की चाह रखने और दलित नेतृत्व को नकारने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय का एक भी व्यक्ति सपा की ‘नेतृत्व समिति’ का हिस्सा नहीं है.
आजाद ने कहा कि भाजपा को हराने के लिए एक मजबूत मोर्चे के निर्माण हेतु विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास के तहत वह पिछले छह महीने से सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ बातचीत कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि यादव ने पहले उन्हें 25 सीटों का आश्वासन दिया था लेकिन बाद में इसे दो या तीन के प्रस्ताव में बदल दिया, जिसके बारे में आजाद ने तय किया कि इससे काम नहीं चलेगा. इस बीच में उन्होंने यादव को काफी समय दिया और उनसे फॉलो-अप भी करते रहे – लेकिन एक समय के बाद उन्होंने तय कर लिया कि वे इतनी कम सीटों पर समझौता नहीं करेंगे.
वे कहते हैं, ‘काश, मुझे इस फैसले के बारे में छह महीने या फिर दो ही महीने पहले बताया जाता, तब मेरे पास काम करने के लिए और समय होता’. हमने 10 दिनों के भीतर एक गठबंधन बनाने और चुनाव लड़ने में कामयाबी हासिल की. लेकिन अगर इसकी घोषणा पहले कर दी जाती, और अगर सीटों के बंटवारे का फैसला पहले ही कर लिया जाता तो मैं बहुत अच्छी स्थिति में होता.’
उन्होंने कहा, ‘मेरे साथ धोखा हुआ हैi ‘
कांशीराम के सपनों की ‘हत्या’ हो रही है?
एएसपी का कहना है कि वह अपने आदर्शों को बहुजन नेता कांशीराम की विरासत से ग्रहण करती है और यह ‘आजाद समाज पार्टी (कांशी राम)’ के रूप में पंजीकृत है.
लेकिन एक और पार्टी है जो कांशीराम की विरासत का दावा करती है और वह है बहुजन समाज पार्टी (बसपा).
आजाद ने कहा कि हालांकि वह बसपा प्रमुख और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री बहन मायावती का बहुत सम्मान करते हैं और हमेशा करते रहेंगे, पर वह कांशीराम के सपनों को ‘हत्या’ होते नहीं देख सकते’.
बसपा के ब्राह्मण समाज से सम्पर्क अभियान के प्रणेता और उसके ब्राह्मण नेता सतीश चंद्र मिश्रा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं कांशीराम के सपनों की हत्या होते और नहीं देख सकता, जो कि वर्तमान में उनके आंदोलन के साथ हो रहा है. पहले पिछड़ी जातियों के लोगों को नेतृत्व समूह में पद दिए जाते थे’. मगर अब ऐसा नहीं है – एससी मिश्रा ने पूरी पार्टी को अपने कब्जे में ले लिया है.’
उन्होंने कहा कि बहुजन समुदाय के कई लोग इस बात से काफी नाराज हैं कि इस अभियान क्या हश्र हो गया है, और उन्होंने आजाद से कहा कि वे आगे बढ़ें और अपनी पार्टी बनायें.
आजाद ने कहा, ‘अब तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में बसपा की कोई चर्चा तक नहीं होती.’
उन्होंने कहा कि एएसपी का दीर्घकालिक उद्देश्य इस धारणा को बदलना है कि (दलित) समुदाय के लोग शासक नहीं बन सकते, धर्म की राजनीति का अंत करना और इसके बजाय वास्तविक मुद्दों पर बहस करना और पैसे की राजनीति से छुटकारा दिलाना है.
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