नयी दिल्ली, 24 जनवरी (भाषा) त्रिपुरा में कथित सांप्रदायिक हिंसा के मामले में उच्चतम न्यायालय में सोमवार को यह दलील दी गई कि राज्य सरकार तर्क-कुतर्क का रवैया अपना रही है जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।
न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि राज्य सरकार ने अपने जवाब में यह दलील दी है कि स्वतंत्र जांच के लिए जनहित याचिका दायर करने वाले ‘‘जनहितैषी’’ नागरिकों ने पश्चिम बंगाल और दूसरे राज्यों में इस तरह की हिंसा की घटनाओं पर क्यों चुप्पी लगा रखी थी।
भूषण ने कहा कि यह पूरी तरह से अनुचित है कि राज्य सरकार तर्क-कुतर्क का रवैया अपना रही है। उन्होंने न्यायालय से कहा कि राज्य सरकार ने अपने जवाब में यह दलील दी है कि स्वतंत्र जांच के लिए जनहित याचिका दायर करने वाले ‘‘जनहितैषी’’नागरिकों ने पश्चिम बंगाल और दूसरे राज्यों में इस तरह की हिंसा की घटनाओं पर क्यों चुप्पी लगा रखी थी।
उन्होंने कहा कि यह विश्वास करने लायक नहीं है कि राज्य सरकार इतने गंभीर मामले में यह सब कर रही है। उन्होंने कहा कि कुछ सी-ग्रेड समाचार चैनल अगर यह सब कर रहे होते तो समझा जा सकता था।
उन्होंने राज्य सरकार के जवाब पर प्रत्युत्तर (रिज्वाइंडर) हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा जिसके बाद पीठ ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 31 जनवरी के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
अपने जवाबी हलफनामे में, त्रिपुरा सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया है कि खुद को जनहितैषी बताकर, राज्य में हाल में हुए ”सांप्रदायिक दंगों” की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाले लोगों की नीयत ठीक नहीं है और वे जनहित की आड़ में इस अदालत का गलत उद्देश्यों से इस्तेमाल कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में चुनाव पूर्व और चुनाव के बाद हुई सिलसिलेवार हिंसा पर याचिकाकर्ता की ”चुप्पी” की ओर इशारा करते हुए, त्रिपुरा सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की तथाकथित सार्वजनिक भावना कुछ महीने पहले बड़े पैमाने पर हुई साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान नहीं जागी और त्रिपुरा जैसे छोटे से राज्य में हुईं कुछ घटनाओं के कारण अचानक उनकी जनहित की भावना जाग उठी।
राज्य सरकार द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया, ”यह इंगित किया जाता है कि याचिकाकर्ता के इस तरह के चयनात्मक आक्रोश को इस अदालत के समक्ष बचाव के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया है बल्कि जनहित की आड़ में, इस अदालत के मंच का इस्तेमाल स्पष्ट रूप से गलत उद्देश्यों को पूरा करने के लिये गया है।”
हलफनामे में कहा गया है, ”यह एक याचिका या अन्य का सवाल नहीं है, बल्कि देश के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही की गरिमा और पवित्रता का सवाल है। कोई भी व्यक्ति या समूह जो पेशेवर रूप से जनहितैषी व्यक्ति / समूह के रूप में कार्य कर रहा है, कुछ स्पष्ट लेकिन अघोषित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए न्यायालय के असाधारण क्षेत्राधिकार का अपने हिसाब से इस्तेमाल नहीं कर सकते। जनहित को लेकर चयनात्मक आक्रोश ही इस याचिका को खारिज करने को सही ठहराता है।”
हलफनामा अधिवक्ता एहतेशाम हाशमी द्वारा दायर एक जनहित याचिका के जवाब में दायर किया गया है। हाशमी की याचिका में त्रिपुरा में हाल के ”सांप्रदायिक दंगों” और इसमें राज्य पुलिस की कथित मिलीभगत और निष्क्रियता की स्वतंत्र जांच का अनुरोध किया गया था।
सरकार के हलफनामे में आरोप लगाया गया है कि यह स्पष्ट रूप से जनहित के दिखावे के तहत और कुछ अज्ञात एजेंडे को हासिल करने के लिए एकतरफा आक्रोश का मामला है।
पूर्वोत्तर भारत के राज्य त्रिपुरा में हाल ही में आगजनी, लूटपाट और हिंसा की घटनाएं हुई थीं। ये घटनाएं बांग्लादेश से आईं उन खबरों के बाद हुई थीं, जिनमें कहा गया था कि ईशनिंदा के आरोपों के तहत दुर्गा पूजा के दौरान वहां हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमला किया गया था।
भाषा
देवेंद्र नरेश
नरेश
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