बाड़मेर/जैसलमेर/जोधपुर: बाड़मेर के बिजराड गांव में करीब 10 गांवों के हजारों लोग एक खुले मैदान में जमा थे और मीडिया के ड्रोन भी इधर-उधर चक्कर काट रहे थे. तभी वहां एक स्मार्ट ग्रे आर66 टर्बाइन हेलीकॉप्टर नजर आया और सभी की निगाहें आसमान की ओर उठ गईं. इसमें कोई मंत्री-मुख्यमंत्री या अरबपति नहीं, बल्कि दो दलित स्कूल टीचर के 23 वर्षीय बेटे डॉ. तरुण मेघवाल सवार थे जो 13 दिसंबर 2021 को यहां अपनी दुल्हन संग सात फेरे लेने आए थे. यह हेलीकॉप्टर यात्रा एक सपने के हकीकत में बदलने जैसी थी जिसका परिवार लंबे समय से इंतजार कर रहा था.
इससे महज एक पखवाड़े पहले की ही बात है जब उदयपुर के सलेरा खुर्द गांव में एक और दलित शादी की तैयारियां चल रही थीं. 28 वर्षीय दूल्हे नरेंद्र मेघवाल की बारात को घर से मात्र 400 मीटर की दूरी तय करके नजदीक स्थित चार भुजा मंदिर तक जाना था. लेकिन सुरक्षा के लिए 40 हथियारबंद पुलिस कर्मी साथ होने के बावजूद परिवार का सबसे बड़ा डर सही ही साबित हुआ. जाट समुदाय के 15 लठैतों ने घोड़े पर सवार दूल्हे और बारात में शामिल उसके रिश्तेदारों पर बेरहमी से हमला बोल दिया. नरेंद्र ने इस घटना के बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए बताया कि उनमें से एक ने चिल्लाकर कहा, ‘उतारो इसको घोड़ी से.’
दरअसल, हमले का कारण दूल्हे का घोड़ी पर बैठना था. सामंती परंपरा पर चलने वाले राजस्थान में दलितों के लिए हमेशा से कुछ रस्में निभाना प्रतिबंधित रहा है, जिसमें दूल्हे का घोड़े पर सवार होना भी शामिल है. दलितों की शादियों में उग्र भीड़ के हमले की कई घटनाएं हाल में सुर्खियों में रही हैं. इन्हें देखते हुए ही राजस्थान सरकार ने पिछले महीने बाकायदा एक सर्कुलर जारी किया जिसमें पुलिस थानों को सलाह दी गई है कि इस तरह के आयोजनों से पहले उचित सुरक्षा इंतजाम करें.
राजस्थान के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी), कानून-व्यवस्था, रवि प्रकाश मेहरदा ने कहा कि दलितों की ऐसी बारातों, जिनमें दूल्हा घोड़ी पर बैठा हो, में ‘हमले या पथराव’ की घटनाएं बढ़ी हैं. उन्होंने कहा, ‘हमने आंकड़े देखे हैं—पिछले 10 सालों में ऐसे 76 मामले सामने आए हैं. हाल में मेवाड़ क्षेत्र (उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद जैसे जिले) में ऐसी घटनाएं ज्यादा ही सुर्खियों में रही हैं. इसकी वजह से ही हमें पुलिस विभागों को एक सर्कुलर जारी करना पड़ा.’
बहरहाल, हिंसा की आशंकाओं के बावजूद तमाम दलित जातिवादी वर्जनाओं को तोड़ते हुए अपने गौरव को बरकरार रखने के लिए धूमधाम से समारोहों का आयोजन कर रहे हैं.
बस इसी मंशा ने तरुण के परिवार को हेलीकॉप्टर वाली शादी के लिए प्रेरित किया, भले ही इसके लिए उन्हें करीब 7 लाख रुपये का खर्च वहन क्यों न करना पड़ा हो. दूल्हे तरुण मेघवाल ने दिप्रिंट को बताया कि आखिर हेलीकॉप्टर से दुल्हन लाना उनके परिवार के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों था. तरुण के मुताबिक, ‘जब मेरी सगाई हुई तो मेरे माता-पिता ने कहा कि वह चाहते हैं कि दुल्हन हेलीकॉप्टर से आए. हमने हमेशा यही देखा है कि दलित दूल्हे के घोड़े पर बैठने की वजह से शादी-बारातों पर हमला किया जाता है. इसलिए हम कुछ अलग करना चाहते थे. यह मेरे माता-पिता की इच्छा थी.’
तरुण के पिता तिलाराम मेघवाल ने इतना ही कहा, ‘वे हमें घोड़े पर नहीं बैठने देते, इसलिए हमने एक हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया.’
दलित विद्वान चंद्रभान प्रसाद, जिनकी पुस्तक दलित पूंजीवाद: आत्म-गौरव का आंदोलन अगले साल प्रकाशित होने वाली है, शादी में हेलीकॉप्टर के इस्तेमाल को एक सांकेतिक अभिव्यक्ति मानते हैं.
उन्होंने कहा, ‘मेघवाल परिवार ने हेलीकॉप्टर किराए पर नहीं लिया, बल्कि अपने लिए सम्मान कमाने की कोशिश की है. हेलीकॉप्टर लेना तो कुछ वैसा ही जैसे पुराने जमाने में साख जमाने के लिए हाथी का इस्तेमाल होता था.’ उन्होंने यह बात पुराने समय में हाथियों को किराये पर लिए जाने के संदर्भ में कही.
न कीमत की परवाह, न जाति से कोई बाधा
बिजराड में मेघवाल की शादी केवल परिवार के लिए ही नहीं बल्कि आसपास के पूरे क्षेत्र के लिए ताउम्र न भूलने वाली एक घटना थी. अस्थायी हेलीपैड के पास करीब 10 गांवों के 3,000 से अधिक लोग जमा हो गए थे, अखबारों के फोटोग्राफर अच्छी फोटो पाने के लिए बेहतर जगह ढूंढ़ने के दौरान एक-दूसरे से धक्का-मुक्की में लगे थे और वहीं, साधन सम्पन्न समाचार संस्थानों ने कवरेज के लिए अपने ड्रोन इस्तेमाल करने का विकल्प चुना.
दूल्हे के माता-पिता, स्कूल टीचर तिलाराम मेघवाल और पार्वती पन्नू को विधायकों और स्थानीय नेताओं के फोन आए, और उन्होंने न केवल शादी के एल्बम के लिए फोटो खिंचाएं बल्कि उनकी मुस्कुराती फोटो अगले दिन तमाम अखबारों में भी छपी नजर आईं.
वैसे तो शादियों में हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल राजस्थान में एक फैशन बनता जा रहा है—उदाहरण के तौर पर पिछले नवंबर में अलवर जिले में एक ऐसी ही शादी हुई थी और फिर अगले महीने ही दौसा में एक शादी में दूल्हा हेलीकॉप्टर से आया. लेकिन मेघवाल का शादी समारोह एक मायने में एकदम अलग था क्योंकि यह परिवार की जातिगत पहचान से जुड़ा था.
चंद्रभान प्रसाद के मुताबिक, दलितों के शादी समारोहों में बहुत ज्यादा तामझाम होना इस ट्रेंड का संकेत है कि कैसे वह अपनी जीवनशैली में आए बदलावों को मुखर तरीके से व्यक्त करना चाहते हैं. राजस्थान के कस्बाई और ग्रामीण इलाकों में दलित जब स्मार्ट गैजेट इस्तेमाल करते दिखते हैं, मूंछें रखते हैं, या घोड़ों की सवारी करते हैं, या फिर ब्रांडेड कपड़े और जूते पहनते हैं, तो इसका मतलब यही है कि जातिगत बाध्यताओं और मानदंडों को तोड़ रहे हैं.
चंद्रभान प्रसाद के मुताबिक, ‘दलितों को जिस किसी भी चीज से वंचित रखा गया—चाहे वो जूते हों, मूंछ रखने की आजादी हो, या फिर घोड़े की सवारी करना…अब वे इन सबको ही अपना रहे हैं जो कि एक तरह से दलित विद्रोह का परिचायक है.’
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नए विद्रोहियों की गतिविधियां और आहत होते राजपूत
18 वर्षीय सोना राम मेघवाल जब जैसलमेर की सड़कों पर निकलते हैं तो किसी कार या बाइक में नहीं, बल्कि अपने काले घोड़े बादल पर सवार होते हैं. कहीं आने-जाने के लिए यह साधना चुनना सीधे तौर पर उनके विद्रोही रुख को दर्शाता है, जिसके लिए खुद उनके माता-पिता की तरफ से भी रोकने की कोशिश की गई थी.
सोना राम ने बताया, ‘मेरे पिता ने मुझसे कहा था कि मुझे भूलकर भी घर पर घोड़ा रखने के बारे में नहीं सोचना चाहिए. उसने सवालिया लहजे में मुझसे पूछा, ‘क्या आपने कभी दलित दूल्हे को घोड़ी पर बैठे देखा है?’
इस बात ने इस किशोर के मन पर इतना गहरा असर डाला था कि 2019 के आखिर में वह एक डेढ़ वर्षीय घोड़ा खरीदकर ही माना. सोना राम ने कहा, ‘मैं यह देखते हुए ही बड़ा हुआ हूं कि दलितों को शादी में घुड़चढ़ी से रोका जाता है. इसलिए, मैंने इसके खिलाफ विद्रोह कर दिया.’
घोड़ा, बादल, अब चार साल का हो चुका है और सोना राम को उसके साथ अपनी तस्वीरें और वीडियो इंस्टाग्राम पर साझा करना बेहद पसंद है. हालांकि, जैसलमेर की सड़कों पर उसे लेकर प्रतिक्रियाएं हमेशा अच्छी नहीं होती हैं. सोना राम ने बताया कि उसे ‘ये धेढ़ अब घोडे भी पालेंगे’ और ‘देखो, घोड़े पे गधा जा रहा है’ जैसी जातिसूचक गालियां सुननी पड़ती हैं. लेकिन वह इन्हें एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देता है क्योंकि वह अब भी एक घोड़े का मालिक है.
सोना राम के घर से करीब 200 किलोमीटर दूर बाड़मेर के सीमावर्ती गांव अदरिम में रहने वाले 29 वर्षीय अशोक जोगल में भी इसी तरह विद्रोह की भावना नजर आती है. वह बुलेट पर चलते हैं, मूंछे रखते हैं और अपने नए आईफोन के जरिये सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं, यह जानते हुए भी कि उनकी इस तरह की गतिविधियां उनके आसपास के ऊंची जाति के लोगों को कतई नहीं सुहाती हैं.
एक छोटे प्रोविजन स्टोर के मालिक जोगल का कहना है, ‘प्रभावशाली अगड़ी जातियों के लोग हमारी इस तरह की जीवनशैली से जलते हैं. किसी ने ब्रांडेड कपड़े ऑनलाइन खरीदने और इस तरह की जीवनशैली अपनाने को लेकर मेरी ही जाति वाले मेरे एक दोस्त का मजाक उड़ाया था’
बहरहाल, जीवनशैली, शिक्षा और इंटरनेट की सुविधा चाहे-अनचाहे ही युवा दलितों को पुराने नियम-कायदों की बाध्यताएं तोड़ने का अवसर प्रदान कर रही है.
नई सामाजिक पहल भी बदलावों का आसान बना रही हैं, इसी में एक है पूरी तरह नीले रंग से रंगा मेघवाल समाज सेवा समिति पुस्तकालय, जो बाड़मेर शहर से 50 किमी दूर चोहटन ब्लॉक के निचले इलाके में स्थित है.
बाड़मेर के एक दलित कार्यकर्ता सुरेश जोगेश ने बताया, ‘यह पुस्तकालय उस जागृति का अगला कदम है जो यहां के दलित युवाओं ने इंटरनेट के जरिये हासिल की है.’
हालांकि, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, राजस्थान में जाति विभाजन की जडे़ं बहुत गहरी हैं, जहां अनुसूचित जाति/जनजाति के खिलाफ अपराध भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में न केवल सबसे अधिक होते हैं, बल्कि 2018 के बाद इसमें खासी वृद्धि भी दर्ज की गई है.
यही नहीं जीत या गर्व का प्रतीक मानी जाने वाली मेघवाल की शादी जैसी घटनाओं के पीछे कहीं न कहीं कोई दर्दनाक किस्सा जुड़ा होता है.
एक ‘नाराज, असहाय’ पिता का निजी संकल्प
दिप्रिंट ने हेलीकॉप्टर वाली चर्चित शादी के एक महीने बाद जनवरी के दूसरे सप्ताह में मेघवाल परिवार से बाड़मेर की मंसूरिया कॉलोनी स्थित में उनके साधारण से घर में मुलाकात की. घर की लगभग सभी दीवारें दलित आइकन डॉ. भीमराव अंबेडकर के चित्रों से भरी थीं और बुकशेल्फ में दलित साहित्य और भारतीय संविधान की प्रतियां रखी थीं.
तरुण मेघवाल ने बताया कि एक बार जब परिवार ने हेलीकॉप्टर से बारात ले जाने का फैसला कर लिया तो उन्होंने तुरंत ऐसी सेवा मुहैया कराने वाली कंपनी की तलाश शुरू कर दी. गूगल सर्च करने पर उन्हें अंजलि चार्टर सर्विसेज नामक एक कंपनी के बारे में पता लगा.
तरुण ने बताया, ‘उन्होंने कहा कि हमें 6.5 लाख रुपये खर्च करने होंगे, लेकिन इसके लिए हमें पहले जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी थी.’
परमिट मिलते ही परिवार खुश था, लेकिन जैसे ही नगर निगम का यह पत्र मीडिया में लीक हुआ, तो वे घबरा गए. तरुण ने कहा, ‘हमें आशंका थी कि कुछ लोग इसमें बाधा डालने की कोशिश कर सकते हैं.’
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उनकी ये आशंकाएं निराधार भी नहीं थीं.
शादी के दिन एकबारगी तो यही लगा कि सब कुछ ठीक चल रहा है. चार्टर सेवा कंपनी ने पहले ही दो तकनीशियन भेज दिए थे, कागजी कार्रवाई हो गई थी और सभी शादी के कपड़े पहनकर पूरी तरह तैयार थे. लेकिन, जब बारात निकलने का वक्त आया, तभी एजेंसी का फोन आ गया.
तरुण ने बताया, ‘उन्होंने कहा कि वे हेलीकॉप्टर नहीं भेज सकते. उन्होंने हमें अपनी सेवाएं देने से मना कर दिया.’
उस पल को याद करते हुए तिलाराम की आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने कहा, ‘हमने सोचा था कि अगर हेलीकॉप्टर नहीं आया तो हम घर से बाहर नहीं निकल पाएंगे.’
हालांकि, तरुण हार मानने को तैयार नहीं थे. उन्होंने एक के बाद एक कई अन्य सेवा प्रदाताओं से बात की जब तक कि उदयपुर की एक एजेंसी हेलीकॉप्टर भेजने को राजी नहीं हो गई. एकमात्र नुकसान इसमें यही था कि शुल्क पिछली एजेंसी की तुलना में एक लाख अधिक था.
लेकिन परिवार इसके लिए तैयार हो गया. तिलाराम ने कहा, ‘हमने सोचा की अब एक लाख और सही.’
उधर, गांव में 22 वर्षीय दुल्हन दीया और उसका परिवार भी खुशी से फूला नहीं समा रहा था.
एमएससी कर चुकी और जूनियर रिसर्च फेलोशिप के लिए प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही दीया ने कहा, ‘गांव में किसी ने हेलीकॉप्टर को इतने करीब से नहीं देखा था. इससे पहले, मैंने तो यही देखा था कि मेरे गांव में एक दलित परिवार राजपूतों के विरोध के कारण घुड़चढ़ी नहीं कर पाया था. लेकिन मेरे ससुराल वाले तो हेलीकॉप्टर लेकर आए.’
एक ऐसे राज्य जहां अक्सर ही दलित दूल्हों को घोड़े की सवारी का मौका नहीं मिल पाता, हेलीकॉप्टर से बारात आना निश्चित तौर पर एक बेहद शानदार पल था. इसने परिवार को यह दर्शाने का मौका भी दिया कि उन्होंने उस जाति व्यवस्था की बेड़ियां तोड़ दी है जिसमें उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ता था.
तिलाराम ने दिप्रिंट को दिल दहला देने वाली आपबीती भी सुनाई कि कैसे तरुण को उसकी जाति के कारण 2003 में बाड़मेर शहर के एकमात्र छात्रावास में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था.
तिलाराम ने कहा, ‘हम दोनों (पैतृक गांव में) टीचर थे इसलिए चाहते थे कि तरुण को अच्छा अवसर मिले. छात्रावास के प्रभारी ने पहले उसका नाम लिख लिया और फिर मुझसे पूछा कि मैं चौधरी हूं या नहीं. जब मैंने उसे बताया कि मैं मेघवाल हूं तो उसने मेरे बच्चे के नामांकन से साफ इनकार कर दिया. कल्पना कीजिए कि यह सब सरकारी शिक्षकों के बच्चे के साथ हो रहा था.
उन्होंने कहा कि वह आज भी यह भूल नहीं पाते कि उस दिन उन्हें कितना गुस्सा आया था और उन्होंने खुद को किस कदर लाचार महसूस किया था. बाद में हासिल अपनी सफलताएं गिनाने के साथ ही उन्होंने बताया, ‘मुझे पसीना आ रहा था, मैं गुस्से से कांप रहा था. उस दिन ही मैंने तय कर लिया था कि कुछ न कुछ करके रहूंगा.’
तिलाराम ने पूरे गर्व के साथ बताया, ‘मैंने इस क्षेत्र में न केवल जमीन खरीदी, बल्कि अपने बेटे के नाम पर स्कूल भी शुरू किया. मैंने अपनी बेटी को उच्च शिक्षा के लिए नई दिल्ली भेजा…और अब, अपने बेटे की शादी के लिए एक हेलीकॉप्टर की सेवाएं लीं.’
बहरहाल, जमीनी स्तर पर पुलिस के लिए दलित दूल्हों की सुरक्षा करना अब भी एक बड़ी चुनौती है.
पुलिस की असल परीक्षा—गरिमा कायम रखना
राजस्थान में दलित दूल्हों पर हमले की घटनाओं ने पिछले कुछ सालों में सुर्खियां बटोरी हैं. ऐसी ज्यादातर घटनाएं इसलिए होती हैं क्योंकि ऊंची जाति के लोगों को लगता है कि दलित अपनी बारात में घोड़े की सवारी करके अपना कद बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.
2020 में भीलवाड़ा के स्मोदी गांव में उस समय तनाव कायम हो गया था जब 22 वर्षीय अर्जुन रेगर ने अपनी शादी में घुड़चढ़ी की तैयारी की. क्षेत्र में दबदबा रखने वाले अहीरों (जो अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी में आते हैं) ने परिवार को गंभीर नतीजे भुगतने की धमकी दी. लेकिन चार थानों की तरफ से मुहैया कराई गई पुलिस सुरक्षा के कारण आखिरकार शादी तो बिना किसी बवाल के हो गई. लेकिन बारात निकलने के बाद गांव के अहीरों ने पानी और गौमूत्र से सड़कों की सफाई की. वहीं, दलित परिवार ने अगला एक महीना पुलिस सुरक्षा में बिताया.
एक साल पहले बाड़मेर के हाडवा गांव, जो हेलीकॉप्टर वाली शादी की जगह से करीब पांच किलोमीटर दूर है—में तो 25 वर्षीय परसु बृजवाल को पुलिस सुरक्षा के बावजूद उनके घोड़े से खींचकर उतार लिया गया था और सात राजपूतों ने उन्हें बुरी तरह पीटा था. गांव में दबंग जाति के गुंडे पहले दलित दूल्हे को घोड़े पर सवार होकर बारात ले जाने से रोकने में नाकाम रहे थे.
इस तरह के हमलों ने राजस्थान सरकार को पुलिस अधीक्षकों (एसपी) को एक सर्कुलर जारी करने के लिए प्रेरित किया, जिसमें कहा गया है कि या तो दलित शादी-समारोहों को सुरक्षा मुहैया कराएं या फिर कार्रवाई का सामना करने को तैयार रहें.
सर्कुलर में थानाध्यक्षों (एसएचओ) को ऐसी शादियों के बारे में सभी आवश्यक जानकारियां जुटाने और संबंधित स्थानों पर पुलिस बल तैनात करने का निर्देश दिया गया है.
जिलों के एसपी और अन्य शीर्ष अधिकारियों को समुदाय के प्रतिनिधियों, ग्राम प्रधानों और अन्य प्रभावशाली लोगों के साथ बैठक के जरिये कोई समाधान निकालने और इसके बावजूद ऐसी कोई घटना होने पर त्वरित कार्रवाई करने का निर्देश भी दिया गया है
राजस्थान के एडीजी (कानून और व्यवस्था) रवि प्रकाश मेहरदा ने दिप्रिंट से कहा कि ऐसा एक भी मामला सामने आना गंभीर घटना है.
उन्होंने कहा, ‘आजादी के 70 से अधिक सालों के बाद अगर ऐसा एक भी मामला सामने आता है तो यह वास्तव में नीति-निर्माताओं और कानून पर अमल कराने वाली एजेंसियों के लिए गंभीर चिंता का विषय है. दलित परिवारों की गरिमा भंग करने के 76 मामले (पिछले एक दशक में सामने आए) सामने आना चिंताजनक है, यह एक बड़ी संख्या है…राज्य पुलिस को दलित दूल्हों को गरिमा प्रदान करनी होगी.’
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