scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशवो 7 मानदंड जिनके जरिए मोदी सरकार पर्यावरण मंजूरी देने के मामले में राज्यों की रैंकिंग करेगी

वो 7 मानदंड जिनके जरिए मोदी सरकार पर्यावरण मंजूरी देने के मामले में राज्यों की रैंकिंग करेगी

17 जनवरी को जारी किए गए ऑफिस ज्ञापन में कहा गया है, कि ये व्यवस्था एक स्टार-रेटिंग सिस्टम के ज़रिए, राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए बनाई गई है, जो मंज़ूरी प्रदान करने में कुशलता और समयबद्धता पर आधारित होगी.

Text Size:

नई दिल्ली: 17 जनवरी को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने प्रत्येक राज्य- स्तरीय पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण (एसईआईएए) की रेटिंग करने के लिए, एक नई प्रणाली लागू करने का ऐलान किया. ये प्रक्रिया उस तेज़ी पर आधारित होगी, जिससे वो खनन और निर्माण कार्य आदि परियोजनाओं को पर्यावरण मज़ूरी प्रदान करेंगे.

मंत्रालय द्वारा जारी ऑफिस विज्ञप्ति (ओएम) में कहा गया है, कि ये व्यवस्था एक स्टार-रेटिंग सिस्टम के ज़रिए, ‘राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए बनाई गई है, जो मंज़ूरी प्रदान करने में कुशलता और समयबद्धता पर आधारित होगी’.

विज्ञप्ति के अनुसार, ‘कारोबार करने की आसानी’ के मामले में की गई कार्रवाई के संदर्भ में, 13 नवंबर को कैबिनेट सचिव राजीव गौबा के साथ एक बैठक में, एक सिस्टम पर चर्चा की गई जिसमें राज्यों की इस आधार पर रैंकिंग की जाएगी, कि वो पर्यावरण मंज़ूरी (ईसी) देने में कितना समय लेते हैं.

ऊंची रैंकिंग हासिल करने के लिए राज्य प्राधिकारियों को, संतोषजनक रूप से सात मानदंडों को पूरा करना होगा, जिससे उन्हें अधिकतम आठ अंक (और पांच सितारा रेटिंग) मिल सकते हैं. इन मानदंडों में अन्य बातों के अलावा, ईसी प्रदान किए जाने में तेज़ी, स्थलों के दौरे, और छह महीने के भीतर प्रस्तावों का निपटान किए जाने का प्रतिशत शामिल हैं.

शोधकर्त्ताओं और कार्यकर्त्ताओं ने इस क़दम की आलोचना की है, जिनका कहना है कि इसके नतीजे में राज्य ईसी देने में जल्दबाज़ी करेंगे, और ठीक से समीक्षा नहीं करेंगे.

दिप्रिंट ने एमओईएफसीसी प्रवक्ता से वह्ट्सएप के ज़रिए टिप्पणी के लिए संपर्क किया, और उन्होंने कहा कि उन्होंने हमारे सवाल को सचिव लीना टण्डन को आगे भेज दिया है. लेकिन इस ख़बर के प्रकाशित किए जाने तक, मंत्रालय से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

नई व्यवस्था में क्या सुझाया गया है

नए सिस्टम के अनुसार राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकारी, छह मानदंडों के लिए एक-एक अंक तक प्राप्त कर सकते हैं, और बाक़ी एक मानदंड के लिए दो अंक तक हासिल कर सकते हैं. एसईआईएएज़ की हर छह महीने पर रेटिंग की जाएगी, जिसे मंत्रालय एक ‘गतिशील प्रक्रिया’ कह रहा है.

पहला मानदंड है ‘ईसी प्रदान करने में लिए दिनों की औसत संख्या’. जो राज्य प्रस्ताव मिलने के 80 दिनों के भीतर ऐसा कर पाते हैं, वो दो अंक तक (‘एक अतिरिक्त’) अर्जित कर सकते हैं. 105 दिन तक या उससे कम में ईसी देने पर राज्यों को एक अंक मिलेगा, और 105 से 120 दिन के भीतर देने पर, राज्यों को आधा अंक मिलेगा.

दूसरा मानदंड है उन विचारार्थ प्रस्तावों (टीओआर) का प्रतिशत है, जिनका निपटान उनकी प्राप्ति के 30 दिन के बाद हो जाता है. टीओआर एसईआईएए द्वारा जारी एक दस्तावेज़ होता है, जिसमें एक उचित पर्यावरण प्रभाव आंकलन के लिए आवश्यक तत्वों का सारांश दिया गया होता है. जो एसईआईएएज़ 80-90 प्रतिशत का निपटान कर लेती हैं, उन्हें आधा अंक मिलेगा, और 80 प्रतिशत या उससे कम मंज़ूरी पर राज्यों को शून्य अंक मिलेंगे.

राज्यों की इस आधार पर भी रेटिंग की जाएगी, कि कितने प्रतिशत मामलों में वो किसी परियोजना के बारे में कई बार जानकारी मांगते हैं. अगर एसईआईएए एक से अधिक बार अतिरिक्त जानकारी मांगती है, तो वो ज़्यादा अंक गंवा सकती है. रेटिंग सिस्टम के अनुसार, जिन राज्यों के अधिकारी 30 प्रतिशत या उससे अधिक मामलों में, कई बार अतिरिक्त ब्योरा मांगते हैं उन्हें शून्य अंक मिलेंगे, जबकि 10 प्रतिशत से कम मामलों में, अतिरिक्त जानकारी मांगने वालों को एक अंक मिलेगा.

आंकलन के अन्य मानदंडों में ये भी है, कि प्राधिकारी ने ईसी और टीओआर प्रस्ताव स्वीकार करने में औसतन कितने दिनों का समय लिया (प्राधिकारियों के पांच दिन या उससे कम में प्रस्तावों को स्वीकार करने पर एक अंक मिलेगा), और प्राधिकारी द्वारा शिकायतों को देखने में कितना समय लगा. जो प्राधिकारी उन्हें मिली सभी शिकायतों को देख लेते हैं उन्हें एक अंक मिलेगा, और जो 50 प्रतिशत से कम को देख पाते हैं, उन्हें कोई अंक नहीं मिलेगा.

अंत में, राज्यों की इस आधार पर रेटिंग होती है, कि उनके अधिकारियों ने कितनी मरतबा स्थलों के दौरे किए. जो राज्य स्थलों के कम दौरे करते हैं- 10 प्रतिशत या उससे कम- उन्हें अधिकतम एक अंक दिया जाएगा, जबकि 20 प्रतिशत से अधिक मामलों में स्थल का दौरा करने वाले राज्यों को शून्य अंक मिलेंगे.

पर्यावरण मंज़ूरी प्रक्रिया क्या है

पर्यावरण मंज़ूरी प्रक्रिया की ज़रूरत 39 प्रकार की परियोजनाओं में पड़ती है, जो 2006 की पर्यावरण प्रभाव आंकलन अधिसूचना में सूचीबद्ध किए गए हैं. इनमें खनिज पदार्थों की खुदाई, हवाई अड्डों व शहरों का निर्माण, और थर्मल पावर प्लांट जैसी परियोजनाएं शामिल हैं.

इन परियोजनाओं को इस आधार पर श्रेणीबद्ध किया जाता है, कि उन्हें किस प्रकार की पर्यावरण मंज़ूरी की आवश्यकता होगी. ए श्रेणी की परियोजनाओं के लिए केंद्र के स्तर से पर्यावरण मंज़ूरी लेना अनिवार्य होता है, और बी श्रेणी की परियोजनों की समीक्षा, राज्य स्तर पर एसईआईएएज़ द्वारा की जाती है.

एसईआईएएज़ फिर इन परियोजनाओं को आगे बी1 और बी2 श्रेणी में बांटती हैं, जिसमें बी2 को मंज़ूरी प्रदान करने के लिए, पर्यावरण प्रभाव आंकलन कराए जाने की ज़रूरत नहीं होती. बी2 श्रेणी में आने वाली परियोजनाओं को एक अलग तरह के मापदंडों पर पूरा उतरना होता है.

वो परियोजना प्रस्तावक जिन्हें पर्यावरण प्रभाव आंकलन कराना होता है, या तो उसे सीधे स्वयं कर सकते हैं, या उसके लिए किसी कंसल्टेंट को हायर कर सकते हैं. आमतौर पर पर्यावरण मंज़ूरी में चार चरण होते हैं: छानबीन, स्कोपिंग, सार्वजनिक परामर्श और मूल्यांकन.

एसईआईएएज़ बी श्रेणी की परियोजनाओं के लिए छानबीन करती हैं, ये तय करने के लिए कि क्या किसी परियोजना विशेष का पर्यावरण प्रभाव आंकलन कराए जाने से पहले, और अधिक अध्ययन किए जाने की ज़रूरत है. स्कोपिंग ए और बी1 श्रेणी की परियोजनाओं के लिए की जाती है, और इसमें पर्यावरण प्रभाव आंकलन के लिए टीओआर लिखा जाता है.

इन परियोजनाओं का अगला चरण होता है सार्वजनिक परामर्श, जिसमें पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिपोर्ट पर एक जन-सुनवाई होती है ताकि उसकी जांच की जा सके और परियोजना से प्रभावित होने वालों की आवाज़ भी सुनी जा सके.

अंत में, मूल्यांकन की स्टेज पर, केंद्र के स्तर पर एक विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी), या राज्य के स्तर पर उसकी समकक्ष, पर्यावरण प्रभाव आंकलन की बारीकी से जांच करती है, और अंतिम मंज़ूरी प्रदान करती है.

2020 में, पर्यावरण मंत्रालय ने कई परियोजनाओं को कार्योत्तर मंज़ूरी की अनुमति देने, और अन्य परियोजनाओं को आंकलन तथा सार्वजनिक परामर्श के दायरे से छूट देने के लिए, ईआईए अधिसूचना में संशोधन का प्रस्ताव रखा. इनमें कुछ प्रोजेरक्ट्स हैं सिंचाई परियोजनाएं, राष्ट्रीय राजमार्गों का विस्तार, तथा राष्ट्रीय रक्षा व सुरक्षा से जुड़ी परियोजनाएं.

पर्यावरण क़ानूनों में अन्य बदलाव

रेटिंग के इस ताज़ा सिस्टम से पहले भी पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण अनुपालन मानदंडों में ढिलाई देने के लिए, कई दूसरे उपाय भी सुझाए हैं.

मसलन, 1 नवंबर 2021 को मंत्रालय ने भारत की तटीय नियमन क्षेत्र अधिसूचना (सीआरज़ेड),2019, में संशोधन की कोशिश की, जिससे कि कच्चे तेल तथा प्राकृतिक गैस की खोज और विकास गतिविधियों को अनिवार्य मंज़ूरियां लेने से छूट दे दी जाए.

पिछले साल अक्तूबर में, मंत्रालय ने वन (संरक्षण) अधिनियम में कई संशोधनों का प्रस्ताव दिया, जिससे वन क्षेत्रों के भीतर आर्थिक गतिविधियों के लिए, परमिट्स में ढील मिल जाएगी.

पिछले महीने, सरकार ने संसद के शीत सत्र में जैव विविधता अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया, जिसमें सुझाव दिया गया था कि जंगली औषधीय पौधों पर दबाव कम करने के लिए, उनकी खेती को बढ़ावा दिया जाए, जिससे ‘भारतीय चिकित्सा प्रणाली को प्रोत्साहन मिले’, शोध और पेटेंट आवेदनों को फास्ट ट्रैक किया जा सके, और जैविक संसाधनों की श्रंखला में अधिक विदेशी निवेश लाया जा सके.

रेटिंग सिस्टम की आलोचना क्यों हो रही है

नए रेटिंग सिस्टम की आलोचना इसलिए हो रही है, क्योंकि कार्यकर्त्ताओं और स्कॉलर्स के अनुसार, इसके परिणाम स्वरूप एसईआईएएज़ पर्यावरण मंज़ूरी प्रदान करने में कोई चूक कर सकती हैं.

पर्यावरण से जुड़े मुक़दमे लगने वाली फर्म, लीगल इनीशिएटिव फॉर एनवायरमेंट (लाइफ) के अधिवक्ता रितविक दत्ता ने सोशल मीडिया पर एक बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि इस सिस्टम से ये ‘सुनिश्चित हो जाएगा कि एसईआईएएज़ का लक्ष्य ये रहेगा कि कम से कम समयावधि में परियोजनाओं को मंज़ूरी दे दी जाए’.

दत्ता ने अपने बयान में कहा कि एक से अधिक बार अतिरिक्त जानकारी मांगने पर दंडित किए जाने के नतीजे में, एसईआईएएज़ अपर्याप्त डेटा के साथ मंज़ूरी देने लगेंगी, चूंकि किसी क्षेत्र विशेष के जैव विविधता प्रोफाइल पर, मौसमी बदलावों का भी असर पड़ता है.

बयान में कहा गया, ‘कोई भी एसईआईएए जो ऐसे डेटा की मांग करती है, उसे कम बल्कि शून्य अंक दिए जाएंगे. इसके अलावा, एसईआईएए के पास परियोजनाओं को ख़ारिज करने का भी अधिकार है, एक ऐसी चीज़ जिसपर ओएम ख़ामोश है.’

पर्यावरण वकील और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ लॉ में पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्चर, अर्पिता कोडिवेरी ने भी इससे सहमति जताते हुए कहा, ‘इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है, जिसमें आप उतना समय नहीं दे रहे हैं, जो एहतियात के साथ फैसले लेने के लिए चाहिए होता है. इससे राज्यों के बीच एक बनावटी प्रतिस्पर्धा पैदा हो जाती है, जिसके नतीजे में उद्योग उन राज्यों में जाना पसंद करेंगे, जहां पर्यावरण मंज़ूरी ज़्यादा तेज़ी से मिलती है.’

उन्होंने आगे कहा: ‘अगर आर ईआईए प्रक्रिया को देखें, तो इसमें पूरा नियामक क़ब्ज़ा है क्योंकि पर्यावरण प्रभाव रिपोर्ट तैयार करने वाली कंसल्टिंग फर्मों को ख़ुद व्यवसाय ही हायर करते हैं. तेज़ी, कार्यकुशलता, और प्रोत्साहन का ये दबाव पर्यावरण को टेढ़ा कर देगा, और उसे व्यवसाय-समर्थक बना देगा.’


यह भी पढ़ें- महाराष्ट्र में बदला कोरोना का ट्रेंड : राज्य भर में बढ़ रहे मामले, लेकिन मुंबई में दर्ज की गई गिरावट


share & View comments