हमें टॉक्सिन (या जहर) शब्द बेहद डरा देता है. कई तरह की थेरेपी से टॉक्सिन को शरीर से साफ करने का विचार बड़ा नया लगता है और आजमाने में कोई बुराई नहीं दिखती. बदकिस्मति से, डिटॉक्सीफिकेशन थेरेपी और कुछ नहीं, बल्कि बस अजूबा हैं.
कुछ खाने और पीने से शरीर को जहरीले पदार्थों से मुक्त करने का चलन आजकल काफी लोकप्रिय है. हम ‘डिटॉक्स’ के विचार को लेकर जुनूनी होते जा रहे हैं. ‘ग्रीन सुपर फूड डिटॉक्स’, ‘फास्ट लिवर डिटॉक्स’, ‘नाइन नेचुरल डिटॉक्सीफाइंग फूड’, ‘डिटॉक्स रोटी’, ‘क्लीन कोलोन ड्रिंक्स’ जैसे न जाने कितने उत्पादों से डिटॉक्स ‘उद्योग’ सेहत क्षेत्र में छा गया है और खूब तेजी से बढ़ रहा है. डिटॉक्स थेरेपी की दलील है कि शरीर को शराब, धुम्रपान और नशीले पदार्थों के दुष्प्रभाव से विशेष इलाज पद्धतियों से साफ किया जा सकता है. हालांकि, हफ्ते के आखिर में किसी पार्टी, उत्सव, या अनाप-शनाप खाने से शरीर को साफ कर लेने का विचार मेडिकल साइंस में तो एक मिथक के समान है. यह ऐसा स्कैम या घपला है, जो हमारी तर्कसंगत बुद्धि पर छा गया है.
भारत के बाजार में अनेक तरह के डिटॉक्स फूड, सप्लीमेंट और पेय पदार्थ भरे पड़े हैं, जिनका दावा है कि आपके शरीर को साफ कर देते हैं, जहरीले पदार्थों को निकाल देते हैं या वजन घटाने में मददगार होते हैं. डिटॉक्स उत्पादों में जड़ी-बूटियां, जूस, चाय और भोजन के दूसरे सप्लीमेंट शामिल हैं. जिनके लेने से दावा किया जाता है कि कोलोन और लिवर साफ हो जाते हैं. अमूमन इन उत्पादों का नियमन कोई सक्षम प्राधिकरण से भी नहीं किया जाता, ताकि सुरक्षा और कारगर होने के पैमाने पर नापा जा सके. यही नहीं, वजन घटाने का दावा करने वाले ज्यादातर डिटॉक्स उत्पाद लंबे वक्त तक उपयोगी होने का कोई पुख्ता वैज्ञानिक सबूत भी देने में नाकाम हैं. इसी वजह से अनियंत्रित चीजों से बनने वाले ये ‘जादुई’ अमृत सेहत के लिए गंभीर खतरा हैं और उनका लाभ थोड़ा या बिल्कुल नहीं है.
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शरीर खुद अपने को डिटॉक्स कर लेता है
हम पर्यावरण या हवा से हर रोज टॉक्सिन ले लेते हैं और हमारा शरीर भी पाचन-क्रिया और मेटाबोलिज्म या रस प्रक्रिया के जरिए बाइ-प्रोडक्ट के रूप में कई टॉक्सिन बनाता है. विशेष शरीरिक प्रक्रिया हमारे लिवर, फेफड़ों, गुर्दे और पाचन-तंत्र के जरिए इन टॉक्सिन को निकालने में मदद करती हैं. इसमें किसी बाहरी ‘डिटॉक्सीफिकेशन पदार्थ’ की जरूरत नहीं पड़ती.
डिटॉक्स उत्पाद मूल रूप से लिवर की सफाई पर निशाना साधते हैं. प्रोटीन लिवर में मेटाबोलिज्म से अमोनिया बनाता है, जो बड़ी मात्रा में निकले तो शरीर के लिए जहर हो सकता है. अमोनिया को यूरिया में बदलकर लिवर उसे पेशाब के जरिए शरीर से बाहर निकाल देता है.
इसी तरह गुर्दे भी नुक्सानदेह टॉक्सीन को बाहर निकालते हैं. आंत बाहरी तत्वों और रोगाणुओं नष्ट करती है और दूर करती है और त्वचा पसीने से टॉक्सीन बाहर निकालती है. स्वस्थ जीवन-शैली इन अंगों को ठीक से काम करने के लायक बनाए रखती है, डिटॉक्स थेरेपी की जरूरत नहीं होती और आपका काफी वक्त और पैसे बचाती है.
कोई मेडिकल सबूत नहीं है, जो डिटॉक्स आहार, सप्लीमेंट या पेय पदार्थ के फायदों को प्रमाणित करे. वजन घटाने के लिए डिटॉक्स थेरेपी थोड़े समय के लिए नतीजे देती है क्योंकि उसमें कम कैलरी वाले आहार होते हैं, जो जूस और पानी के साथ अच्छे भोजन के बदले लिए जाते हैं. जैसे ही वह आहार लेना बंद करते हैं और सामान्य आहार पर लौट आते हैं, वजन तेजी से बढ़ता है.
एक भारी-भरकम वजन वाली कोरियाई औरत पर किए गए अध्ययन से पता चला कि नींबू डिटॉक्स आहार कितना कारगर है, जिसमें पॉम या मेपल का जूस नींबू के रस के साथ सात दिनों तक लिया जाता है. नतीजे में वजन में काफी कमी के साथ बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआइ), कमर और कूल्हे के अनुपात, शरीर में चर्बी के प्रतिशत, इंसुलिन रेजिस्टेंस में सुधार वगैरह तो दिखा, लेकिन उस महिला के सामान्य आहार शुरू करने के बाद के नतीजे के बारे में कोई जिक्र नहीं है.
ना के बराबर कैलोरी और जूस के आहार से वजन तो शर्तिया घटता है और खास मेटाबोलिक प्रक्रियाओं में भी सुधार होता है, लेकिन यह तो किसी भी कम कैलोरी वाले वजन घटाने के आहार से हो सकता है. 2015 में टॉक्सीन दूर करने और वजन नियंत्रित करने के लिए डिटॉक्स आहार की गंभीर समीक्षा में पता चला कि कोई बेतरतीब नियंत्रण ट्रायल (रिसर्च में स्वर्णिम मानक) नहीं किया गया है, ताकि मानव शरीर पर व्यावसायिक डिटॉक्स आहार के कारगर होने का पता चले.
2019 के एक अध्ययन में शरीर के संतुलन या पाचन प्रक्रिया में कोई फायदेमंद असर नहीं पाया गया, जिसमें हिस्सेदारी करने वालों को चार हफ्ते तक 1,350 मिली ग्राम हर्बल सप्लीमेंट दिया गया था.
यह सब कहने के बावजूद अगर आप रोजाना भरपूर कैलोरी, शक्कर, घी-तेल वाले और दूसरे प्रसंस्कृत आहार लेते हैं तो नींबू-अदरख, दालचीनी-शहद मिला पानी, ग्रीन टी, खीरे-पुदीने के रस से कोई फायदा नहीं होता है. कोई भी इकलौता आहार या सप्लीमेंट आपकी सेहत के लिए चमत्कार नहीं कर सकता.
डिटॉक्स थेरेपी जोखिम भरी हो सकती है
डिटॉक्स थेरेपी के साइड इफेक्ट पौष्टिकता में कमी, लिवर को नुक्सान, भारी मात्रा में लेने के नुक्सान वगैरह हो सकते हैं. लंबे समय तक डिटॉक्स थेरेपी कई माइक्रो-न्यूट्रेंट और प्रोटीन की कमी पैदा कर सकती है और खून की कमी, प्रोटीन-ऊर्जा की कमी, मांसपेशियों की कमी, दिल की धडक़न बढने, कमजोर प्रतिरोधक प्रणाली वगैरह की शिकायत भी हो सकती है. खास बात यह है कि ज्यादातर डिटॉक्स आहार में प्रोटीन नहीं होती है, जो शरीर की स्वाभाविक डिटॉक्स प्रक्रिया के लिए जरूरी एंजाइम प्रतिक्रिया को बढ़ाने वाला अहम पोषक तत्व है. डिटॉक्स जूस में फाइबर वाले आहार नहीं होते हैं, जो गट माइक्रोबिओटा और पाचन क्रिया को ठीक से चलाने के लिए खास तत्व होते हैं.
आश्चर्य यह है कि लिवर को ‘साफ’ करने का दावा करने वाले डिटॉक्स चाय और सप्लीमेंट अमूमन अंगों को बहुत नुक्सान पहुंचाते हैं. एक 60 साल की महिला को 14 दिन तक लिवर डिटॉक्स चाय पीने से लीवर के भारी नुक्सान की रिपोर्ट दर्ज हुई. रिपोर्ट के लेखकों के मुताबिक, चाय में छह ऐसे अवयवों थे, जो हेपटोटॉक्सीक असर के लिए जाने जाते हैं. कई डिटॉक्स सप्लीमेंट में पाया जाने वाले ग्रीन टी से एलनाइन एमिनोट्रांसफेरेज (एएलटी) या एस्पैरटेट एमिनोट्रांसफेरेज (एएसटी) जैसे बॉयोमार्कर में इजाफा पाया गया, जो लिवर को नुक्सान पहुंचाने के लिए जाने जाते हैं.
तो, असली बात यह है कि आपको अपने अंगों या पूरे शरीर को साफ करने के लिए डिटॉक्स उत्पादों की दरकार नहीं है. ऐसे उत्पाद महंगे, कम पौष्टिकता वाले, हेपटोटॉक्सीक अवयवों वाले होते हैं और सुरक्षित उपभोग के लिए नियंत्रित नहीं हैं. अपने शरीर के डिटॉक्स सिस्टम को ठीक से काम करते देने के लिए संपूण खाद्य पदार्थों वाले संतुलित आहार और नियमित शारीरिक गतिविधि जरूरी है. डिटॉक्स स्कैम के झांसे में मत आइए, विज्ञान पर भरोसा कीजिए.
(डॉ. सुभाश्री राय डॉक्टोरल स्कॉलर (केटोजेनिक डाइट), सर्टिफाइड डायबटिज एडुकेटर, और क्लीनिकल तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य पौष्टिकता विशेषज्ञ हैं. डनका ट्विटर @DrSubhasree . व्यक्त विचार निजी हैं)