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Thursday, 21 November, 2024
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BJP से निकाले गए सीरियल दलबदलू, हरक रावत अभी भी उत्तराखंड में क्यों हैं बेशकीमती उम्मीदवार

BJP रावत को पार्टी-विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के लिए निष्कासित कर दिया, लेकिन उत्तराखंड चुनावों में उनकी सिलसिलेवार जीत को देखते हुए, कांग्रेस संभवत: उन्हें वापस लेने की इच्छुक हो सकती है.

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देहरादून: रविवार को जब उत्तराखंड मंत्री हरक सिंह रावत को आगामी विधान सभा चुनावों से पहले, पार्टी-विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के कारण बीजेपी से निष्कासित किया गया तो उनकी आंसू भरी प्रतिक्रिया कैमरे में क़ैद हो गई. लेकिन, रावत एक बहुत तेज़ निगाह वाले राजनेता हैं, जिनका दल बदलने का एक लंबा इतिहास रहा है.

प्रदेश बीजेपी को कई महीनों से संदेह बना हुआ था कि रावत विपक्षी कांग्रेस के साथ संपर्क बनाए हुए हैं, लेकिन बर्दाश्त की सीमा तब पार हो गई जब वो असेम्बली चुनावों के टिकटों को अंतिम रूप देने के लिए, 15 जनवरी को दिल्ली में पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में शामिल नहीं हुए (रावत का दावा था कि वो ट्रैफिक में फंस गए थे).

उत्तराखंड बीजेपी प्रमुख मदन कौशिक ने दिप्रिंट से कहा, कि रावत ने पार्टी शिष्टाचार की ‘सभी सीमाएं पार कर दीं थीं’. कौशिक ने कहा, ‘हरक सिंह रावत पार्टी की अहमियत को नहीं मान रहे थे, और समय समय पर विपक्षी नेताओं के साथ संपर्क साध रहे थे. मुख्यमंत्री हमेशा उनके प्रति उदार थे, और उनकी सारी इच्छाओं को मानते थे, लेकिन वो पार्टी अनुशासन की सारी सीमाओं को लांघने की कोशिश कर रहे थे. हर दूसरे दिन वो कांग्रेस के साथ नजदीकियां बढ़ा रहे थे’. कौशिक ने आगे कहा, ‘बीजेपी की नीतियों को दरकिनार करते हुए, वो केंद्रीय नेतृत्व पर अपने परिजनों को टिकट देने के लिए दबाव बना रहे थे’. रावत कथित रूप से अपनी बहू अनुकृति गोसाईं को पार्टी टिकट दिलाने के लिए पैरवी कर रहे थे, जो एक पूर्व मिस इंडिया हैं.

वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने भी कहा कि हरक रावत, दिल्ली में पार्टी नेतृत्व के साथ लगातार संपर्क बनाए हुए थे, और रविवार रात वो कांग्रेस पार्टी के चुनाव प्रचार प्रमुख हरीश रावत के साथ एक बैठक कर रहे थे, जब बीजेपी ने उन्हें कैबिनेट से निकालने, और छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित करने का ऐलान किया.

उत्तराखंड विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने दिप्रिंट से कहा कि हरक रावत कई महीनों से कांग्रेस नेताओं के साथ मिल रहे थे, लेकिन इसका मतलब ये ज़रूरी नहीं था, कि वो बीजेपी को छोड़कर जाना चाह रहे थे.

सिंह ने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी के दरवाज़े उन सबके लिए खुले हैं, जो बीजेपी को हराना चाहते हैं. लेकिन उनके पार्टी में शामिल होने को लेकर अंतिम फैसला, एआईसीसी अध्यक्ष सोनिया गांधी पर निर्भर करता है’.

अपने निकाले जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए, रावत ने कहा कि वो हमेशा बीजेपी के वफादार रहे हैं, और पार्टी सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों में बह गई है…लेकिन भगवान जो करता है वो किसी के भले के लिए ही करता है. अब मैं कांग्रेस में शामिल होउंगा चूंकि चुनावों के बाद वही सरकार बनाएगी. अगर मुझे उम्मीदवार नहीं बनाया जाता तो भी, मैं कांग्रेस पार्टी के लिए काम करूंगा’.


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पार्टियां बदलने का लंबा इतिहास

हरक सिंह रावत ने, जिनके पास सैन्य विज्ञान में डॉक्ट्रेट की डिग्री है, और जिन्होंने कुछ समय के लिए गढ़वाल के श्रीनगर में, हेमवती नंदन बहुगुणा यूनिवर्सिटी में रीडर के तौर पर काम किया है, अपना राजनीतिक करियर 1984 में बीजेपी के साथ शुरू किया था.

उन्होंने जो अपना पहला विधान सभा चुनाव लड़ा उसमें वो हार गए, लेकिन 1991 में पौड़ी विधान सभा सीट से जीत गए, जो पहले अविभाजित उत्तर प्रदेश में थी. उन्हें फिर स्वर्गीय कल्याण सिंह की बीजेपी सरकार में, सबसे युवा कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल किया गया.

बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद कल्याण सिंह सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया गया, जिसके पश्चात 1993 के मध्यावधि चुनावों में, रावत फिर विजयी रहे. 1996 में वो जनता दल में शामिल हो गए. एक साल बाद ही वो बीएसपी में चले गए, लेकिन 1998 के चुनावों में पौड़ी से पार्टी उम्मीदवार के तौर पर हार गए.

उसके बाद 1998 में रावत कांग्रेस में शामिल हो गए, और 18 साल तक उसके साथ बने रहे. 2000 में उत्तर प्रदेश का विभाजन हो गया, जिसके बाद उत्तराखंड का गठन हुआ, जिसके अंदर उनके चुनाव क्षेत्र आते हैं.

उत्तराखंड में निरंतर जीत का सिलसिला

हरक सिंह रावत का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा है, और वो कई विवादों के केंद्र में रहे हैं, लेकिन उन्होंने उत्तराखंड में कभी कोई असैम्बली चुनाव हारा नहीं है.

2002 में पहले उत्तराखंड असेम्बली चुनावों में, वो लेंसडाउन से चुने गए और जब नव-निर्मित सूबे में कांग्रेस ने पहली सरकार बनाई, तो वो एनडी तिवारी कैबिनेट में मंत्री बनाए गए.

2007 विधान सभा चुनावों में रावत कोटद्वार असैम्बली सीट से विजयी हुए. इस बार बीजेपी ने सरकार बनाई और रावत विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष बना दिए गए.

रावत ने अपना तीसरा प्रदेश चुनाव 2012 में रूद्रप्रयाग से जीता, और फिर से विजय बहुगुणा की कांग्रेस सरकार में एक कैबिनेट मंत्री बन गए. लेकिन, 2013 में बाढ़ से आई तबाही को ठीक से न संभाल पाने के कारण, बहुगुणा की तीखी आलोचना हुई और उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद फरवरी 2014 में हरीश रावत उनकी जगह सीएम बन गए.

2016 में बहुगुणा और आठ अन्य विधायक- जिनमें हरक सिंह रावत भी शामिल थे- दल बदलकर बीजेपी में चले गए, जब 2017 के विधान सभा चुनावों में एक साल से भी कम बचा था. रावत ने ये चुनाव बीजेपी के टिकट पर कोटद्वार असेम्बली सीट से लड़ा, और तत्कालीन सिटिंग मंत्री एसएस नेगी को हरा दिया.

BJP में अशांति भरा कार्यकाल

हरक सिंह रावत को 2017 में बीजेपी की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में, बतौर वन मंत्री शामिल किया गया, लेकिन उनके मुख्यमंत्री के साथ कभी अच्छे समीकरण नहीं रहे, जिन्हें 2021 में हटा दिया गया. मौजूदा सीएम पुष्कर सिंह धामी के साथ उनके रिश्ते बेहतर नज़र आते थे, लेकिन बीजेपी नेताओं के अनुसार मंत्री ‘नख़रे करने’ के लिए जाने जाते थे.

एक महीना पहले, वो ये आरोप लगाते हुए एक कैबिनेट मीटिंग से बाहर आ गए, कि उनके चुनाव क्षेत्र में चिकित्सा देखभाल के लिए पैसा जारी किए जाने की उनकी मांग मानी नहीं गई थी. इसके बाद वो 48 घंटे तक भूमिगत रहे, और उन्होंने इस्तीफे की भी धमकी दे दी, लेकिन आख़िर में सीएम ने उन्हें मना लिया. उस समय भी अटकलें तेज़ थीं, कि रावत कांग्रेस में लौट जाएंगे.

विवाद कोई बाधा नहीं

बीते वर्षों में रावत कई विवादों में घिरे रहे हैं, हालांकि उनका चुनावों में इनके प्रदर्शन पर कोई असर दिखाई नहीं पड़ा.

2003 में, रावत को मजबूरन एनडी तिवारी कैबिनेट से इस्तीफा देना पड़ा, जब एक महिला ने आरोप लगाया कि रावत ने उसका यौन शोषण किया था, और वो उसके नवजात शिशु के पिता थे. रावत ने बाद में दावा किया कि एक डीएनए जांच में साबित हो गया था, कि वो बच्चे के पिता नहीं थे.

2014 में, एक और स्कैण्डल सामने आया, जब उत्तर प्रदेश के मेरठ की एक महिला ने दिल्ली के सफदरजंग पुलिस स्टेशन में, हरक सिंह रावत के खिलाफ कथित यौन शोषण की एफआईआर दर्ज कराई. रावत के निजी जीवन में भी एक विवादास्पद मोड़ आया है, जिसमें उनकी पत्नी दीप्ती रावत ने आरोप लगाया, कि एक और महिला सोनिया आनंद रावत भी उनके साथ शादी होने का दावा कर रही है.

दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए रावत को कॉल किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक और पूर्व पत्रकार जय सिंह रावत ने दिप्रिंट से कहा, कि इन तमाम विवादों के बावजूद हरक सिंह रावत को अभी भी, एक जिताऊ उम्मीदवार के तौर पर देखा जाता है.

जय सिंह रावत ने कहा, ‘महिलाओं के बारे में स्कैण्डल्स और विवादास्पद राजनीतिक बयानात के बावजूद, उन्होंने उत्तराखंड में कभी कोई चुनाव हारा नहीं है. वो जिस भी चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़े हैं, वहां से विजयी रहे हैं’.


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