नई दिल्ली: चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) पूर्वी लद्दाख के हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में एक प्रमुख ठिकाने से भारतीय सैनिकों की वापसी की मांग कर रही है. इस संबंध में वरिष्ठ सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि दरअसल चीन को यह डर सता रहा है कि भारतीय सैनिक गलवान घाटी तक उसकी पहुंच को बाधित कर सकते हैं.
पिछले हफ्ते भारतीय और चीनी सैन्य कमांडरों की 13 घंटे की चली बैठक बिना किसी समझौते के खत्म हो गई और अब आगे की बातचीत होने की उम्मीद है.
वार्ता के बारे में जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा कि पीएलए कमांडरों ने भारतीय सैनिकों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्थित पेट्रोल प्वाइंट 15 से वापस बुलाने को कहा है, जो कि गलवान घाटी में चीनी ठिकानों तक पहुंच वाली सड़क से महज दो किलोमीटर दूर है.
अधिकारी ने कहा, ‘दोनों पक्ष सैद्धांतिक तौर पर इस पर राजी हैं कि दोनों देशों को अपने सैनिकों को पीछे हटाना चाहिए और परस्पर नो-पेट्रोल ज़ोन बनाना चाहिए, जैसा उन्होंने कहीं और किया भी है. लेकिन असहमति इस बात को लेकर बनी हुई है कि उन्हें कितनी दूर जाना चाहिए.’
रक्षा मंत्रालय ने अगस्त 2021 में घोषणा की थी कि गोगरा में प्वाइंट 17ए—जो कि प्वाइंट 15 की तरह ही एलएसी के पास है—के आसपास दोनों देशों की तरफ से सैन्य वापसी पूरी हो गई है.
बयान में कहा गया है, ‘दोनों पक्षों के सैनिक अब अपने-अपने स्थायी ठिकानों पर हैं. दोनों पक्षों की तरफ से क्षेत्र में बनाए गए सभी अस्थायी ढांचे और अन्य संबद्ध बुनियादी ढांचे ध्वस्त किए जा चुके हैं और पारस्परिक स्तर पर इसकी पुष्टि की जा चुकी है.’
दूसरे शब्दों में कहें तो भारतीय सेना गोगरा या प्वाइंट 17ए में अपने बेस के उत्तर-पूर्व में गश्त न करने पर सहमत हुई है जबकि इसके बदले में पीएलए ने अपने सैनिकों को उस ठिकाने पर नहीं भेजने की प्रतिबद्धता जताई है, जिसे नक्शे पर वेंकियन पोस्ट के तौर पर मार्क किया गया है और जिसे एलएसी में भारतीय हिस्से में होने का दावा किया जाता है.
समझौते के तहत एक तरह से विसैन्यीकृत क्षेत्र बनाया गया, जिसके बारे में दोनों देशों ने तय किया है कि अपने सैनिकों को वहां नहीं भेजेंगे. इसी तरह का समझौता फरवरी 2021 में हुआ था, जब दोनों देशों ने पैंगोंग त्सो झील के उत्तर और दक्षिण में एक नो-पेट्रोल जोन बनाया था.
चीन की आशंका, भारत का दावा
हालांकि, पेट्रोल प्वाइंट 15 के आसपास एक समान मीटिंग ग्राउंड ढूंढना बेमानी साबित हुआ है. यह ठिकाना कुछ साल पहले पीएलए द्वारा बनाई गई सड़क से सिर्फ दो किलोमीटर दूर है, जो गोगरा बेस के एकदम सामने पड़ने वाली वेंकियन बेस को गलवान घाटी से जोड़ती है.
इस सड़क के कारण ही 2020 की गर्मियों में गलवान में चीनी सैनिक काफी आसानी से पहुंच गए थे और यहां हुई झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे, और यह सड़क कभी भी आसानी से यहां चीनी सैनिकों की पहुंच को सुनिश्चित करती है.
संक्षेप में कहें तो पीएलए को डर है कि भविष्य के किसी भी संकट की स्थिति में भारतीय सेना अपने सैनिकों को आसानी से गलवान पहुंचाने के लिए प्वाइंट 15 का इस्तेमाल स्टेजिंग पोस्ट के तौर पर कर सकती है.
सरकारी सूत्रों ने कहा, भारत ने स्पष्ट तौर पर अपना पक्ष रखते हुए कि चीन ने अतीत में कभी भी इस तथ्य को विवादित नहीं माना कि पेट्रोल प्वाइंट 15 एलएसी के भारतीय हिस्से में है. यह इलाका लंबे समय तक भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की निगरानी में रहा है, जहां तैनात सैनिक नियमित रूप से प्वाइंट 17, या गोगरा से खुगरंग नदी पर प्वाइंट 15, 16 और 17ए तक गश्त करते थे.
एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने बताया कि 2015 में भारतीय सेना के एक गश्ती दल ने पीएलए का बुलडोजर देखा, जो गलवान की तरफ सड़क पर बढ़ रहा था और जवाब में इसे जब्त कर लिया. बाद में पीएलए ने दावा किया कि रास्ता भटक जाने की वजह से बुलडोजर वहां तक पहुंच पाया था और चीनी सेना काम रोकने पर भी सहमत हो गई.
अधिकारी ने कहा, ‘उस समय सड़क निर्माण के बारे में लंबी बातचीत हुई थी, लेकिन कभी ऐसा नहीं कहा गया कि प्वाइंट 15 एलएसी में हमारी तरफ नहीं आता है.’
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‘असमान छूट’
नई दिल्ली की तरफ से ऐसी आशंकाएं जताई जा रही है कि चीन सैन्य वापसी के लिए होने वाली वार्ताओं का इस्तेमाल एलएसी को पूर्व की ओर शिफ्ट करने के लिए कर रहा है यानी उस सीमा रेखा की तरफ धकेलने की कोशिश कर रहा जिसका दावा 1959 में तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई ने किया था और जिसे भारत खारिज कर चुका है.
1960 में सीमा मुद्दे पर सरकारी विशेषज्ञों की चर्चा के दौरान चीन ने दावा किया था कि सीमा रेखा ‘कुग्रांग त्संगपो नदी और उसकी सहायक नदी चांगलंग की जलधारा के बीच से गुजरती है’—यानी कि प्वाइंट 17ए के दक्षिण में है.
प्वाइंट 17ए तक गश्त नहीं करने के समझौते का मतलब यही माना जा रहा है कि भारत ने उस क्षेत्र पर दावा जताने का अपना अधिकार छोड़ दिया है—लेकिन जवाब में चीन ने यह दावा करना नहीं छोड़ा है कि एलएसी वहीं है जहां उसने 1959 में दावा किया था.
जैसा कि रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ मनोज जोशी कहते हैं कि पैंगोंग त्सो में नो-पेट्रोल जोन बनाने के समझौते में ‘असमान छूट’ भी शामिल है.
पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट पर हाथ की अंगुलियों की जैसी आठ कगारों में से फिंगर 4 पर चीन का दावा 1960 में उसके तथाकथित दावे वाली सीमा रेखा के पश्चिम तक ठीक है. 1960 की चर्चाओं में चीन ने एलएसी को फिंगर 7 और 8 तक बताया था.
दूसरे शब्दों में कहें तो फिंगर 3 और 8 के बीच फरवरी में बना विसैन्यीकृत क्षेत्र उस इलाके में है जिसे चीन ने औपचारिक वार्ताओं में एलएसी पर भारतीय पक्ष में होने की बात को स्वीकारा है.
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