बेंगलुरू: कोविड-19 से होने वाली गंभीर बीमारी और मौत के खिलाफ सबसे अहम हथियार जो आज हमारे पास है, वो हैं वैक्सीन्स जो वैश्विक सहयोग से रिकॉर्ड समय में तैयार करके बाज़ार में उतारी गईं थीं.
लेकिन, जैसे ही प्रतिरक्षा से बचने वाले और तेज़ी से फैलने वाले ओमिक्रॉन जैसे नए वेरिएंट्स सामने आते हैं, वैसे ही एक्सपर्ट्स वैक्सीन्स के बूस्टर शॉट्स की सिफारिश करने लगते हैं- जिन्हें भारत में एहतियाती ख़ुराक कहा जाता है.
दिप्रिंट बूस्टर शॉट्स के बारे में कुछ आम सवालों के जवाब देता है कि ये कैसे काम करते हैं, इम्यून सिस्टम को फायदा पहुंचाकर सुरक्षा को कैसे बढ़ाते हैं और उन्हें किसको लेना चाहिए.
वैक्सीन बूस्टर्स की ज़रूरत
वैक्सीन बूस्टर्स टीके की अतिरिक्त ख़ुराक होते हैं और ये उसी तरह से शरीर के इम्यून सिस्टम को सक्रिय करने का काम करते हैं. इस सिस्टम के सक्रिय होते ही शरीर में एंटीबॉडीज़ बनने लगते हैं.
वैक्सीन के हर डोज़ के साथ, जिनके बीच अंतराल होता है, इम्यून रेस्पॉन्स का स्तर बढ़ जाता है. अतिरिक्त बूस्टर्स से इम्यून रेस्पॉन्स ज़्यादा सटीक और पैना हो जाता है और हमारे सिस्टम में पैदा होने वाले एंटीबॉडीज़ की मात्रा भी बढ़ जाती है.
टीकाकरण के दोहराव में पैदा हुए नए एंटीबॉडीज़ आमतौर पर अधिक लक्षित होते हैं और ये वायरस को ज़्यादा तेज़ी और बेहतर ढंग से निष्क्रिय करने में सक्षम होते हैं, जिससे तेज़ी से फैल रहे किसी वेरिएंट का प्रसार कम हो जाता है.
बूस्टर्स इम्यून रेस्पॉन्स कैसे सुधारते हैं?
हमारे इम्यून रेस्पॉन्स के दो प्रमुख अंश होते हैं: ह्यूमोरल रेस्पॉन्स और सेल-मीडिएटेड रेस्पॉन्स.
ह्यूमोरल रेस्पॉन्स का वास्ता एंटीबॉडीज़ से होता है. हेल्पर टी-सेल्स की मदद से हमारे शरीर के बी-सेल्स सक्रिय हो जाते हैं और एंटीबॉडीज़ बनाना शुरू कर देते हैं. निष्क्रिय करने वाले एंटीबॉडीज़ फिर किसी भी आज़ाद घूम रहे वायरस को, सेल्स में दाख़िल होने से पहले ही गला देते हैं.
सेल्युलर इम्यूनिटी का ताल्लुक़ टी-सेल्स से होता है. वही हेल्पर टी-सेल्स साइटोटॉक्सिक टी-सेल्स को सक्रिय करते हैं, जो फिर हमारे शऱीर के अंदर संक्रमित सेल्स को नष्ट कर देते हैं, जिससे वायरस प्रजनन रुक जाता है. संक्रमण या टीकाकरण के बाद जब एंटीबॉडी स्तर गिर जाता है, तब भी अगर हमारे शरीर का स्वाभाविक रूप से पैथोजन से सामना होता है, तो टी-सेल्स तेज़ी के साथ जवाब देने में सक्षम होते हैं.
हर वैक्सीन या बूस्टर डोज़ के साथ, सक्रिय होने वाले बी-सेल्स की संख्या बढ़ जाती है, जिसके नतीजे में निष्क्रिय करने वाले एंटीबॉडीज़ में भी इज़ाफा हो जाता है. ये बी-सेल्स शरीर के लिंफ नोड्स से होकर गुज़रते हैं, और अपने आपको ठीक करके वायरस के साथ मज़बूती, और तेज़ी से चिपकने में ज़्यादा कुशल हो जाते हैं. इसे एफिनिटी मैच्युरेशन कहा जाता है.
क्या हम बूस्टर ख़ुराकों को मिलाकर प्रयोग कर सकते हैं?
वैज्ञानिक साक्ष्य अभी तक संकेत देते हैं, कि उसी सीरीज़ के वैक्सीन का तीसरा डोज़ लेने की बजाए, ‘हेटरोलॉगस’ वैक्सीन्स या मिलाकर मैच की गई वैक्सीन्स, बेहतर इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करती हैं.
हालांकि कोविशील्ड और कौवैक्सीन को मिलाने के ट्रायल्स अभी नहीं हुए हैं, लेकिन उनके ऐसा ही नतीजा देने की संभावना है.
बूस्टर शॉट कब लेना चाहिए?
जब संक्रमण का असर ख़त्म हो जाने पर, शरीर का इम्यून रेस्पॉन्स भी ठंडा पड़ जाता है, और एंटीबॉडी स्तर भी गिरने लगता है. फिलहाल, हमें नहीं मालूम कि एंटीबॉडीज़ में गिरावट के किस स्तर पर, किसी व्यक्ति की सुरक्षा ख़त्म हो जाती है. काफी मज़बूत आंकड़े हैं जिनसे संकेत मिलता है, कि एक अकेला डोज़ भी गंभीर बीमारी,अस्पताल भर्ती, और बहुत से मामलों में अन्य गंभीर बीमारियों के न होने पर, मौत से भी बचा सकता है.
बूस्टर या एहतियाती ख़ुराक ऐसे समय पर ली जानी है, जब स्टडीज़ से पता चले कि टीकाकरण के बाद, इम्यूनिटी में काफी गिरावट आ गई है. अलग-अलग वैक्सीन के बीच में अंतराल भी अलग होता है.
मसलन, फाइज़र वैक्सीन्स तब कारगर होती हैं, जब उन्हें 21 दिन के अंतराल से लिया जाता है, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका 12 हफ्ते के बाद, और जेएंडजे शॉट्स तब बेहतर इम्यून रेस्पॉन्स दिखाती है, जब छह महीने के बाद बूस्टर दिया जाता है, वग़ैरह वग़ैरह, जैसा कि ट्रायल्स से संकेत मिलता है.
लेकिन, बूस्टर ख़ुराकों की समय सारिणी वैक्सीन उपलब्धता और किसी देश में संक्रमण के प्रसार की अवस्था पर निर्भर करती है.
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