नई दिल्ली: पाकिस्तान कथित तौर पर इस साल मार्च तक चीन से मिलने वाले 25 जे-10सी लड़ाकू जेट विमानों को अपने बेड़े में शामिल करने की तैयारी में है. इजरायली कनेक्शन वाले इन विमानों को शामिल किया जाना भारत द्वारा 36 राफेल विमानों की खरीद के जवाब में उठाया गया कदम माना जा रहा है.
यह घोषणा पाकिस्तानी गृह मंत्री शेख रशीद अहमद ने पिछले हफ्ते रावलपिंडी में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान की थी. इस मौके पर मंत्री ने कहा कि पाकिस्तानी वायु सेना 23 मार्च को पाकिस्तान दिवस के अवसर पर 25 जे-10सी’ के साथ फ्लाईपास्ट करेगी, जो कि भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह के जैसा आयोजन होता है.
रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों का कहना है कि 25 का आंकड़ा हैरान करने वाला है क्योंकि एक स्क्वाड्रन में 18 लड़ाकू विमान ही होते हैं. सूत्रों ने आगे कहा कि बहुत संभव है कि इनमें से कुछ लड़ाकू विमानों का उपयोग पाकिस्तान एयरोनॉटिकल कॉम्प्लेक्स की तरफ से रिसर्च और इंटीग्रेशन और पाकिस्तानी युद्धक प्रशिक्षण स्कूल में ट्रेनिंग के लिए किया जाए.
इसके अलावा, जहां रशीद अहमद ने कहा कि 25 विमान फ्लाई-पास्ट करेंगे और यह अधिग्रहण भारत के राफेल का जवाब है, ऐसी संभावना है कि पाकिस्तान को वास्तव में कुछ और हासिल हो रहा हो.
हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान वास्तव में उन लड़ाकू विमानों को खरीद रहा है, जिसे 2000 के दशक के शुरुआत से ही पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स (पीएलएएएफ) इस्तेमाल कर रही है, या फिर लोन पर चीन से ले रहा है. विमानन विशेषज्ञों और सूत्रों का कहना है कि नवीनतम संस्करण जे-10सी की तुलना राफेल से नहीं की जा सकती.
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जे-10सी और राफेल में क्या अंतर है
जे-10सी और राफेल के बीच कोई तुलना संभव नहीं है, खासकर इसलिए क्योंकि राफेल वैश्विक मान्यता प्राप्त मिसाइल सिस्टम और नवीनतम इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट के साथ आने वाला एक ट्विन-इंजन लड़ाकू विमान है.
लंबे समय से पाकिस्तान की नजर में रहा जे-10सी असल में सिंगल इंजन फाइटर प्लेन है, जो राफेल की तुलना में अलग ही लीग में आता है. रक्षा सूत्रों ने बताया कि जे-10सी की डिजाइन और प्रेरणा कबाड़ में डाले जा चुके 1980 के दशक के एक इजरायली फाइटर प्रोग्राम से ली गई है.
थिंक टैंक सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज के निदेशक एयर मार्शल अनिल चोपड़ा (रिटायर) ने दिप्रिंट से कहा, ‘जे-10सी की मुख्य समस्या इसका इंजन है. वे रूसी इंजन का उपयोग कर रहे थे और अब अपना खुद का विकसित इंजन उपयोग कर रहे हैं. दूसरा मसला एईएसए रडार के साथ है, यह एक ऐसी तकनीक है जिस पर पश्चिमी देशों ने महारत हासिल कर ली है और चीन को अभी इस पर मेहनत करनी है.’
उन्होंने कहा कि जे-10सी की तुलना राफेल से नहीं की जा सकती क्योंकि दोनों वजन और इसमें इस्तेमाल होने वाले हथियारों के मामले में अलग-अलग वर्ग में आते हैं.
उन्होंने कहा, ‘जे-10सी की हवा से हवा में मार करने वाली मुख्य मिसाइल पीएल-15 बियॉन्ड विजुअल रेंज (बीवीआर) मिसाइलें हैं, जिनकी सीमा के बारे में केवल उतनी ही जानकारी है जितना चीन दावा करता है.’
चीनियों का दावा है कि पीएल-15 की रेंज लगभग 140-150 किलोमीटर है, जो दरअसल राफेल के बराबर ही है. लेकिन राफेल की रेंज को टेस्ट के आधार पर मान्यता हासिल है जबकि पीएल-15 के मामले में ऐसा नहीं है.
चोपड़ा ने यह भी कहा कि राफेल पर इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट नवीनतम है और इसकी तुलना चीनी तकनीक से नहीं की जा सकती है, जिसका वास्तविक युद्धक परिदृश्य में परीक्षण भी नहीं किया गया है.
क्या है इजरायली कनेक्शन
ऐसा माना जाता है कि जे-10सी मूलत: इजरायल के अरबों डॉलर वाले लावी फाइटर जेट कार्यक्रम से प्रेरित है, जिसे अगस्त 1987 में रोक दिया गया था.
एयर मार्शल चोपड़ा ने कहा, ‘जे-10 का डिजाइन मूलत: इजरायल के लावी फाइटर प्रोग्राम से लिया गया है जिसे एफ-16 लड़ाकू विमानों के आधार पर तैयार किया गया था. 1980 के दशक के अंत में इजरायली वायु सेना ने यह कार्यक्रम रोक दिया और चीनियों ने इसे अपनाया और डिजाइन में कुछ परिवर्तन कर दिए.’
गौरतलब है कि 1988 में तत्कालीन इजरायली रक्षामंत्री यित्जाक राबिन ने संडे टाइम्स ऑफ लंदन की उस रिपोर्ट का खंडन किया था जिसमें दावा किया गया था कि इजरायल और चीन मिसाइलों और फाइटर जेट प्रोग्राम पर एक साथ काम कर रहे हैं.
उस समय, चीन और इजरायल के बीच राजनयिक संबंध नहीं थे, लेकिन फिर भी दोनों देशों के बीच व्यापार होता था.
रिपोर्ट में दावा किया गया था कि इजरायल चीन को उन्नत मिसाइल तकनीक बेचने और लावी से हासिल तकनीक का उपयोग करके एक लड़ाकू विमान विकसित करने में मदद देने के लिए सहमत हो गया था.
नेशनल इंटरेस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन को लावी प्रोग्राम से किया गया एक प्रमुख इजरायली निर्यात पायथन-3 हीट-सीकिंग मिसाइल का था, जिसका लाइसेंस 1989 में चीन के शीआन एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन को पीएल-8 मिसाइल के तौर पर उत्पादन के लिए दिया था और यह आज भी सेवा में है.
नेशनल इंटरेस्ट की रिपोर्ट में आगे बताया गया, ‘दरअसल, 1980 के दशक के दौरान अमेरिका और पश्चिमी यूरोप भी चीन को सैन्य प्रौद्योगिकी का निर्यात कर रहे थे, जिसे तब सोवियत संघ के साथ संतुलन साधने के तौर पर देखा जाता था. अमेरिकी कंपनियों ने बीजिंग के साथ मिलकर उन्नत जे-7 और जे-8 लड़ाकू विमानों को भी विकसित किया. हालांकि, 4 जून 1989 को थ्येन ऑन मन नरसंहार के बाद चीन-पश्चिमी देशों के बीच रक्षा सहयोग अचानक बंद हो गया.’
रक्षा सूत्रों ने बताया कि यद्यपि चीन और इजरायल साथ मिलकर काम कर रहे थे लेकिन अमेरिकी दबाव में तेल अवीव ने अपने कदम पीछे खींच लिए और बीजिंग स्वतंत्र रूप से युद्धक विमान कार्यक्रम पर आगे बढ़ा.
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