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Friday, 22 November, 2024
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क्या पत्नी के साथ जबरन सेक्स अब अपराध की कैटेगरी में आ सकेगा

उम्मीद की जानी चाहिए कि विवाहित महिलाओं की गरिमा और उसकी निजता के अधिकार से संबंधित इस महत्वपूर्ण विषय का जल्द ही कोई न्यायिक समाधान निकलेगा.

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‘मैरिटल रेप’ विवाहित स्त्रियों के मौलिक अधिकारों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है लेकिन पत्नी के साथ उसकी मर्जी के बगैर यौनाचार को बलात्कार के अपराध की श्रेणी में शामिल करने के सवाल पर अभी तक कोई सुविचारित न्यायिक व्यवस्था नहीं है. लेकिन अब गुजरात उच्च न्यायालय ने स्त्रियों की गरिमा को ध्यान में रखते हुए इससे संबंधित कानूनी अपवाद की संवैधानिक वैधता पर विचार करने का निश्चय किया है.

उच्चतम न्यायालय ‘मैरिटल रेप’ को बलात्कार की श्रेणी में शामिल करने के सवाल पर विचार करने से इंकार कर चुका है और सरकार भी इस कृत्य को बलात्कार की श्रेणी में शामिल करने पर विचार करने से इंकार कर चुकी है. न्यायिक व्यवस्था के अभाव और सरकार के कथन के बावजूद यह सवाल लगातार किसी न किसी रूप में सुर्खियों में बना हुआ है क्योंकि विवाहित महिलाएं चाहती हैं कि उनकी मर्जी के बगैर पति द्वारा यौनाचार को बलात्कार की श्रेणी में शामिल किया जाए.

लंबे समय तक न्यायपालिका की न-नुकुर के बावजूद अब भारतीय दंड संहिता में बलात्कार के अपराध से संबंधित धारा 375 में प्रदत्त अपवाद -2 न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ गया है. यह अपवाद पत्नी की मर्जी के बगैर उसके साथ यौनाचर को बलात्कार के अपराध की श्रेणी से बाहर रखता है.

शाहबानो प्रकरण में 1985 में शीर्ष अदालत ने महिलाओं के हितों की रक्षा के उद्देश्य से समान नागरिक संहिता की हिमायत करते हुए टिप्पणी की थी कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा तो अब ऐसा लगता है कि गुजरात उच्च न्यायालय ने इस काम को अंजाम देने का निश्चय किया है.

उच्च न्यायालय ने स्त्री के मौलिक अधिकार से जुड़े इस मुद्दे अर्थात पत्नी की मर्जी के बगैर पति के यौनाचार के कृत्य से संबंधित धारा 375 के अपवाद-2 की संवैधानिक वैधता पर विचार करने के लिए तैयार हो गया है.

उच्च न्यायालय के समक्ष विचारणीय सवाल यह है कि क्या धारा 375 के अपवाद-2 को मनमाना और असंवैधानिक करार दिया जा सकता है और क्या ‘मैरिटल रेप’ जैसा कृत्य स्त्री के यौन स्वायत्तता के मौलिक अधिकार को उसके पति की मर्जी के अधीन बनाता है.


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याचिका में कहा गया है कि धारा 375 में प्रदत्त यह अपवाद बलात्कार के ही एक गंभीर रूप के अपराध के लिए सजा से पति को छूट देता है. एक दलील यह भी है कि इस अपवाद की वजह से गर्भवती पत्नी से जबरन यौनाचार, निशक्ता के किसी भी स्वरूप से ग्रस्त पत्नी के अपनी सहमति देने में असमर्थता और बार बार पत्नी की इच्छा के बगैर जबरन यौनाचार कर उसके जीवन को खतरे में डालने जैसे कृत्य के लिए अन्यथा कानून में प्रदत्त सजा से पति बच निकलता है.

उच्च न्यायालय की इस पहल से एक बात तो निश्चित है कि आने वाले समय में ‘मैरिटल रेप’ के मुद्दे पर नये सिरे से बहस होगी और इसे न्यायिक व्यवस्था के माध्यम से परिभाषित भी किया जायेगा. इसका नतीजा यह होगा कि अंतत: महिलाओं के अधिकारों के संबंध में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 अपवाद-2 को लेकर छिड़ी बहस किसी न किसी निर्णायक मोड़ पर पहुंच जायेगी.

उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जेबी पार्दीवाला और न्यायमूर्ति नीरल आर मेहता की पीठ ने Jaideep Bhanushankar Verma vs. Union of India प्रकरण में धारा 375 के अपवाद-2 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर अटार्नी जनरल, केंद्र और गुजरात सरकार से जवाब मांगे हैं. इस मामले में 19 जनवरी को आगे विचार किया जायेगा.

इस समय, वैवाहिक जीवन में पत्नी की मर्जी के बगैर उसके साथ जबरन दैहिक संबंध स्थापित करना अपराध नहीं है लेकिन कुछ न्यायिक व्यवस्था में पति के ऐसे कृत्य को मानसिक क्रूरता मानते हुए इसे तलाक का आधार माना है. इन व्यवस्थाओं के बावजूद लंबे समय से मैरिटल रेप को बलात्कार के अपराध की श्रेणी में शामिल करने और भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद-2 को खत्म करने की मांग बदस्तूर जारी है.

उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर केंद्र और अटार्नी जनरल आदि को नोटिस जारी करते समय 53 पन्ने के अपने आदेश में विभिन्न परिस्थितियों, व्यवस्थाओं और विचारों को विस्तार से समाहित किया है.

न्यायालय इस तथ्य से भी भलीभांति अवगत है कि कोई कानून बनाना विधायिका का नीतिगत फैसला होता है. इस विषय के संदर्भ में संसद की यही राय थी कि विभिन्न परिस्थितियों से निपटने के लिए अलग तरीके के कानून में प्रावधान की आवश्यकता होगी. ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि क्या न्यायालय के पास संसद को कानून में संशोधन करने का निर्देश देने का अधिकार है तो इसका जवाब नकारात्मक ही होगा क्योंकि विधायिका के नीतिगत फैसले में न्यायालय को हल्के तरीके से हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.

लेकिन न्यायालय ने यह भी महसूस करता है कि यही समय है कि न्यायालय अपने रिट अधिकार का इस सवाल पर विचार करने के लिए इस्तेमाल करें कि क्या धारा 375 अपवाद-2 को स्पष्ट रूप से मनमाना घोषित किया जा सकता है क्योंकि यह महिला के यौन स्वायत्तता के मौलिक अधिकार को उसके पति की मनमर्जी के अधीन बनाता है.

वैसे वैवाहिक जीवन में पत्नी के साथ बलपूर्वक यौन संबंध स्थापित करने के बारे में एक गैर सरकारी संगठन Independent Thought vs Union of India प्रकरण में शीर्ष अदालत अपने फैसले में स्पष्ट कर चुका है कि 18 साल से कम आयु की स्त्री, भले ही वह विवाहित क्यों नहीं हो, से यौनाचार करना बलात्कार है और ऐसे मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में प्रदत्त अपवाद-2 अनावश्यक है.

इस प्रकरण में न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने अक्टूबर, 2017 में अपने अलग अलग लेकिन परस्पर सहमति के फैसले में स्पष्ट किया था कि उन्होंने वयस्क स्त्री के साथ ‘मैरिटल रेप’ के सवाल पर विस्तार से विचार नहीं किया है क्योंकि इसे उनके सामने नहीं उठाया गया था.

शीर्ष अदालत के समक्ष चूंकि विवाहित वयस्क स्त्री से जबरन यौन संबंध स्थापित करने का मामला नहीं था, इसलिए उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है.

इस मामले में जयदीप भानुशंकर वर्मा ने जनहित याचिका दायर कर धारा 375 के अपवाद-2 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है. उनकी दलील है कि भारतीय दंड संहिता में प्रदत्त यह प्रावधान मनमाना, अनुचित और असंवैधानिक है और इससे समता के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार, निजता के अधिकार और गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार की स्वतंत्रता जैसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों के साथ ही स्त्री के मानव अधिकारों का भी हनन होता है.

यही नहीं, यह दलील भी दी गई है कि किसी महिला को जबरन यौनाचार से कानून में प्रदत्त संरक्षण धारा 375 का अपवाद-2 दो वापस लेता है और पत्नी अपनी मर्जी के खिलाफ अपनी देह की अखंडता, यौन स्वायत्तता (यौनाचार से इंकार करने का अधिकार) और देह की निजता का समर्पण करती है.

याचिकाकर्ता ने वैवाहिक जीवन में पत्नी के साथ जबरन यौनाचार के मामलों में पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में प्रदत्त अपवाद-2 से जुड़े मुद्दे पर शीर्ष अदालत की व्यवस्था हालांकि 18 साल से कम आयु की स्त्री से यौन संबंध को बलात्कार घोषित करने के बारे में है लेकिन निश्चित ही वयस्क पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध स्थापित करने को बलात्कार घोषित करने के सवाल पर सुनवाई के दौरान इन टिप्पणियों की ओर सभी का ध्यान आकर्षित किये जाने की संभावना है.

उम्मीद की जानी चाहिए कि विवाहित महिलाओं की गरिमा और उसकी निजता के अधिकार से संबंधित इस महत्वपूर्ण विषय का जल्द ही कोई न्यायिक समाधान निकलेगा जिससे वैवाहिक जीवन में स्त्रियों का बलपूर्वक या मर्जी के बगैर ही उसके दैहिक शोषण और जबरन यौनाचार से उनका संरक्षण संभव हो सकेगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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