प्रयागराज के जुही कोठी गांव में वोट देना किसी का व्यक्तिगत मामला नहीं है. वह तो बस एक ही की पसंद है, जिसे लगभग हर कोई मानेगा. मिलिए 70 साल की दुइजी अम्मा से, जो न सिर्फ गांववालों के झगड़ेनिपटाती हैं, बल्कि उनके वोट देने का रुझान भी तय करती हैं. जिसे अम्मा चुनती हैं, गांव के वोटर उसी को वोट देते हैं. सो, आश्चर्य नहीं कि शंकर गढ़ ब्लॉक में स्थित छोटे-से गांव में 2020 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी शायद वही होगा. सही है कि स्थानीय नेता यहां प्रचार करने आते हैं, विभिन्न सोशल मीडिया और कुछ घरों में टीवी के जरिए राजनैतिक संदेश भी आते हैं, जो लोगों की पसंद पर भी उसका असर होताही है. लेकिन मोटे तौर पर गांववाले कहते हैं कि दुइजी अम्मा वोटिंग की पूर्व संध्या पर चाहे जिसे चुनें.
राजनैतिक पार्टियां का रुख इस पर क्या है? जो भी यहां आता है, दुइजी अम्मा हर किसी से मिलती हैं. वे उनका स्वागत करती हैं और उनसे प्यार से कहती हैं कि वे उनके लिए जो भी अच्छा होगा, करेंगी. अमूमन वेउनसे कहती हैं, ‘जरूर करब.’ जब कोई उनका समर्थन पाने को उतावला दिखता है तो कई बार वे कहती हैं, ‘अभी तो बहुत दिन बाकी है.’
बाकी सामुदायिक नेताओं जैसी नहीं
दुइजी अम्मा कोल समुदाय की है, जो इलाके का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है. हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार उसे अनूसूचित जाति घोषित कर चुकी है. समुदाय के लोग अपने लिए अनुसूचित जनजाति के दर्जेकी मांग कर रहे हैं. स्कूल न गईं दुइजी अम्मा समुदाय के सरोकार समझती हैं और जो भी राजनैतिक पार्टी उनसे संपर्क करती है, सबसे यह मुद्दा उठाती हैं. वे सतर्क, समझदार हैं और हर फैसले अपनी अंतरदृष्टि सेकरती हैं. वे कैसे तय करती हैं कि किस पार्टी और उम्मीदवार को वोट दिया जाए? उनका जवाब था, ‘जान सुनकर.’
दुइजी अम्मा का बेटों, बेटियों और बहुओं का लंबा-चौड़ा परिवार है. वे सभी अलग-अलग झोपडिय़ों में रहते हैं मगर शांति और सौहार्द के साथ. वे जंगल से ताड़ और खजूर के पत्ते लाती हैं, उनसे झाड़ू बनाती हैं और पड़ोस के गांव में बेचती हैं. वे अपने समाज की अघोषित नेता हैं और उन्होंने लंबे समय से बनाए गांववालों से अपने सामजिक रिश्ते और ‘भरोसे’ से इसे हासिल किया है. गांववाले उन्हें ‘अम्मा’ कहते हैं. गांववालेकहते हैं, वे बुरे वक्त में हर किसी की मदद और समर्थन करते हैं.
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कम चर्चित, हाशिए के नेता
मनुष्य के पारंपरिक ढांचे में संबंध कायम करना हमारे आधुनिक, लोकतांत्रिक ढांचे से कम महत्वपूर्ण नहीं है और जुही कोठी गांव में बतौर ‘नेता’ दुइजी अम्मा की सामाजिक हैसियत में वैसे ही तर्कसंगत और अहमतत्व है. हम कई हाशिए के समुदायों में ऐसे सामाजिक नेताओं को पाते हैं. दुर्भाग्य से, हम न इन चेहरों को जानते हैं, न उन्हें समझते हैं, जो देश के चुनावी लोकतंत्र को आकार देते हैं. वे न तो निर्वाचित हैं, न प्रधान हैं,मगर उनमें कई को निर्वाचित नेताओं से ज्यादा वैधता और स्वीकार्यता हासिल है. इसका एक रूप खाप चौधरी या जाति चौधरी में दिखता है, लेकिन दुइजी अम्मा जैसे लोगों के नेतृत्व का मामला कुछ अलहदा है.
दुइजी अम्मा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में बात करती हैं और उनके मुफ्त राशन और पेंशन कार्यक्रम की तारीफ करती हैं. वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बात भी करती हैं और प्रियंका गांधी औरअखिलेश यादव के प्रति प्यार दिखाती हैं. लेकिन उन्होंने और इस तरह जुही कोठी के बड़ी संख्या में लोगों ने अभी तय नहीं किया है कि 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में किसे वोट देंगे. हमेशा की तरह, वेकहती हैं कि यह वोटिंग के दिन की पूर्व संध्या पर पता चलेगा.
(लेखक इलाहाबाद में जी.बी. पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर और निदेशक हैं. उनका ट्विटर @poetbadri. विचार निजी हैं)
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