नई दिल्ली: ऐसा कहा जाता है कि तीसरा विश्व युद्ध जब भी होगा, पानी के कारण ही होगा. पानी की दिक्कत दुनियाभर के कई देशों में एक बड़ी समस्या बनकर खड़ी हो रही है. भारत में भी कई इलाके हैं, जहां पीने के पानी के लिए भी लोगों को घंटों चलकर जाना होता है. भारत की लगभग 63 प्रतिशत आबादी को आज भी पीने के पानी के लिए घर से बाहर निकलना पड़ता है. कई राज्यों में हालात इतने खराब हैं बच्चे और महिलाएं कई किलोमीटर पैदल चलकर पानी भरने के लिए जाते हैं.
यूनिसेफ के दिए आंकड़ों के मुताबिक देश की 50 प्रतिशत से भी कम आबादी के पास पीने के साफ पानी की पहुंच है. इसके अलावा मुख्य रूप से फ्लोराइड और आर्सेनिक के जरिए पानी का रासायनिक संदूषण 19 लाख लोगों के घरों में पहुंचता है.
देश में पानी की इस दिक्कत से निपटने के लिए भारत सरकार ने 15 अगस्त, 2019 को ‘जल जीवन मिशन’ की शुरुआत की थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए इस मिशन का लक्ष्य है कि साल 2024 तक भारत के ग्रामीण इलाकों के सभी घरों में ‘नल से जल’ पहुंचे. 20 दिसंबर को दिल्ली में मौजूद गुजरात भवन में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जहां जल जीवन मिशन’ के अपर सचिव और निदेशक भरत लाल ने मिशन से जुड़ी कुछ जानकारियां साझा कीं.
‘2 साल में 5 करोड़ से ज्यादा घरों में नल कनेक्शन’
भरत लाल ने बताया कि कोरोना महामारी के चलते ‘जल जीवन मिशन’ की रफ्तार थोड़ी धीमी रही, लेकिन मिशन के तहत अब तक 5 करोड़ 44 लाख ग्रामीण घरों में पीने के पानी के नल कनेक्शन उपलब्ध कराए गए हैं. जिसके बाद देशभर में अब 8.67 करोड़ से ज्यादा ग्रामीण घरों में शुद्ध पेयजल की सप्लाई नल के जरिए हो रही है.
भारत में कुल ऐसे 19 करोड़ ग्रामीण घर थे, जहां पीने के पानी के नल उपलब्ध नहीं थे. अब 8 करोड़ से ज्यादा घरों में कनेक्शन उपलब्ध है. यानी देश की लगभग 45 प्रतिशत आबादी.
मिशन के तहत ग्रामीणों को सिर्फ नल कनेक्शन ही नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता देखकर उसे अपडेट करने की सुविधा भी उपलब्ध कराई जा रही है. ग्राम पंचायतों में चुने गए कुछ लोगों को ऐसे उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं जो पानी की गुणवत्ता जांचने में कारगर हैं. अब तक 8 लाख से ज्यादा लोगों को पानी की टेस्टिंग कर उन्हें अपलोड करने की ट्रेनिंग दी जा चुकी है.
कुछ राज्यों में मिशन की रफ्तार धीमी
‘जल जीवन मिशन’ के लिए इस साल 50 हजार करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया गया था, लेकिन इसके बावजूद कुछ राज्य ऐसे रहे जिनमें फंड का इस्तेमाल ठीक तरीके से नहीं किया जा सका. जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने फरवरी में कहा था कि जल जीवन मिशन के लिए पश्चिम बंगाल को आवंटित धन पिछले वित्त वर्ष में खर्च नहीं हुआ और राज्य ने इस मुद्दे पर सहयोग नहीं दिखाया.
मिशन का लक्ष्य है कि साल 2024 तक देश के हर ग्रामीण घर में पीने के पानी का नल कनेक्शन मुहैया कराए जाए. मोदी सरकार द्वारा चलाया गया है मिशन पानी की सप्लाई पर ध्यान दे रहा है. लेकिन ऐसी कई रिपोर्ट्स सामने आई है जो पानी की बढ़ती मांग से पैदा होने वाले संकट की ओर इशारा करती हैं.
विश्व बैंक द्वारा आयोजित एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी 2030 विश्व संसाधन समूह का मानना है कि बढ़ती आबादी और मौजूदा प्रैक्टिस के साथ, दुनिया को 2030 तक की मांग और पानी की उपलब्ध सप्लाई के बीच 40 प्रतिशत की कमी का सामना करना पड़ेगा.
ऐसी ही समस्या भारत में देखने को मिलेगी.
सप्लाई से ज्यादा हो जाएगी मांग
देश की नई जल नीति की 11 सदस्यीय समिति की अध्यक्षता करने वाले मिहिर शाह कहते हैं कि अगर हमें पानी की समस्या से निपटना है तो सप्लाई की जगह डिमांड पर भी ध्यान देने की जरूरत है.
वो कहते हैं, ‘हाल के अनुमान बताते हैं कि अगर मांग का मौजूदा पैटर्न जारी रहा, तो 2030 तक पानी की राष्ट्रीय मांग का लगभग आधा हिस्सा भी पूरा नहीं होगा’
पानी की मांग को नियंत्रित करने के सुझाव देते हुए वे कहते हैं कि इसके लिए खेती और उद्योग क्षेत्र में पानी का सही इस्तेमाल, रिसाइकल्ड पानी का दोबारा इस्तेमाल जरूरी है.
इसके अलावा शहरों को अनिवार्य रूप से सभी गैर-पीने के पानी के इस्तेमाल जैसे फ्लशिंग, अग्नि सुरक्षा, वाहन धुलाई, भूनिर्माण, बागवानी आदि को स्थानांतरित करना चाहिए.
हालांकि भारत सरकार द्वारा चलाया यह मिशन पानी की सप्लाई पर काम कर रहा है. जिसके तहत कई करोड़ ग्रामीणों को पानी कनेक्शन मिल चुका है. लेकिन सवाल यह है कि अगर उन नलों में जाने के लिए पानी ही नहीं रहेगा तो ये सारी नीतिया और मिशन कितने कारगर होंगे? इसीलिए जरूरी है कि जल जीवन मिशन के साथ-साथ कुछ ऐसे मिशन भी चलाए जाएं जो पानी की मांग पर भी काम करें.
यह भी पढ़ें- पीएम मोदी ने जल जीवन मिशन ऐप लॉन्च किया, कहा- जो काम सात दशकों में नहीं हुआ उससे अधिक दो साल में किया