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Friday, 22 November, 2024
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चन्नी की CM के रूप में नियुक्ति ने कैसे पंजाब में दलित वोटों के लिए कांग्रेस-AAP में लड़ाई शुरू कर दी

आप के शीर्ष नेता ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को पद छोड़ने के लिए मजबूर किए जाने के बाद सितंबर के अंत में दलित समुदाय के चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस शासित राज्य का नया मुख्यमंत्री बनाए जाने से आप के लिए स्थितियां थोड़ी मुश्किल हो गईं.

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नई दिल्ली: सम्मान सभाओं, विशेष गारंटी और आउटरीच टीमों—के साथ आम आदमी पार्टी (आप) ने पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले दलित वोट बैंक को साधने की अपनी कोशिशें तेज कर दी हैं. इसके साथ ही कांग्रेस की तरफ से राज्य में एक दलित मुख्यमंत्री की नियुक्ति के मद्देनजर पार्टी ने अपनी प्रचार रणनीति में भी खासा बदलाव किया है.

अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि आप की दलित आउटरीच टीमें कम से कम छह महीने से पंजाब के जिलों में सक्रिय हैं और हाल तक, उन्हें मुख्य तौर पर यह संदेश फैलाने का काम सौंपा गया था कि कैसे आप बेहतर स्कूलों, अस्पतालों और कल्याणकारी उपायों के साथ दलितों का उत्थान कर सकती है.

हालांकि, आप के शीर्ष नेता ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को पद छोड़ने के लिए मजबूर किए जाने के बाद सितंबर के अंत में दलित समुदाय के चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस शासित राज्य का नया मुख्यमंत्री बनाए जाने से आप के लिए स्थितियां थोड़ी मुश्किल हो गईं. ऐसे में इसके लिए प्रचार अभियान की रणनीति में बदलाव जरूरी हो गया.

अगस्त 2020 से अगस्त 2021 के बीच आप ने अमरिंदर को अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखा और अपनी कई प्रेस कॉन्फ्रेंस में, जिसे दिप्रिंट ने ट्रैक किया, आम तौर पर इस बात पर जोर दिया कि पंजाब में कुलीनों का शासन कैसे आम जनता को प्रभावित कर रहा है. चन्नी की नियुक्ति ने कुलीन विरोधी मुद्दे को आप के एजेंडे से बाहर कर दिया है.

कांग्रेस नेताओं ने कहा कि पंजाब में दलितों को अभी तक आप के दिल्ली-आधारित शासन मॉडल के बारे में नहीं बताया है और दावा किया कि चन्नी के सीएम बनने के बाद से आप को दलितों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.
2011 की जनगणना के मुताबिक, पंजाब की कुल आबादी में लगभग 32 प्रतिशत दलित हैं, जो किसी भी राज्य में सबसे अधिक है. देश के इस उत्तरी राज्य, जहां आप प्रमुख विपक्षी दल है, में 2022 की शुरुआत में चुनाव होने हैं.

पंजाब में दलितों पर फोकस कर रही आप की आउटरीच टीमों के पास प्रचार के लिए अभी और भी संदेश हैं. पार्टी की जमीनी रणनीति उसके शीर्ष नेतृत्व के हालिया कार्यक्रमों और गतिविधियों में साफ नजर आती है.

पिछले कई हफ्तों से आप पंजाब के मुख्यमंत्री के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार कर रही है. कई मौकों पर राजनीतिक बयानबाजी चन्नी और आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल के बीच एक निजी झगड़े के स्तर पर पहुंच जाती है. वास्तविक ‘आम आदमी’ की छवि कायम करने के लिए मची होड़ के बीच पंजाब में आप के सह-प्रभारी राघव चड्ढा ‘रेत माफिया’ के कथित समर्थन को लेकर चन्नी को बेनकाब करने के अभियान में जुटे हैं.


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दलित फैक्टर पर जोर

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने पंजाब में ‘अनुसूचित जाति सम्मान सभा’ की एक सीरिज शुरू की है और इस माह उनमें से दो में खुद शामिल भी हुए.

पंजाब में चुनाव प्रचार अभियान से जुड़े कम से कम तीन कार्यक्रमों में उन्होंने दलित समुदाय के लिए मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, कोचिंग के लिए वित्तीय सहायता और छात्रवृत्ति का वादा किया है. इसे उन्हें समुदाय के उत्थान के लिए ‘विशेष गारंटी’ करार दिया है.

आप के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने दिप्रिंट से कहा, ‘दलित पंजाब की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं और यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि राज्य की किसी भी सरकार ने उनकी बेहतरी के लिए काम नहीं किया…पंजाब में ऐसे नेताओं के शासन करने का रिकॉर्ड रहा है जिन्होंने कभी दलितों और वंचित तबके की परवाह नहीं की. इसलिए, समाज में बदलाव के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही आप जैसी पार्टी के तौर पर हमें दलितों के विकास पर जोर देना होगा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘राज्य में अब एक दलित मुख्यमंत्री है, लेकिन इससे शायद ही दलितों को कोई मदद मिले. पहली बात तो यह कि कांग्रेस को लगातार अंदरूनी कलह से जूझना पड़ रहा है. उन्हें (चन्नी) एक अस्थायी व्यवस्था के तहत लाया गया है. दूसरे, दलित मुख्यमंत्री होने पर भर से उन्हें कोई फायदा नहीं मिलने वाला है, क्योंकि उनकी पार्टी भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी है…आप का शीर्ष नेतृत्व इन सब बातों पर काफी मुखर रहा है और हमारे कार्यकर्ता और आउटरीच टीमें राज्य में दिन-रात यह संदेश फैलाने में जुटी हैं.’

वहीं, पंजाब के विधायक राज कुमार वेरका, जो पंजाब कांग्रेस में एक प्रमुख दलित चेहरा भी हैं, ने कहा कि आप फर्जी मुद्दों को उठा रही है.

उन्होंने कहा, ‘पंजाब मौजूदा समय में एकमात्र राज्य है जहां एक दलित सीएम है. पंजाब के लोग इस संदेश का महत्व अच्छी तरह समझते हैं. दलितों ने परंपरागत रूप से कांग्रेस को वोट दिया है क्योंकि वे केवल कांग्रेस के समय में ही विकास देखते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘दूसरी बात, दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है. इसमें बहुत सारे काम केंद्र सरकार के अधीन होते हैं. यही नहीं कांग्रेस वहां 15 साल तक सत्ता में रही थी. आप ने श्रेय लेने के अलावा और क्या किया है? आप नाकाम हो गई है. वे मुद्दे तलाशने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं. इसलिए हर दूसरे दिन भ्रष्टाचार को लेकर कोई न कोई फर्जी दावा कर रहे हैं.’

पंजाब में दलित वोट

पंजाब में 2017 के चुनाव में पहली बार मैदान में उतरी आप के लिए दलित वोट बैंक काफी अहम रहा था.

2017 के विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी ने इस समुदाय पर आधारित कई सभाएं आयोजित की थीं, जिसे उसने ‘दलित संवाद’ नाम दिया. फिर इसने एक अलग दलित घोषणापत्र जारी किया, जिसमें सभी दलितों के लिए कम लागत वाले घर, पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना पर अमल के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ और दलित समुदाय की महिलाओं के विवाह के लिए 51,000 रुपये का वादा किया गया था.

सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज की तरफ से 2017 के सर्वेक्षण के आंकड़ों का अध्ययन बताता है कि आप ने दलित सिख वोटों का 19 प्रतिशत और दलित हिंदू वोटों का 21 प्रतिशत हासिल किया, जबकि कांग्रेस ने दोनों ही वर्गों में अपनी मजबूत पैठ बनाए रखी और दलित सिखों के 41 प्रतिशत और दलित हिंदुओं के 43 प्रतिशत वोट हासिल किए.

कांग्रेस ने 117 सीटों वाली विधानसभा में 77 सीटों पर जीत के साथ सत्ता हासिल की और आप ने 20 विधानसभा सीटें और 23.7 प्रतिशत वोट हासिल करके प्रमुख विपक्षी दल बनने में सफलता हासिल की.

पंजाब के एक राजनीतिक विश्लेषक और इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन के निदेशक प्रमोद कुमार ने कहा, ‘पंजाब में दलितों का कोई विशेष वोट बेस नहीं है. यह बहुत अधिक जटिल है. सबसे बड़ा उदाहरण बहुजन समाज पार्टी (बसपा) है, जो पंजाब से शुरू हुई लेकिन केवल उत्तर प्रदेश में ही अपने कदम जमा सकी.’

बसपा ने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के साथ गठबंधन किया है. 2017 के चुनावों में पार्टी का वोट-शेयर घटकर 1.5 प्रतिशत पर पहुंच गया था जो कि 2012 के चुनावों में 4.29 प्रतिशत था. यह 1992 के विधानसभा चुनावों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से बहुत पीछे है, जब बसपा ने नौ सीटें जीती थीं और वोट शेयर के 16.32 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा जमाया था.

कुमार ने कहा, ‘कांग्रेस को एक दलित मुख्यमंत्री की नियुक्ति से दलित आबादी के बीच एक मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल हो सकती है. इससे आप की संभावनाएं प्रभावित हो सकती है, खासकर तब जबकि दलित वर्गों के बीच अपील रखने वाली बसपा ने एसएडी के साथ हाथ मिला लिए हैं.

कुमार ने आगे बताया, ‘लेकिन ये आबादी मोटे तौर पर पांच उप-जातियों में बंटी है—रविदासिया, वाल्मीकि, मजहबी, राय सिख और अधर्मी. इनमें से प्रत्येक को सभी राजनीतिक दलों में अलग-अलग अनुपात में प्रतिनिधित्व मिला है. फिर उनमें से हर एक का जाट सिखों और हिंदुओं के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक तौर पर एक-दूसरे पर आश्रित रहने वाला रिश्ता है. जबकि आप इस स्पष्ट तौर पर समझने में विफल रही है, यह कांग्रेस के लिए भी एक कठिन काम होगा क्योंकि किसी एक पर बहुत अधिक ध्यान देना अक्सर दूसरे को नाखुश कर देता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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