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Monday, 23 December, 2024
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1,260 से घटकर 150 ही रह गए ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, ट्रांसमिशन लाइनें क्यों बनीं ‘सबसे बड़ा खतरा’

काफी तेजी से विलुप्त हो रहे इस बड़े पक्षी की दृष्टि कमजोर होती है और ये निर्जन क्षेत्रों में रहना पसंद करते हैं लेकिन वहां इनका बिजली की लाइनों से बच पाना मुश्किल होता है. ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सरकारी अधिकारियों की नजरें ऐसे ही इलाकों पर टिकी होती हैं.

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नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, नवीकरणीय ऊर्जा और बिजली मंत्रालयों ने इस हफ्ते के शुरू में एक साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक आवेदन पेश किया जिसमें हाई-ट्रांसमिशन बिजली लाइनों को भूमिगत रखने—ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का प्राकृतिक आवास क्षेत्र बचाने के उद्देश्य के साथ—के उसके पूर्व के आदेश को संशोधित करने का आग्रह किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट की तरफ से दायर एक जनहित याचिका के आधार पर सुनाया था जिनका तर्क था कि पहले से ही गंभीर तौर पर लुप्तप्राय पक्षी—कोर्ट को सौंपी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक इनकी संख्या केवल 150 बची है—बिजली की ट्रांसमिशन लाइनों से टकराकर पूरी तरह खत्म होने के कगार पर पहुंच गए हैं.

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) खुले घास के मैदानों जैसे शुष्क इलाकों में डेरा डालना पसंद करते हैं जो कि सौर और पवन ऊर्जा संयंत्रों के लिए भी आदर्श स्थान माना जाता है. इसे लेकर ही वन्यजीव संरक्षण के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट और सरकार के बीच लंबे समय से कानूनी टकराव जारी है.

सरकार ने अपने ताजा आवेदन में तर्क दिया है कि ट्रांसमिशन लाइनें भूमिगत करने से लागत बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी जो भारत के महत्वाकांक्षी अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों के रास्ते में एक बड़ी बाधा बन सकती है. सरकार का कहना है कि अगर देश के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जाता है तो यह पर्यावरण के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है.

आवेदन में कहा गया है, ‘अब तक इस क्षेत्र में लगभग 263 गीगावाट अक्षय ऊर्जा की अनुमानित क्षमता का केवल तीन प्रतिशत ही दोहन किया गया है. अगर बाकी क्षमता का इस्तेमाल नहीं किया जाता तो हमें भविष्य में अप्रयुक्त नवीकरणीय ऊर्जा को बदले कोयले से बिजली उत्पादन की 93,000 मेगावाट अतिरिक्त क्षमता की जरूरत पड़ेगी, जिसका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

दिप्रिंट यहां आपको ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के बारे में तथ्यात्मक जानकारी देने के साथ बता रहा है कि इस मामले में संरक्षणवादियों के तर्क क्या हैं.


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ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का संरक्षण

1969 में देश भर में अनुमानित तौर पर 1,260 ग्रेट इंडियन बस्टर्ड थे. इनमें से ज्यादातर महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में थे.

संरक्षणवादी कार्यकर्ता और राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की पूर्व सदस्य प्रेरणा सिंह बिंद्रा का कहना है, ‘हालांकि, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पहले बहुतायत में पाए जाते थे लेकिन कम से कम पिछले 50 सालों से इनके विलुप्तप्राय होने का खतरा गहराया है. 1950 के दशक में भारतीय वन्यजीव बोर्ड की शुरुआती बैठकों में इस बात का उल्लेख मिलता है. 1978 में लगभग 750 ग्रेट इंडियन बस्टर्ड थे और उस अवधि के आसपास इनकी आबादी को संरक्षित करने और इनकी संख्या बढ़ाने के कुछ गंभीर प्रयास भी किए गए थे.’

उन्होंने कहा, ‘हालांकि, इस विलुप्तप्राय पक्षी के संरक्षण को लेकर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी रही है. इनकी संख्या अब 100 से भी कम रह  गई होगी. हाल के सालों में इस पक्षी के मौत के कुछ अप्रत्याशित कारण सामने आए हैं जिनमें जंगलों तक खेत बनने और इनके प्राकृतिक आवास माने जाने वाले क्षेत्रों में बिजली की ट्रांसमिशन लाइनों का विस्तार शामिल है.’

इस हफ्ते कोर्ट में पेश भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की संख्या घटकर लगभग 150 रह गई है. अधिकांश पक्षी—करीब 90 प्रतिशत—गुजरात और राजस्थान में पाए जाते हैं. इस प्रजाति को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की तरफ से पहली बार 1994 में लुप्तप्राय घोषित किया गया था.

पिछले कुछ दशकों से ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की आबादी तेजी से घटने के लिए इनके प्राकृतिक आवास क्षेत्र घटना, प्रजनन में गिरावट, शिकार और सीधे तौर पर पहुंचने वाले नुकसानों को जिम्मेदार माना गया है. यह भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची एक—जिसका मतलब है कि शिकार से पूरी तरह बचाने की गारंटी—में शामिल कुछ पक्षियों में से एक है, और राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2002-2016) का हिस्सा भी है.

‘प्रजाति के लिए सबसे बड़ा खतरा’

डब्ल्यूआईआई बिजली की लाइनों को ‘इस प्रजाति के लिए सबसे बड़ा खतरा’ करार देता है जो धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है.

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड एक बड़ा पक्षी है जिसकी ऊंचाई चार फीट और पंखों की लंबाई लगभग दो मीटर होती है. इसका वजन 15 से 18 किलोग्राम के बीच होता है और इसकी दृष्टि कमजोर होती है. विद्युत ट्रांसमिशन लाइनों और पवन चक्कियों से टकराना इसके लिए घातक साबित होता है.

गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी के यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट मैनेजमेंट में पढ़ाने वाले वन्यजीव जीवविज्ञानी सुमित डूकिया का कहना है, ‘मादा ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की संख्या बमुश्किल 20-25 है जो प्रति वर्ष एक अंडा देती है. अगर चूजा जीवित रहा तो फिर वो दो साल तक दूसरा अंडा नहीं देगी. हर साल हम विभिन्न कारणों से करीब 15 ग्रेट इंडियन बस्टर्ड गंवा रहे हैं यानी पैदा होने की तुलना में वे ज्यादा तेजी से मर रहे हैं.

2011 से ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की स्थिति को पुनर्वर्गीकृत करके इन्हें ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ की श्रेणी में रखा गया है जिसका मतलब है कि यह एकदम विलुप्त होने के कगार पर है. डब्ल्यूआईआई ने आगाह किया है कि अगर इसके मुख्य आवास क्षेत्रों (राजस्थान में करीब 200 किलोमीटर) से बिजली लाइनों को नहीं हटाया गया तो यह पक्षी अगले 10 से 20 वर्षों के भीतर विलुप्त हो जाएगा.

डूकिया ने कहा कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड घास के मैदानों में रहने वाली एक प्रमुख प्रजाति है, जिसका मतलब यह भी है कि इसके विलुप्त होने से पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन बढ़ सकता है.

बिंद्रा ने कहा, ‘यह सवाल उठाया जाना चाहिए आखिर अक्षय ऊर्जा कितनी ग्रीन है यदि इसकी वजह से गंभीर तौर पर लुप्तप्राय प्रजातियों के पूरी तरह खत्म होने का खतरा उत्पन्न होता है?’

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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