अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है इसका एक संकेतक यह है कि बड़े उद्योगों को दिए जाने वाले उधार में वृद्धि हुई है.
पिछले कई महीनों से बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कर्ज की रेकॉर्ड बुक माइक्रो, लघु और मझोले उपक्रमों को और खुदरा क्षेत्र को दिए जाने वाले उधार के ब्योरे से भरी रहती थी. लेकिन 14 महीनों से सिकुड़े रहने के बाद, अक्तूबर से बड़े उद्योगों को दिए जाने वाले बैंक क्रेडिट में वृद्धि शुरू हो गई है.
कोविड महामारी के कारण एक ओर तो संकटग्रस्त परिवारों और छोटी फर्मों को उधार देना बढ़ गया था, तो दूसरी ओर बड़ी फर्मों ने ऋणात्मक क्रेडिट वृद्धि दर्ज की. लेकिन ताजा आंकड़े बताते हैं कि यह स्थिति अब उलट गई है. सितंबर वाली तिमाही में भारत की जीडीपी की वृद्धि दर 8.4 प्रतिशत रही. कई ‘हाइ फ्रिक्वेन्सी’ संकेतक भी यही बताते हैं कि अर्थव्यवस्था में सुधार की गति तेज हो रही है.
लेकिन कोविड-19 के नये ओमीक्रॉन वाइरस को लेकर अनिश्चितताएं प्रतिबंधों में इजाफा कर सकती हैं जिनके चलते उन सेक्टरों में सुधार की गति सुस्त हो सकती है जिन सेक्टरों में लोगों के बीच ज्यादा मेलजोल जरूरी होती है. इस नये वाइरस से पैदा होने वाले खतरे उपभोग के लिए खर्चों में इजाफे में अड़ंगा लगा सकते हैं.
जीडीपी में वृद्धि
ताजा आंकड़े बताते हैं कि जुलाई-सितंबर तिमाही के लिए जीडीपी के आंकड़े ने कोविड से पहले के अपने स्तर को छू लिया, बल्कि 2019-20 की इसी तिमाही के मुक़ाबले 0.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की. पहली तिमाही की जीडीपी से तुलना करें तो यह सुधार दर्शाता है. अप्रैल-जून में कोविड की दूसरी लहर और सरकार द्वारा लागू किए गए प्रतिबंधों के कारण जीडीपी कोविड से पहले के अपने स्तर से 9.2 प्रतिशत नीची थी. दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में निर्माण, व्यापार, होटल, परिवहन और वित्त सेक्टरों को छोड़कर दूसरे सेक्टरों में सुधार हुआ और वह कोविड से पहले के स्तर से ऊपर चला गया.
मांग को गति देने में निर्यात और निवेश ने प्रमुख भूमिका निभाई. इनमें कोविड से पहले वाले स्तर की तुलना में क्रमशः 17 और 1.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई. लेकिन उपभोग में सुधार बाकी है, वह अभी भी कोविड से पहले वाले स्तर के मुक़ाबले 3.5 प्रतिशत नीचे है.
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‘हाइ फ्रिक्वेन्सी’ संकेतक
अक्तूबर और नवंबर के अधिकतर ‘हाइ फ्रिक्वेन्सी’ संकेतक अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दे रहे हैं. अक्तूबर और नवंबर में मैनुफैक्चरिंग ने बेहतर प्रदर्शन किया. मैनुफैक्चरिंग सेक्टर के लिए पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआइ) में पिछले 10 महीने में जोरदार सुधार दर्ज किया गया. नवंबर में हेडलाइन आंकड़ा 57.6 था, जबकि अक्तूबर में यह 55.9 था. उत्साहवर्द्धक बात यह है कि मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में विस्तार को सहारा घरेलू बिक्री में निरंतर तेजी आने से मिला है.
पीएमआइ सर्विसेज द्वारा मापित सेवा क्षेत्र की गतिविधियां भी अक्तूबर और नवंबर में बढ़कर क्रमशः 58.4 और 58.1 रहीं.
व्यवसाय जगत का आत्मविश्वास
व्यवसाय का माहौल भी सुधर रहा है. सितंबर की तिमाही में एनसीएईआर के ‘बिजनेस कान्फिडेंस इंडेक्स’ में, जून की तिमाही की तुलना में 90 फीसदी की वृद्धि हुई. यह कोविड से पहले के स्तर से भी ऊपर गया है. माहौल में सुधार बड़ी से लेकर छोटी फ़र्मों तक में व्यापक रूप से फैला हुआ था. रिजर्व बैंक ने मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में का जो ‘इंडस्ट्रियल आउटलुक सर्वे’ किया उसके भी जाहीर होता है कि व्यवसाय के माहौल में सुधार हुआ है.
‘बिजनेस एसेस्मेंट इंडेक्स’ के मुताबिक दूसरी तिमाही के लिए आकलन में, और ‘बिजनेस एक्सपेक्टेशन इंडेक्स’ के मुताबिक अगली तिमाही के लिए अपेक्षाओं में जोरदार सुधार दर्ज किया गया है. दोनों आंकड़े महामारी से पहले के इन आंकड़ों से ऊपर चले गए हैं.
मैनुफैक्चरिंग फ़र्मों को उत्पादन, क्षमता के उपयोग, रोजगार और व्यवसाय के कुल माहौल में सुधार का अनुभव हो रहा है. सर्वे में शामिल 52 फीसदी फ़र्मों ने दिसंबर की तिमाही में रोजगार में वृद्धि की उम्मीद जाहिर की. पिछले सर्वे में केवल 20 फीसदी फ़र्मों ने ऐसी वृद्धि की उम्मीद जाहिर की थी. यह कंपनियों द्वारा रोजगार देने की मंशा में वृद्धि से भी जाहिर है. हाल के सर्वे से पता चलता है कि अगले मार्च की तिमाही के लिए भारतीय कंपनियां पिछले आठ वर्षों में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाली हैं.
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उपभोक्ताओं का भरोसा
भारत में व्यवसाय के माहौल में तेजी से सुधार हुआ है लेकिन उपभोक्ताओं का भरोसा कमजोर बना हुआ है. निवेश में और व्यवसाय जगत के आत्मविश्वास में वृद्धि का रोजगार, और घरेलू तथा उपभोक्ता के आत्मविश्वास पर असर पड़ने में वक़्त लगेगा. फिलहाल खर्चों में वृद्धि क्रेडिट कार्ड के बूते बढ़े खर्चों के कारण दिख रही है.
उपभोक्ताओं के आत्मविश्वास को तब मजबूती मिलती है जब उन्हें आय और रोजगार की संभावना में वृद्धि का एहसास होता है. औद्योगिक माहौल के सर्वे बताते हैं कि रोजगार को लेकर उम्मीदें और धारणाएं बेहतर हो रही हैं. निवेश और रोजगार देने के मामलों में वृद्धि के साथ आगामी तिमाहियों में उपभोक्ताओं के आत्मविश्वास मजबूती मिल सकती है. अगर ओमिक्रोन और अनिश्चितताएं पैदा करेगा तो इसकी गति सुस्त हो सकती है.
रिजर्व बैंक का ‘कंज़्यूमर कान्फ़िडेन्स सर्वे’ बताता है कि माहौल अभी महामारी से पहले वाली स्थिति में नहीं पहुंचा है. वर्तमान स्थिति का आकलन और भविष्य के बारे में अपेक्षाएं धीरे-धीरे बढ़ी हैं. लेकिन उपभोक्ताओं के आत्मविश्वास को मजबूती मिलने में समय लगेगा.
आर्थिक बेहतरी को ओमिक्रोन से खतरा
नये वाइरस ओमिक्रॉन के सामने आने से चालू वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि का आंकड़ा दहाई अंक के करीब पहुंचने की उम्मीद को ग्रहण लगा है. इस वजह से कई एजेंसियों ने आर्थिक वृद्धि के बारे भविष्यवाणियों में कटौती की है. ‘फिच’ रेटिंग्स ने भारत की जीडीपी में वृद्धि का अनुमान 8.7 प्रतिशत से घटाकर 8.4 प्रतिशत का कर दिया है. एशियन डेवलपमेंट बैंक ने पहले अनुमान लगाया था कि यह 10 फीसदी रहेगी लेकिन अब वह इसे 9.7 फीसदी बता रहा है. भावी एशिया के बारे में भी उसने अपने अनुमान घटा दिए हैं.
ओमिक्रोन के कारण पैदा हो रही अनिश्चितताओं ने शेयर बाजार के माहौल को भी भारी बना दिया है. संभावना यह भी है कि हमारी वैक्सीनें आगे की स्थिति में निष्प्रभावी साबित हो सकती हैं. यह घरेलू उपभोग की मांग में वृद्धि की गति को धीमा कर सकता है.
वाइरस के संक्रमण में वृद्धि, या इसकी संभावना भर ही लोगों की गतिविधियों पर रोकथाम लगवा सकती है. इसके बाद यात्रा, पर्यटन, सत्कार जैसे सेक्टरों में शुरू हुए सुधार को बाधित कर सकता है. अगर नया वाइरस ज्यादा संक्रामक साबित हुआ तो कई देश फिर लॉकडाउन लगा सकते हैं। इससे सप्लाई की कड़ी में अड़चनें पैदा होंगी और प्रबंधन के लिए चुनौतियाँ बढ़ेंगी, साथ ही निर्यात भी प्रभावित होंगे.
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