नई दिल्ली: सुरक्षा संबंधी चिंताओं के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 900 किलोमीटर लंबी चार धाम राजमार्ग परियोजना के तीन रणनीतिक हिस्सों (खंडों) को और ज्यादा चौड़ा करने की अनुमति दे दी. हालांकि, यह चौड़ीकरण इस परियोजना के कारण उत्पन्न होने वाली पर्यावरणी संबंधी चिंताओं पर शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त पैनल की सिफारिशों के अनुपालन के साथ ही किया जा सकेगा.
ऐसा करते हुए न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने शीर्ष अदालत के 8 सितंबर 2020 के उस आदेश को संशोधित किया, जिसमें पारिस्थितिक रूप से नाजुक हिमालयी क्षेत्र में स्थित इस पुरे राजमार्ग पर सड़क की चौड़ाई को 5.5 मीटर तक सीमित कर दिया गया था.
यह आदेश रक्षा मंत्रालय द्वारा इस राजमार्ग के तीन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हिस्सों- ऋषिकेश से महाना, ऋषिकेश से गंगोत्री और टनकपुर से पिथौरागढ़ तक- में राष्ट्रीय राजमार्गों को चौड़ा करने के लिए दिसंबर 2020 में दायर याचिका पर आया है. इस याचिका में मंत्रालय ने कहा था कि ये सड़कें भारत-चीन सीमा के लिए फीडर सड़कों के रूप में प्रयुक्त होती हैं.
अदालत ने रक्षा मंत्रालय द्वारा पेश किये गए तर्कों और स्वयंसेवी संस्था सिटिजन ऑफ ग्रीन दून, जिसने इस याचिका का विरोध किया था, के द्वारा उठाई गई चिंताओं का विश्लेषण करने के बाद कहा, ‘हमें… पर्यावरणीय संबंधी विचारों के मामले में एक नाजुक संतुलन पर पहुंचना चाहिए, ताकि वे ढांचागत विकास में बाधा न डालें, विशेष रूप से रणनीतिक महत्व के क्षेत्रों में, जो राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं.’
अदालत ने पिछले साल एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति (हाई पॉवर्ड कमिटी-एचपीसी) की रिपोर्ट का भी संज्ञान लिया जिसमें इस समिति द्वारा यह स्वीकार किया गया था कि राजमार्ग के ये तीन हिस्से उत्तरकाशी में सीमावर्ती जिलों के लिए फीडर सड़कों के रूप में काम करते हैं. इस एचपीसी का गठन शीर्ष अदालत के निर्देश पर ही किया गया था.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि एचपीसी के बहुमत की राय में इस परियोजना के लिए डबल लेन वाले पेव्ड शोल्डर को अपनाये जाने की सलाह दी गयी है. एक दूसरी रिपोर्ट में, जो रक्षा मंत्रालय द्वारा दर्ज की गई संशोधन याचिका के बाद आई थी, पैनल ने फिर से अपनी यही राय दोहराई.
अदालत ने कहा कि वह एचपीसी के निष्कर्षों से पूरी तरह से सहमत है और इसलिए, अपने सितंबर 2020 के आदेश को संशोधित करते हुए इन तीन हिस्सों को डबल-लेन कैरिजवे (दो वाहनों के एक साथ आने-जाने लायक रास्ता) की चौड़ाई के अनुसार पेव्ड शोल्डर के साथ विकसित करने की अनुमति देती है.
साथ ही, पीठ ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक निगरानी समिति का भी गठन किया कि पहाड़ों को काटने, इससे उत्पन्न मलबे के निपटान और जल संसाधनों के संरक्षण जैसे पर्यावरणीय चिंताओं के बारे में एचपीसी द्वारा की गई टिप्पणियों का पूरा ध्यान रखा जाए और इसमें सुधार के लिए किये जाने उपायों (रेमेडियल मीजर्स) पर उसके सुझावों को लागू किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस ए.के. सीकरी इस पैनल की अध्यक्षता करेंगे. अदालत ने कहा कि यह समिति नए सिरे से इस परियोजना का पर्यावरण विश्लेषण नहीं करेगी, बल्कि सिर्फ एचपीसी की सिफारिशों के समुचित क्रियान्वयन का आकलन करेगी. यह हर चार महीने में अपनी एक प्रगति रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय को सौपेंगी.
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क्या है यह परियोजना और क्या कुछ था रक्षा मंत्रालय की याचिका में?
12,000 करोड़ रुपये की लागत वाली इस चार धाम राजमार्ग परियोजना का उद्देश्य उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित चार हिंदू मंदिरों- गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ना है. यह भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की एक प्रमुख पहल है.
एक बार इसके पूरा हो जाने के बाद, इस परियोजना द्वारा न केवल इन तीर्थ स्थलों तक सड़क मार्ग द्वारा संपर्क में सुधार लाये जाने की उम्मीद है, बल्कि इससे एक ऐसे समय में भारत-चीन सीमा पर बुनियादी ढांचे को भी बढ़ावा मिलेगा जब ये दोनों देश एक तनावपूर्ण गतिरोध का सामना कर रहे हैं.
ये तीन हिस्से, जहां रक्षा मंत्रालय सड़क को चौड़ा करना चाहता है, जोशीमठ, उत्तरकाशी, रुड़की, राजवाला, देहरादून, टनकपुर, पिथौरागढ़ और अन्य स्थानों में स्थित भारतीय थल सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के स्टेशनों को चीन के साथ लगी अंतर्राष्ट्रीय सीमा/वास्तविक नियंत्रण रेखा से जोड़ते हैं.
अपनी याचिका में, रक्षा मंत्रालय ने भारत की रक्षा और उसके सुरक्षा हितों, जो इस वक्त खतरे में है, पर इसके गंभीर दुष्परिणामों का हवाला दिया; खासकर चीनी सीमा पर मौजूद आज की संवेदनशील स्थिति की पृष्ठभूमि में.
इसने 2020 में लिपुलेख में नेपाल के साथ आमने-सामने के गतिरोध का भी यह कहते हुए उल्लेख किया कि ये सभी क्षेत्र अत्यधिक संवेदनशील हैं और सुरक्षा बलों की आवाजाही, उनके तैनाती के स्वरूप और आपातकालीन परिस्थिति में लामबंदी के लिए महत्वपूर्ण हैं.
रक्षा मंत्रालय की इस याचिका में यह भी कहा गया था कि यह चौड़ीकरण परियोजना पहाड़ी इलाकों में बनी प्रमुख सड़कों के लिए केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी 2018 के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही तैयार की गई थी.
2018 के दिशा-निर्देशों में परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने पेव्ड शोल्डर के साथ दो-लेन वाले सड़क की अधिकतम चौड़ाई 5.5 मीटर निर्धारित की थी. इसने 2012 के उन नियमों को बदल दिया था, जिसने यह आंकड़ा 10 मीटर पर निर्धारित किया था. हालांकि, सरकार ने 2018 के इस सर्कुलर (परिपत्र) में दिसंबर 2020 में संशोधन किया और सड़क को फिर 10 मीटर तक चौड़ा करने की अनुमति देने के लिए रक्षा मंत्रालय के माध्यम से शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया.
सड़क मंत्रालय पहले ही 537 किलोमीटर तक के रास्ते के लिए 10 मीटर चौड़ी सड़क के निर्माण के लिए आवश्यक पहाड़ी को काटने का काम कर चुका है. इसने राजमार्ग के 365 किमी के निर्माण को पूरा भी कर लिया है.
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सर्कुलर पर सवाल उठाने के लिए कोर्ट की ‘अनुमति क्षेत्र से बाहर
सतत विकास के सिद्धांत के बारे में बात करते हुए अदालत ने कहा कि ‘यह पर्यावरण कानून के न्यायशास्त्र (जुरीसप्रूडेंस) की गहराई में निहित है और ऐसे मामलों में इसका लगातार उपयोग किया जाता रहा है.
अदालत ने कहा, ‘इसमें दो तरह के विचार शामिल हैं, विकास जो न केवल वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के बीच बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भी समानता सुनिश्चित करता है.’
इसी अवधारणा को लागू करते हुए अदालत ने 2012, 2018 और 2020 में जारी तीन परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के विभिन्न सर्कुलर्स के साथ-साथ 2015 और 2019 के इंडियन रोड कांग्रेस के दिशा-निर्देशों को भी एक साथ जोड़कर पढ़ा.
इसके बारे में इसने यह निष्कर्ष निकाला कि इनमें से कोई भी रणनीतिक सीमा से लगे सड़कों के मसले पर विशेष रूप से बात नहीं करता है. साथ ही अदालत का यह भी कहना था कि इस तरह के मामले में किया जाने वाले विचार-विमर्श पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित अन्य सड़कों के समान नहीं हो सकता है.
अदालत ने सिटिजन्स फॉर ग्रीन दून द्वारा याचिका का इस आधार पर विरोध किये जाने को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि रक्षा मंत्रालय के इस आवेदन में मुकदमेबाजी को लम्बा खींचने और सितंबर 2020 के आदेश को पलटने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से दायर किया गया है. अदालत ने इन दावों को पूरी तरह से निराधार बताया.
अदालत ने कहा, ‘एक विशेष निकाय के रूप में रक्षा मंत्रालय सशस्त्र बलों की परिचालन संबंधी आवश्यकता को तय करने का हकदार है, जिसमें सैनिकों और सेना की मशीनों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए ढांचागत सहयोग प्रदान करना भी शामिल है.’
इसने 2020 के सर्कुलर की वैधता की समीक्षा करने की मांग से भी यह कहते हुए इनकार कर दिया कि अदालत सशस्त्र बलों की बुनियादी ढांचे की जरूरतों के बारे में स्वयं से अनुमान नहीं लगा सकती है या फिर देश की सीमा की सुरक्षा के लिए सेना और रक्षा मंत्रालय द्वारा तय किए गए तौर-तरीकों को निरस्त नहीं कर सकती है.
इसके अतिरिक्त, अदालत के अनुसार, उसके लिए सर्कुलर पर सवाल उठाना भी ‘अनुमति क्षेत्र से बाहर’ है क्योंकि इसके लिए अदालत को सरकार, जिसे कानून द्वारा राष्ट्र की रक्षा का दायित्व सौंपा गया है, की नीतिगत पसंद पर सवाल खड़े करने की आवश्यकता होगी.
अदालत ने कहा, ‘इस मामले में रक्षा मंत्रालय की प्रामाणिकता इस तथ्य से भी स्पष्ट होती है कि इसके द्वारा सुरक्षा संबंधी चिंताओं को एचपीसी के समक्ष उठाया गया था और इसकी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख मिलता है. इससे पता चलता है कि रक्षा मंत्रालय ने सीमा की सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए डबल-लेन सड़कों की आवश्यकता पर अपना जोर बनाए रखा है.’
अदालत ने सुरक्षा संबंधी चुनौतियों पर भी ध्यान दिया
कोर्ट की इस पीठ ने सीमावर्ती क्षेत्रों में व्याप्त तनाव पर भी विचार किया और कहा कि उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां खड़ी की हुई हैं, इसलिए इसने सेना की आवाजाही के लिए बुनियादी ढांचे की पर्याप्तता के बारे में तत्कालीन थल सेनाध्यक्ष द्वारा 2010 में दिए गए एक बयान पर ध्यान देने से इनकार कर दिया.
अदालत ने कहा, ‘एचपीसी के समक्ष विचार-विमर्श के दौरान रक्षा मंत्रालय द्वारा अपनाये गए निरंतर रुख को देखते हुए, हम मीडिया को दिए गए इस बयान पर भरोसा करना जरूरी नहीं समझते हैं. रक्षा मंत्रालय द्वारा आकलित की गई सुरक्षा संबंधी चिंताएं समय के साथ बदल सकती हैं.’
शीर्ष अदालत ने इस परियोजना की वजह से पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रतिकूल प्रभाव पर एचपीसी के सर्वसम्मत दृष्टिकोण को भी स्वीकार किया, और यह टिपण्णी भी की कि इसका विश्लेषण न केवल व्यापक है, बल्कि वैज्ञानिक डाटा पर भी आधारित है.
जस्टिस सीकरी पैनल
जस्टिस सीकरी की अध्यक्षता वाले पैनल का गठन करते हुए पीठ ने सीएसआईआर-नेशनल एन्वायर्नमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट (नीरी) के निदेशक और फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, देहरादून को समिति के अध्यक्ष को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए अपने-अपने प्रतिनिधियों को इसमें नामित करने का आदेश भी दिया.
एचपीसी सुधार के लिए किये जा रहे उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी करना जारी रखेगी.
अदालत ने उत्तराखंड सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को न्यायमूर्ति सीकरी पैनल को संसाधन संबंधी सहायता प्रदान करने का भी निर्देश दिया और रक्षा मंत्रालय और केंद्रीय पर्यावरण और सड़क मंत्रालयों को उनकी ओर से भी सहायता प्रदान करने का आदेश दिया.
तीनों केंद्रीय मंत्रालयों को अपनी मासिक प्रगति रिपोर्ट जस्टिस सीकरी के सामने दाखिल करनी होगी, जो हर चार महीने में अपनी रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय की पीठ को सौंपेंगे.
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