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Sunday, 24 November, 2024
होमदेशआंदोलन ख़त्म होने के बाद राजनीतिक राह पकड़ने को लेकर पंजाब के 32 किसान संघों में पड़ने लगी है फूट

आंदोलन ख़त्म होने के बाद राजनीतिक राह पकड़ने को लेकर पंजाब के 32 किसान संघों में पड़ने लगी है फूट

पंजाब में कथित तौर पर किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई करने वाले 32 किसान संघों को स्वर्ण मंदिर में इकट्ठा होना था, लेकिन उनमें से कई प्रमुख संगठनों ने इसमें न शामिल होने का फैसला किया.

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चंडीगढ़: पंजाब में कथित तौर पर किसान विरोधी कानून आंदोलन की अगुवाई करने वाले 32 किसान संघों को सोमवार को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकना था. लेकिन उनके बीच की दरारें अब साफ नजर आ रही हैं.

किसानों के बीच इस सवाल पर स्पष्ट विभाजन नजर आ रहा है कि क्या उन्हें आगामी राज्य विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए, क्योंकि कई किसान संघों के नेता आंदोलन की सफलता के लिए आभार व्यक्त करने के लिए स्वर्ण मंदिर पहुंचे, लेकिन कई अन्य प्रमुख संघो के नेताओं ने इसमें न शामिल होने का फैसला किया.

कुछ संगठनों ने तो अपने अलग कार्यक्रमों की भी घोषणा की है.

भारतीय किसान संघ (बीकेयू) सिद्धूपुर, समूह में शामिल सबसे बड़े किसान संघटनों में से एक, ने 17 दिसंबर को एक अलग ‘शुक्राना’ (आभार) मार्च निकालने का फैसला किया है. इसके सदस्य सोमवार को इकठ्ठा हुई मंडली में शामिल नहीं हुए थे.

बीकेयू सिद्धूपुर के अध्यक्ष जगजीत सिंह दल्लेवाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम सब कुछ एकदम से जल्दबाजी में नहीं करना चाहते हैं. हम कल रात ही दिल्ली की सीमाओं से वापस लौटे हैं. हमारी सैकड़ों ट्रॉलियां टिकरी और सिंघू में खड़ी थीं. हम उनके साथ रह पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि हर कोई सुरक्षित घर पहुंच जाए. हम अपना आभार प्रकट करने और स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने के लिए 17 तारीख को फरीदकोट से स्वर्ण मंदिर तक के लिए मार्च निकालने की योजना बना रहे हैं.’

दल्लेवाल ने कहा कि उनकी यूनियन ने स्पष्ट कर दिया है कि वह न तो किसी भी हैसियत से स्वयं विधानसभा चुनाव में भाग नहीं लेगी और न ही किसी विशेष राजनीतिक दल का समर्थन करेगी. उन्होंने कहा, ‘अगर हम ऐसा करते हैं, तो हमारे और पारंपरिक राजनीतिक दलों के बीच कोई अंतर नहीं रह जायेगा.’

लोक भलाई इंसाफ वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष बलदेव सिंह सिरसा ने भी दल्लेवाल से हाथ मिला लिया है और 17 दिसंबर को होने वाले मार्च में हिस्सा लेंगे. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हम बीकेयू सिद्धूपुर जैसी ही विचारधारा का पालन कर रहे हैं और किसी भी तरह से इन चुनावों में भाग नहीं लेंगे.’


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अनिश्चितता में पड़े संघ

कई अन्य संघ अभी भी स्पष्ट नहीं कर पाए हैं कि वे क्या करने जा रहे हैं. पंजाब किसान यूनियन के अध्यक्ष रुलदू सिंह मनसा ने सोमवार को अमृतसर में पत्रकारों से कहा, ‘हमने अभी कोई फैसला तो नहीं किया है, मगर हम इस मामले में बहुमत के साथ जाएंगे.’

जम्हूरी किसान सभा के महासचिव कुलवंत सिंह संधू ने दिप्रिंट को बताया कि राजनीति में प्रवेश करने के सवाल पर चर्चा के लिए आने वाले कुछ दिनों के भीतर सभी 32 यूनियनों की एक बैठक होने की उम्मीद है. उन्होंने कहा, ‘उस बैठक के बाद ही कोई अंतिम फैसला लिया जा सकता है.’

किसान संघों के समूह के और बड़े घटक बीकेयू डकौंडा के अध्यक्ष बूटा सिंह बुर्जगिल ने कहा कि सभी 32 यूनियनों के नेताओं को एक साथ बैठना चाहिए और इस मुद्दे पर किसी आम सहमति पर पहुंचना चाहिए.

बीकेयू डकौंडा के महासचिव जगमोहन सिंह पटियाला ने कहा, ‘32 यूनियनों को 17 दिसंबर को पंजाब के मुख्यमंत्री से मिलना है, जिसके पहले एक प्रारंभिक बैठक होगी और इस मामले पर भी चर्चा की जाएगी.’

स्वर्ण मंदिर में हुई जमावट का हिस्सा रहे बीकेयू राजेवाल के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने मीडियाकर्मियों से कहा कि उनके द्वारा राजनीति में शामिल होने के संबंध में अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है. उनका यह बयान इन अफवाहों के बावजूद था कि वे आम आदमी पार्टी का सीएम पद के लिए चेहरा बनने जा रहे हैं.

‘राजनीतिक दलों के बहिष्कार के बारे में कोई भी फैसला होना अभी बाकी है’

बीकेयू उग्राहन और किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) – जो इस आंदोलन की सफलता के उद्देश्य से 32 यूनियनों के समूह के साथ मिलकर काम कर रहे थे – आंदोलन समाप्त होने के बाद पिछले हफ्ते ही सभी विरोध स्थलों से पीछे हट गए थे.

सोमवार को दिप्रिंट से बात करते हुए बीकेयू उग्राहन के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने सवाल उठाते हुए कहा, ‘ हमारे संघ का अपना संविधान एकदम स्पष्ट है और हम किसी भी राजनीतिक दल या किसी उम्मीदवार विशेष का समर्थन नहीं करेंगे. हमारे संघ का जो कोई भी सदस्य चुनाव लड़ने का इरादा रखता है, उसे संघ की सदस्यता छोड़नी होगी. पूरे आंदोलन के दौरान, हमने सुनिश्चित किया कि यह गैर-राजनीतिक बना रहे. अब अगर हम खुद राजनीति में आते हैं तो हम संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम), जिसे आगे भी लड़ाई जारी रखनी पड़ सकती है, की गैर-राजनैतिक छवि को कैसे उचित ठहरा पाएंगे?’

एसकेएम किसान संघों की एक सामूहिक संस्था है, जिसने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाये गए, और अब निरस्त कर दिए गए, कृषि कानूनों के खिलाफ हुए विरोध का नेतृत्व किया.

कोकरीकलां ने कहा कि उनकी यूनियन ने अभी यह भी तय नहीं किया है कि आगामी चुनावों में सभी राजनीतिक दलों के बहिष्कार का एलान किया जाए या नहीं.

बीकेयू उग्राहन के नेता ने कहा, ‘हमने हमेशा से इस बात में विश्वास किया है, और किसानों के बीच भी इस बारे में जागरूकता भी बढ़ाई है, कि हालांकि वे सब साझा मसलों और समान समस्याओं का सामना करते हैं, फिर भी विभिन्न राजनीतिक दलों से संबद्धता या समर्थन के कारण उनमें बहुत गहरा विभाजन है. इसलिए हालांकि सभी किसान एक सामान्य उद्देश्य की वजह से एकजुट तो होते हैं, मगर वे राजनीति की वजह से विभाजित भी रहते हैं. अगर हम स्वयं किसानों के बीच राजनीति को प्रोत्साहित करते हैं, तो हम भी उन्हें अन्य राजनीतिक दलों की तरह विभाजित करने के दोषी होंगे.’

किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) के महासचिव सरवन सिंह पंढेर भी सोमवार की सभा से नदारद रहे. इसके बजाय, उन्होंने अपने संगठन की ओर से मत्था टेकने के लिए दिल्ली स्थित बांग्ला साहिब और सीसगंज गुरुद्वारों का दौरा किया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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