पुरी, ओडिशा: जगन्नाथ मंदिर की ओर चेहरा किए हुए और अपने सिर के ऊपर श्रद्धाभाव से हाथ उठाए हुए एक युवा भक्त, अंकित लगातार ‘जय जगन्नाथ’ का जाप किए जा रहा है. उसे अपनी ट्रेन के लिए लेट हो रहा है लेकिन उसे दूर से ही सही पर भगवान जगन्नाथ के दर्शन तो करने ही थे.
अंकित कहते हैं, ‘ट्रेन छुट भी गई तो कोई बात नहीं, भगवान जगन्नाथ के दर्शन हो गए.’
जगन्नाथ मंदिर और उसमें निवास करने वाले देवता ओडिशा में अत्यंत श्रद्धा का स्थान रखते हैं इसलिए किसी भी शुभ अवसर के लिए पहला निमंत्रण पत्र भगवान जगन्नाथ को ही भेजा जाता है. पूरे शहर में ‘जय जगन्नाथ’ एक आम अभिवादन क रूप में सुनाई देता है.
लेकिन अब जगन्नाथ की इस धरती पर नए-नए विकास कार्य हो रहे हैं. मंदिर के समूचे वातावरण को श्री मंदिर परिक्रमा परियोजना के तहत एक बड़े पैमाने पर नया रूप दिया जाएगा जो कि राज्य सरकार की ऑग्मेंटेशन ऑफ बेसिक एमेनिटीज एन्ड डेवलपमेंट ऑफ़ हेरिटेज एन्ड आर्किटेक्चर एट पुरी (एबीएएचएडीए- अभादा) के तहत समाहित है.
इस मुख्य परियोजना के तहत जिसका उद्देश्य इस मंदिर को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिलवाना है. मंदिर की दो किलोमीटर लंबी परिधि के चारों ओर 75 मीटर का गलियारा बनाया जा रहा है.
यह कॉरिडोर तीर्थयात्रियों को मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करने में सक्षम करेगा. इसके तहत एक नवीनीकृत क्लॉक टॉवर, पार्किंग के लिए जगह, उद्यान क्षेत्र, शौचालय और एक सूचना कियोस्क भी होगा.
अभी भी हजारों तीर्थयात्री यहां प्रतिदिन कोविड संक्रमण और इसके नए संस्करण ओमीक्रॉन के खतरे के बावजूद इस मंदिर में आते हैं और उनमें से कई तो बिना मास्क के होते हैं. यह मंदिर हिंदू धर्म में वर्णित चार धामों में से एक है जिनके बारे में माना जाता है कि वे लोगों को मोक्ष प्राप्त करने में मदद करते हैं.
कलेक्टर समर्थ वर्मा बताते हैं कि हर दिन लगभग 40,000 पर्यटक पुरी आते हैं और महामारी से पहले के सप्ताहांत के दिनों में तो लाखों पर्यटक आते थे. अब लगभग 60,000-70,000 लोग सप्ताहांत पर आते हैं.
हालांकि, मंदिर की अधिकांश परिधि अब जीर्ण-शीर्ण रूप में आ चुकी है. कई संरचनाएं ध्वस्त कर दी गई हैं और अन्य कई अभी निर्माणाधीन हैं.
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नया गलियारा, गोल्डन हैंडशेक
वर्मा ने बताया कि परिक्रमा वाली परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण का कार्य 2019 में ही शुरू हो गया था लेकिन महामारी के कारण इसमें देरी का सामना करना पड़ा. वो कहते हैं, ‘अब, निर्माण कार्य शुरू हो गया है और भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया भी लगभग पूरी हो गई है.’
वह बताते हैं कि अतीत में मंदिर की परिधि अत्यधिक रूप से अव्यवस्थित थी. इसका क्षेत्र अवैध निर्माण और मठों से भरा हुआ था. सुरक्षा के लिए लगातार खतरा बना रहता था और भगदड़ का खतरा भी हमेशा मौजूद रहता था.
ओडिशा में लोक निर्माण विभाग के सचिव और साथ ही पुरी मंदिर प्रशासन के मुख्य प्रशासक डॉ कृष्ण कुमार का कहना है कि परिक्रमा परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य 2023 की रथ यात्रा तक का है. पिछले 24 नवंबर को ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की उपस्थिति में इसकी आधारशिला रखी गई थी.
कृष्ण कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि इस पूरी प्रक्रिया का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा भूमि अधिग्रहण था.
वो कहते हैं, ‘कई लोग जिनकी परिधि के आसपास दुकानें और घर हैं. वो भगवान जगन्नाथ की महिमा को देखते हुए उनसे अलग होने को तैयार नहीं थे क्योंकि वो इतने लंबे समय से वहां रह रहे हैं. हमने सभी को एक बहुत ही सुंदर पुनर्वास पैकेज दिया है. यह एक गोल्डन हैंडशेक की तरह है.’
वो आगे बताते हैं कि इतने सारे विभिन्न भागीदारों और लोगों की भावनाओं के शामिल होने के कारण भूमि अधिग्रहण ने एक बहुत व्यापक परामर्श प्रक्रिया का रूप ले लिया था.
कुमार कहते हैं, ‘यह लोगों की आस्था और विश्वास से जुड़ा बेहद संवेदनशील मामला है इसलिए हमें बहुत सावधानी से काम करना पड़ा.’
कुमार के इन शब्दों की उत्पत्ति परिक्रमा परियोजना के प्रति तीर्थयात्रियों की प्रतिक्रियाओं से जुड़ी हुई है.
जमशेदपुर निवासी शिवी सोरेन 45 साल में पहली बार जगन्नाथ मंदिर के दर्शन कर रहीं हैं. वो कहती हैं, ‘जो पूर्वजों के समय से है उससे छेड़-छाड़ नहीं होनी चाहिए.’
कलेक्टर वर्मा के अनुसार पुनर्वास और पुनर्स्थापन पर कुल मिलाकर लगभग 325 करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई है. इससे 134 भूमि उपयोगकर्ताओं और 18 मठों को धनराशि का भुगतान किया गया था.
‘एक सांस्कृतिक परियोजना’
मंदिर परिक्रमा के पुनर्विकास का कार्य टाटा प्रोजेक्ट्स द्वारा लगभग 800 करोड़ रुपए की लागत से किया जा रहा है जिसका सारा खर्च राज्य सरकार उठा रही है. इस 800 करोड़ रुपए में से 330 करोड़ रुपए निर्माण कार्यों में लगी लागत है जबकि शेष राशि भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में किया गया खर्च है.
कुमार कहते हैं कि उन्होंने इसे कभी भी एक बुनियादी ढांचे वाली परियोजना के रूप में नहीं देखा. उनके अनुसार, ‘मेरे लिए यह हमेशा से तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाएं निर्मित करने और एक सांस्कृतिक परियोजना रही है.’
इस मंदिर के मुख्य पुजारियों में से एक महंत नारायणदास कहते हैं कि वह इस परियोजना का पूरी तरह से स्वागत करते हैं क्योंकि अब तक किसी भी नेता ने पुरी में परिक्रमा गलियारा बनाने के बारे में कोई पहल नहीं की थी. उनका कहना है कि वह इस तरह की पहल करने के लिए मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आभारी हैं.
वो कहते हैं, ‘पुरी एक धार्मिक राजधानी है और चार धामों में से एक है. मगर, इसका अपना कोई परिक्रमा मार्ग नहीं था जैसे कि तिरुपति या रामेश्वरम में हैं. इस परिक्रमा परियोजना से पुरी में सभी को बहुत लाभ होगा.’
‘महामारी पर ध्यान दिया जाना चाहिए’
यह मंदिर परियोजना और आभादा योजना पुरी में कई तरह के विकास कार्यों का प्रस्ताव करती है लेकिन एक महामारी के मध्यकाल में और एक नए संस्करण के खतरे के साथ कई लोग मानते हैं कि इसका समय सही नहीं है.
समाजशास्त्री और राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, ओडिशा में सहायक प्रोफेसर डॉ रीता रे का कहना है कि राज्य सरकार की प्राथमिकताएं पूरी तरह से गलत हैं और यह परियोजना फिलहाल के लिए अनावश्यक है.
वो कहती हैं, ‘यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस स्तर पर स्कूलों के विकास और नए अस्पतालों के निर्माण की कोई बात नहीं हो रही है. पर्यावरण में आती गिरावट या फिर अधिक टीकों की मांग के बारे में भी कोई भी चिंतित नहीं है.’
रे कहती हैं, ‘इससे पहले तो मुख्यमंत्री नवीन पटनायक चुपचाप पुरी आते थे और जगन्नाथ मंदिर जाते थे लेकिन हाल के दिनों में इस तरह के दौरे ‘भव्य प्रदर्शन’ जैसे बन गए हैं’
वरिष्ठ पत्रकार रबी दास इस बात को स्वीकार करते हैं कि श्री मंदिर परिक्रमा परियोजना से पुरी में बाकी अभादा योजना के साथ-साथ पर्यटन को भी बहुत मदद मिलेगी लेकिन वह रे की इस बात से भी सहमत हैं कि मुख्य प्राथमिकता महामारी होनी चाहिए.
वे कहते हैं, ‘यह पुरी को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने में बहुत मदद करेगा. मगर, कोविड भी सामने है और हम अपनी सुरक्षा में ढील नहीं कर सकते.’
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