लखनऊ: उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने सोमवार को इस्लाम धर्म को छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया और अब उनका नाम जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी हो गया है. यह धर्मांतरण अक्सर विवादों में रहने वाले गाजियाबाद के डासना देवी मंदिर के मुख्य महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती ने कराया.
रिजवी ने एक बयान में कहा कि वह चाहते हैं कि जब उनकी मृत्यु हो तो उनके शरीर का हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार किया जाए और यह भी कि नरसिंहानंद उनकी चिता को अग्नि दें.
उन्होंने कहा कि सनातन धर्म दुनिया का पहला धर्म है, और साथ ही यह दावा भी किया कि इस्लाम एक ‘समूह’ या ‘संगठन’ था न कि कोई ‘धर्म’.
धार्मिक मसलों पर कई बार विवादों में घिर चुके रिजवी ने यह भी दावा किया कि इस्लाम से ‘बाहर’ कर दिए जाने के बाद उन्होंने हिंदू धर्म अपनाया है.
हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि महाराज ने एक बयान जारी कर कहा, ‘हम वसीम रिजवी के सनातन धर्म स्वीकारने का स्वागत करते हैं. अब कोई भी कट्टरपंथी उनके खिलाफ फतवा जारी करने की हिम्मत न करे. केंद्र और राज्य सरकारें उन्हें उचित सुरक्षा मुहैया कराएं.’
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विवादों में घिरे
रिजवी पहले भी कई विवादों में घिर चुके हैं. 4 नवंबर को उन्होंने नरसिंहानंद की मौजूदगी में डासना देवी मंदिर में मुहम्मद नामक एक पुस्तक का विमोचन किया था. उन्होंने दावा किया था कि उन्हें इस किताब के लिए धमकी दी गई थी, जो कथित तौर पर पैगंबर साहब को विवादास्पद तरीके से चित्रित करती है.
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने 17 नवंबर को किताब में ‘आपत्तिजनक’ सामग्री होने के आधार पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने को लेकर रिजवी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी.
रिजवी को इस साल मार्च में उस समय भी ‘धमकियां’ मिली थी जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करके कथित तौर पर कुछ भड़काऊ आयतों को कुरान से हटाए जाने की मांग की थी. कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी.
कुछ हफ्ते पहले रिजवी ने एक वीडियो जारी करके अपनी जान को खतरा बताया था. उनका कहना था कि कई कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों ने उनका सिर कलम करने के लिए फतवा जारी कर रखा है.
2019 में उन्होंने एक विवादास्पद फिल्म राम की जन्मभूमि को प्रोड्यूस करने के साथ उसे लिखा भी था.
सपा के टिकट पर चुने गए, कभी आजम खान के करीबी थे
रिजवी के करीबी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि वह भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं के संपर्क में हैं और पार्टी में शामिल भी हो सकते हैं. हालांकि, भाजपा के एक पदाधिकारी ने ऐसी किसी संभावना से इनकार किया है.
रिजवी पहले समाजवादी पार्टी (सपा) से जुड़े रहे थे. 2000 में वह सपा के ही टिकट पर लखनऊ के पुराने शहर के कश्मीरी मोहल्ला वार्ड से पार्षद चुने गए थे.
2012 में शिया धर्मगुरु कल्बे जवाद के साथ मनमुटाव के बाद उन्हें छह साल के लिए सपा से निष्कासित कर दिया गया था. जवाद ने उन पर गबन का आरोप लगाया था. इसके बाद शिया वक्फ बोर्ड को ही भंग कर दिया गया था, लेकिन रिजवी को एक कोर्ट से राहत मिलने के बाद उसे बहाल कर दिया गया.
रिजवी के एक करीबी सूत्र ने कहा कि उन्हें कभी सपा नेता आजम खान का करीबी माना जाता था. लेकिन 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद उन्होंने हर मुद्दे पर अपना रुख बदला और योगी आदित्यनाथ सरकार के समर्थक बन गए.
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