नई दिल्ली: कोरोनावायरस के प्रोटीन में कम-से-कम 32 म्यूटेशन (उत्परिवर्तन) के साथ सार्स-कोव 2 के नए वैरिएंट ओमीक्रॉन के उद्भव से दुनिया भर के स्वास्थ्यकर्मियों के कान खड़े कर दिए हैं. लेकिन यहां एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि वैज्ञानिकों के अनुसार वही उत्परिवर्तन वास्तव में इस वैरिएंट की निगरानी के काम को आसान बना सकता है.
स्पाइक प्रोटीन कोरोनावायरस के ऊपर की ओर फैला हुआ हिस्सा होता है जो पैथोजन (रोगज़नक़) को इसकी होस्ट सेल में प्रवेश करने की अनुमति देता है.
शोधकर्ताओं के अनुसार, कुछ आरटी-पीसीआर परीक्षण, जो यह पता लगाने के लिए उपयोग किए जाते हैं कि कोई व्यक्ति कोविड पॉजिटिव है या नहीं, उन लोगों का पता लगाने के लिए भी उपयोगी जांच उपकरण हो सकते हैं, जिनमें ओमीक्रॉन वैरिएंट होने की संभावना है.
काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) के इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (आईजीआईबी) में जीनोमिक्स के क्षेत्र में एक प्रमुख शोधकर्ता विनोद स्कारिया ने दिप्रिंट को इस वैज्ञानिक पहलु के बारे में बताया कि कैसे ये सारे म्युटेशन ओमीक्रॉन का पता लगाना आसान बना सकते हैं.
यह भी पढ़ें: ओमीक्रॉन के खिलाफ कितनी असरदार हो सकती है कोवैक्सीन, जानिए इस पर क्या कहते हैं ICMR के अधिकारी
वायरस की पहचान का कार्य
सार्स-कोव 2 का परीक्षण करने के लिए, शोधकर्ताओं को इसके आनुवंशिक कोड में से उन विशिष्ट क्षेत्रों को चुनना होता है जो वायरस के विकास के दौरान तेजी से नहीं बदलते हैं, लेकिन ऐसी प्रॉपर्टीज हैं जो इसे पहचानने में मदद करती हैं.
इनकी पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन, या पीसीआर नामक एक प्रक्रिया के दौरान बार-बार नक़ल की जाती है और इसे प्रवर्धित किया जाता है, जो कोरोनावायरस परीक्षण का आधार बनता है और इसे अपना नाम देता है.
प्राइमर, जो डीएनए के अत्यंत सूक्ष्म टुकड़े होते हैं और जिन्हें केवल विशिष्ट डीएनए सीक्वेंस से जुड़ने के लिए डिज़ाइन किया जाता है, का उपयोग सार्स-कोव 2 के वायरल जीनोम से जुड़ने (बाइंडिंग) के लिए किया जाता है और इस प्रकार किसी व्यक्ति के नमूनों में कोविड-19 की उपस्थिति का पता लगाया जाता है.
एक फ्लोरोसेंट डाई के साथ प्राइमर – जिसे एक प्रोब के रूप में जाना जाता है – एक छोटी सी रिएक्शन ट्यूब (आरटी) में रखा जाता है और फिर उसे एक पीसीआर मशीन में डाल दिया जाता है जहां ‘बांडिंग’ की प्रक्रिया संपन्न होती है.
स्कारिया ने बताया कि आम तौर पर कोविड-19 की आरटी-पीसीआर परीक्षण किट में प्राइमर के दो या अधिक सेट होते हैं जो आरएनए सीक्वेंस में दो या अधिक स्थलों पर वायरस की आनुवंशिक सामग्री (जेनेटिक मटेरियल) के साथ जुड़ते हैं.
यह वायरस का पता लगाने की प्रक्रिया को बेहतर करने के लिए किया जाता है और यह फाल्स पॉजिटिव नतीजों की संभावना को भी कम करता है.
आमतौर पर, वायरस के कई प्रोटीनों, जैसे स्पाइक, एनवलप, रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन और न्यूक्लियोकैप्सिड प्रोटीन, में से किन्हीं दो के जीन का उपयोग किया जाता है.
स्कारिया ने कहा, ‘कभी-कभार, इन प्रोटीनों में आया उत्परिवर्तन परीक्षण किट की दक्षता को प्रभावित कर सकता है. लेकिन चूंकि दो साइटों का उपयोग किया जाता है इसलिए यह विरले ही होता है कि उत्परिवर्तन के कारण दोनों साइटें ग़ुम हो जाएं. हालांकि किन्ही विशेष उदाहरणों में यह संभव भी हो सकता है.’
अल्फा और ओमीक्रॉन सहित कई वैरिएंट में स्पाइक प्रोटीन के जीन में उत्परिवर्तन होते हैं, जो व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले प्राइमरों की दक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं.
स्कारिया ने एक ट्विटर थ्रेड में लिखा, ‘इसे स्पाइक जीन टारगेट फेलियर (एसजीटीएफ) पर स्पाइक-ड्रॉप आउट कहा जाता है. यह आमतौर पर कोई बड़ी समस्या नहीं है, क्योंकि दूसरा प्राइमर फिर भी काम करता है.’
सार्स-कोव 2 के वेरिएंट और आरटी-पीसीआर टेस्ट
क्या आरटी-पीसीआर ओमीक्रॉन वैरिएंट का पता लगा सकता है?
SARS-CoV-2 Variants and RT-PCR
Can RT-PCR Detect Omicron ?
A short thread on the topic. ? pic.twitter.com/dZMNWCgeY6— Vinod Scaria (@vinodscaria) November 29, 2021
उन्होंने कहा, ‘इसलिए इस गुणधर्म को विशिष्ट वैरिएंट्स की जांच के लिए सरोगेट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.’
ओमीक्रॉन के लिए प्राइमर
हालांकि ओमीक्रॉन वैरिएंट स्पाइक प्रोटीन को लक्षित करने वाले प्राइमर से नहीं जुड़ेगा मगर परीक्षण में अन्य प्राइमर अभी भी अपने लक्ष्य से बाइंड हो सकेंगे. इसलिए यह इस्तेमाल किए गए प्राइमरों पर निर्भर करता है कि क्या कोई किट किसी वैरिएंट का पता लगा सकती है या नहीं.
हालांकि, इस तरह के उत्परिवर्तन अन्य वैरिएंट में भी हो सकते हैं, इसलिए आरटी-पीसीआर परीक्षण केवल एक त्वरित जांच उपकरण के रूप में ही काम कर सकता है. इसके बाद जीनोम सिक्वेंसिंग का उपयोग करके ही किसी खास तरह के वैरिएंट की पुष्टि करनी होगी.
स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा निर्धारित कोविड वैरिएंट की स्क्रीनिंग के लिए मौजूदा प्रोटोकॉल के तहत उन यात्रियों के नमूनों को जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए भेजना होता है जिनकी कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आई हो.
लेकिन, भारत की अपनी जीनोम सिक्वेंसिंग की क्षमता काफी सीमित है और 8 नवंबर तक महामारी के इस पूरे दौर के दौरान लगभग 96,312 नमूनों की सिक्वेंसिंग की गयी है.
इसके अलावा, किसी भी नमूने को सिक्वेंसिंग करने में दो दिन तक का समय लग सकता है और इस दौरान यह संक्रमण अधिक लोगों में फैल सकता है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर छाया ‘ओमीक्रॉन’ का साया, 15 दिसंबर से नहीं होंगी बहाल