नई दिल्ली: रॉयल नेवी के एक रिटायर्ड कैप्टन द्वारा ब्रिटेन में एक नीलामी के दौरान खरीदी गई 1850 के दशक की एक प्राचीन पिस्तौल, जिसे तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय सेना की 17 पूना हॉर्स आर्मर्ड रेजिमेंट इस्तेमाल करती थी, फिर से इस यूनिट के पास वापस आ गई है.
रॉयल नेवी के कैप्टन कॉलिन मैकग्रेगर (रिटायर्ड) ने यह पिस्तौल दिसंबर 2019 में ब्रिटेन में एक नीलामी के दौरान खरीदी थी. कॉलिन को ‘सन ऑफ द रेजिमेंट’ भी कहा जाता है क्योंकि उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल रॉब मैकग्रेगर एमसी 17वीं क्यूवीओ पूना हॉर्स (जो उस समय इस रेजिमेंट का नाम था) में कमांडेंट थे.
जिस तरह उनके पिता का जन्म भारत में हुआ था, उसी तरह कॉलिन का जन्म भी 1938 में पुणे में हुआ था.
कैप्टन मैकग्रेगर (रिटायर्ड) ने दिप्रिंट को बताया कि दिसंबर 2019 में ब्रिटिश ऑक्शन हाउस होल्ट्स के एक कर्मचारी से बातचीत करने के दौरान उन्हें पता चला कि यह पिस्तौल बिक्री के लिए आ रही है. यह ऑक्शन हाउस शानदार आधुनिक और प्राचीन हथियारों की बिक्री के लिए प्रसिद्ध है.
उन्होंने बताया, ‘मैंने पूना हॉर्स से संपर्क किया और वे इसे हासिल करने के इच्छुक थे. मैंने इसे उनकी ओर से ही खरीदा था. हालांकि, महामारी के कारण हम इसे अभी कुछ समय पहले तक भेज नहीं पाए थे.’
होल्ट्स ने नीलामी में पिस्तौल की शुरुआती बोली 800 पाउंड रखी थी. ‘खरीदार के प्रीमियम’ पर खरीदार के प्रीमियम पर वैट के साथ अंततः इसकी कीमत 1,200 पाउंड रही.
दिल्ली स्थित ब्रिटिश उच्चायोग में रक्षा सलाहकार ब्रिगेडियर गेविन थॉम्पसन ने 16 नवंबर को यह पिस्तौल लेफ्टिनेंट जनरल डीएस सिद्धू (रिटायर्ड) को सौंपी, जो उसी रेजिमेंट में रहे हैं.
कॉलिन और लेफ्टिनेंट जनरल सिद्धू की मुलाकात रेजिमेंट की 200वीं वर्षगांठ के अवसर पर जनवरी 2017 में मेरठ में तीन दिवसीय समारोह के दौरान हुई थी.
रेजिमेंट यह पिस्तौल अपनी बसंतर की जंग की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर होने वाले समारोह में प्रदर्शित करने की योजना बना रही है, जो 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पश्चिमी क्षेत्र में लड़ी गई कुछ शुरुआती जंगों में एक थी.
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‘गार्डन पिस्टल’
‘गार्डन पिस्टल’ के नाम से चर्चित इस पिस्तौल को 1850-52 के आसपास रेजिमेंट के लिए बनाया गया था. उस समय पूना इररेग्युलर हॉर्स ने ऐसी 50 जोड़ी पिस्तौल 56 रुपये प्रति जोड़ी के हिसाब से खरीदी थीं.
माना जाता है कि नीलामी में खरीदी गई पिस्तौल 1857 में फारस की जंग के दौरान खुशाब की लड़ाई में इस्तेमाल की गई हो सकती है, जिसमें पूना इररेग्युलर हॉर्स रेजिमेंट ने अहम भूमिका निभाई थी.
यह जंग पूना रेग्युलर हॉर्स और थर्ड बॉम्बे लाइट कैवेलरी की मदद से पूरी सफलता के साथ जीती गई. 1921 में इन्हीं दोनों रेजिमेंट को मिलाकर 17वीं क्वीन विक्टोरिया की ओन पूना हॉर्स रेजिमेंट बनी थी.
ब्रिगेडियर गेविन थॉम्पसन ने दिप्रिंट को बताया कि पिस्तौल का वापस आना भारत-ब्रिटेन संबंधों में बढ़ती घनिष्ठता को दिखाता है.
ब्रिगेडियर थॉम्पसन ने कहा, ‘यह इस बात का भी उदाहरण है कि ब्रिटेन और भारत के अद्वितीय ऐतिहासिक सैन्य संबंध रहे हैं. साझा अनुभवों के आधार पर बने हमारे रक्षा संबंधों का भविष्य समृद्ध होगा.’
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