नई दिल्ली: नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन्स ने मोदी सरकार से सिफारिश की है कि ट्रांसजेंडर की जरूरतों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए एनसीईआरटी की किताबों में प्रस्तावित संशोधन को जल्द से जल्द अमल में लाया जाए. काउंसिल ने इसके साथ ही संवेदनशील और सक्षम डॉक्टरों को तैयार करने के लिए मेडिकल पाठ्यक्रम में बदलाव का सुझाव भी दिया है.
ये सिफारिशें, जिन्हें दिप्रिंट ने भी हासिल किया है, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के मैनुअल पर एक विवाद के बीच आई हैं, जिसका उद्देश्य स्कूलों में ट्रांसजेंडर बच्चों के प्रति शिक्षकों और प्रशासन को संवेदनशील बनाना था.
इसी माह के शुरू में जारी इस मैनुअल में सिसजेंडर, एजेंडर, और जेंडर-फ्लुइड जैसे शब्दों की व्याख्या की गई थी, और कक्षाओं में जेंडर-न्यूट्रल ट्वॉलेट और यूनिफॉर्म, और लड़कों और लड़कियों की साझा कतारें जैसे सुझाव दिए गए थे.
हालांकि, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की तरफ से आपत्ति जताए जाने के बाद इसे काउंसिल की आधिकारिक वेबसाइट से हटा दिया गया. इसके पीछे दिए गए तर्कों में सिफारिशें ‘उनकी (बच्चों की) लैंगिक वास्तविकताओं और बुनियादी जरूरतों के अनुरूप’ नहीं होने की बात कही गई थी.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत आने वाली नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन्स ने 10 नवंबर को एक बैठक के बाद अपनी सिफारिशें दी थीं.
सरकारी सूत्रों ने कहा कि काउंसिल को जानकारी मिली थी कि विशेषज्ञों का एक समूह कक्षा 11 के लिए नई सामग्री तैयार कर रहा है, लेकिन इसे अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है.
काउंसिल का कहना है, ‘ट्रांसजेंडर की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशीलता लाने के लिए एनसीईआरटी की किताबों में प्रस्तावित संशोधन जल्द से जल्द पूरा करना होगा. ट्रांसजेंडर के समक्ष आने वाले मुद्दों पर मौजूदा मेडिकल कोर्स में भी संशोधन की आवश्यकता हो सकती है.’
वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘कभी-कभी डॉक्टर भी ट्रांसजेंडर लोगों की समस्याओं को नहीं समझ पाते हैं.’
अधिकारी ने कहा, ‘उन्हें इस बारे में संवेदनशील बनाने के लिए पाठ्यक्रम में कुछ बदलाव करने होंगे. यदि यह सब पाठ्यक्रम के स्तर पर ही शुरू किया जाएगा तो इसके दूरगामी नतीजे होंगे.’
यह भी पढ़ेंः ट्रासजेंडर समुदाय की मदद के लिए आप MLA राघव चड्ढा ने ‘मिशन सहारा’ की शुरुआत की
‘सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी प्रशिक्षित डॉक्टरों से कराएं’
ट्रांसजेंडर लोगों से जुड़ी काउंसिल ने यह भी कहा है कि ‘ऐसे डॉक्टरों के सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) करने पर रोक लगाने की जरूरत है जो प्रशिक्षित या इसे करने में सक्षम नहीं है.’
एसआरएस सर्जरी की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के जननांगों को बदल दिया जाता है ताकि उन्हें अपने शरीर के साथ ज्यादा सहजता महसूस हो.
काउंसिल ने सरकार को बताया, ‘ऐसे ऑपरेशन के कई मामले सामने आए हैं जिसमें जान तक चली गई.’
इसके साथ, काउंसिल के सदस्यों ने इस पर जोर दिया कि ओरिएंटेशन प्रोग्राम की आवश्यकता है और इसके आधार पर हर राज्य में विशेषज्ञों की पहचान की जानी चाहिए और केवल इन्हीं लोगों को एसआरएस की अनुमति दी जानी चाहिए.
काउंसिल की सिफारिशों के बारे में समझाते हुए दूसरे वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘वैश्विक मानकों के मुताबिक मेडिकल जरूरतों को कवर करने वाले मेडिकल बीमा की आवश्यकता है. यही नहीं रोजगार के मौके उपलब्ध कराने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम ही ‘सपोर्ट फॉर मार्जिनलाइज्ड इंडीविजुअल्स फॉर लाइवलीहुड एंड इंटरप्राइज (स्माइल)’ योजना की शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए.’
स्माइल एक सरकारी पहल है जो हाशिये पर पड़े समुदायों के सशक्तिकरण के लिए काम करती है. इसे इसी साल की शुरुआत में लॉन्च किया गया था.
सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘ट्रांसजेंडरों के प्रशिक्षण और प्लेसमेंट पर काम कर रहे सामुदायिक संगठनों, स्वैच्छिक संगठनों और उद्योगों की अलग से पहचान की जानी और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के अवसर दिए जाने चाहिए.’
काउंसिल ने यह सिफारिश भी की है कि ‘ये पता लगाया जाना चाहिए कि ट्रांसजेंडर कल्याण कार्यक्रमों में सीएसआर भागीदारी को कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है.’
काउंसिल ने आगे जोड़ा, ‘ट्रांसजेंडर के लिए मौजूदा हेल्पलाइन को काउंसलर की सुविधाओं के साथ एक ट्रांसलैंड नेशनल सपोर्ट सिस्टम के तौर पर मजबूत किया जा सकता है. ट्रांसजेंडर लोगों की आजीविका के वित्तपोषण के लिए एनबीसीएफडीसी (राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त और विकास निगम) में अलग से एक व्यवस्था की जानी चाहिए.’
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ेंः ट्रांसजेंडर मैनुअल को फिर से बहाल करवाना चाहती है ये मां, ऑनलाइन मिला 5600 लोगों का समर्थन