नई दिल्ली: केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अपनी जांच पाया है कि 28 जुलाई को धनबाद में एक ऑटोरिक्शा से टक्कर मारकर अतिरिक्त जिला जज उत्तम आनंद की जान ले लेने वाले दोनों आरोपी ‘सड़क पर जॉगिंग करने वाले व्यक्ति को ऑटो से मारकर गिराने के बाद उसे लूटना चाहते थे. उन्होंने उसे गिरा भी दिया लेकिन जब उन्होंने एक बाइक को आते देखा तो वहां से भाग निकले.’
सीबीआई सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि उन लोगों को पता नहीं था कि जिसे उन्होंने टक्कर मारी है वह एक जज हैं.
सीबीआई के सूत्रों से दिप्रिंट को पता चला है कि यह निष्कर्ष कथित तौर पर हत्या के पीछे किसी ‘बड़ी साजिश’ का पता लगाने की कोशिश के तहत गांधीनगर स्थित फोरेंसिक सेवा निदेशालय की तरफ से आरोपियों पर किए गए फोरेंसिक परीक्षणों में से एक पर आधारित है.
पिछले तीन महीनों के दौरान दोनों आरोपियों—लखन वर्मा और राहुल कुमार वर्मा—को मनोवैज्ञानिक आंकलन, बयान विश्लेषण, पॉलीग्राफ टेस्ट, लेयर्ड व्यॉइस एनालिसिस और डीएनए प्रोफाइलिंग समेत तमाम फोरेंसिक टेस्ट से गुजरना पड़ा है, ताकि ‘अपराध के मकसद’ और किसी ‘बड़ी साजिश’ के बारे में पता लगाया जा सके.
सीबीआई सूत्रों ने बताया कि गांधीनगर, नई दिल्ली और रांची स्थित फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) संस्थानों की रिपोर्ट और मुंबई के फोरेंसिक विशेषज्ञों की राय को भी चार्जशीट में शामिल किया गया है.
इसके अलावा, अपराध स्थल के आसपास संचार टावरों से बड़े पैमाने पर हासिल डाटा और कॉल डिटेल रिकॉर्ड का विश्लेषण किया गया है, लेकिन एक ‘लूटपाट के इरादे’ के अलावा कोई और मकसद सामने नहीं आया है. हालांकि, सीबीआई सूत्रों ने बताया कि जांच अभी जारी है.
सीबीआई के एक सूत्र ने कहा, ‘फोरेंसिक रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है कि आरोपी उस व्यक्ति को लूटना चाहते थे जिसे उन्होंने सड़क पर जॉगिंग करते देखा था. उनका इरादा ऑटो से टक्कर मारकर उसे गिराने और फिर उसका सारा सामान छीनकर मौके से भागने का था. उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि वह (पीड़ित) जज हैं. हालांकि, जब उन्होंने एक बाइक को पास आते देखा तो इस डर से अपना इरादा बदल दिया कि वे पकड़े जा सकते हैं.’
सूत्र ने कहा, ‘इसीलिए उन्होंने ऑटो रोका ही नहीं. हालांकि, इस मामले की और जांच की जा रही है.’
जस्टिस आनंद 28 जुलाई की सुबह करीब 5 बजे धनबाद में अपने घर के पास जॉगिंग के लिए निकले थे, तभी उन्हें तिपहिया वाहन ने टक्कर मार दी थी.
घटना के सीसीटीवी फुटेज में जज खाली पड़ी सड़क में एक किनारे टहलते नजर आ रहे हैं, और वाहन सड़क के बाईं ओर से ठीक पीछे से मुड़कर उन्हें बुरी तरह टक्कर मारता है. इसके बाद चालक वाहन मौके से भगा ले जाता है.
दोनों आरोपियों का बैकग्राउंड कथित तौर पर छोटी-मोटी चोरियों में शामिल होने का रहा है. दिप्रिंट ने जब अगस्त में उनके परिवारों से मुलाकात की थी, तो उन्होंने माना था कि दोनों अक्सर चोरी करते थे.
चूंकि इन आरोपियों के परिवार वकील करने की हैसियत में नहीं थे, इसलिए कोर्ट ने कानूनी सहायता के तहत एक युवा वकील को नियुक्त किया था. दिप्रिंट यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक वकील से संपर्क नहीं कर पाया, लेकिन उनका जवाब आने पर इसे अपडेट किया जाएगा.
‘ऑटो तकनीकी रूप से फिट था, ब्रेक लगाने की कोशिश नहीं की गई’
मामले में पिछले महीने दायर आरोपपत्र, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, में दावा किया गया है कि इसके पर्याप्त सबूत—मौखिक और दस्तावेजी—हैं कि आरोपियों ने ‘जानबूझकर और एक समान इरादे के साथ’ अपराध को अंजाम दिया, और यह अपराध करते समय वे शराब या किसी अन्य नशीले पदार्थ के प्रभाव में नहीं थे, जैसा दोनों आरोपियों के मूत्र और रक्त के नमूनों की जांच के बाद केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) के रसायन विभाग की तरफ से जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था.
दोनों आरोपियों की मंशा को साबित करने के लिए आरोप पत्र में बताया गया है कि अपराध में इस्तेमाल ऑटोरिक्शा ‘तकनीकी रूप से फिट’ था और ब्रेक और इंजन नियंत्रण की स्थिति में थे. गियर बॉक्स की स्थिति ठीक थी और पहिये, एक्सिस और स्प्रिंग भी सही हालत में पाए गए हैं. आरोपपत्र में इससे यही निष्कर्ष निकाला गया कि किसी भी तरह से यह कोई ‘दुर्घटना’ नहीं थी.
आरोपपत्र में एक फोरेंसिक रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए यह भी कहा गया है कि कहीं भी ऐसा ‘संकेत नहीं मिलता कि आरोपियों ने मृतक की ओर से वाहन मोड़ा या इसे मोड़ने का कोई प्रयास किया.’
आरोपपत्र में कहा गया है, ‘अचानक ब्रेक लगाने का कोई प्रयास नहीं किया गया, बल्कि वाहन को अचानक मोड़ा गया. वाहन का किसी भी तरह न डगमगाना यह संकेत देता है कि चालक का ऑटो पर पूर्ण नियंत्रण था. यही नहीं, सड़क के बीच से मृतक की ओर बढ़ते ऑटो को मिडलाइन से करीब 20 इंच के कोण पर करीब 20 मीटर तक मार्ग बदलते हुए साफ तौर देखा जा सकता है. यह दर्शाता है कि टक्कर गलती से नहीं लगी बल्कि जानबूझकर मारी गई.’
साथ ही जोड़ा गया है, ‘ऑटो ने कुछ देर तक आनंद का पीछा किया, जो यह बताता है कि चालक वाहन में मौजूद एक साथी के साथ उन पर लगातार नजरें बनाए था और अपनी योजना को अंजाम देने का मौका ढूंढ रहा था.’
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आरोपी को क्राइम सीन से कैसे जोड़ा
सीबीआई ने अपनी जांच में सबूत के तौर पर दोनों आरोपियों की क्राइम सीन में मौजूदगी और जो ऑटो बरामद किया गया है, उसका अपराध में इस्तेमाल होना साबित करने के लिए कई फोरेंसिक रिपोर्टों का हवाला दिया है.
दिल्ली की एक एफएसएल रिपोर्ट, जिसका उल्लेख चार्जशीट में है, में विशेषज्ञों ने कहा है कि ऑटो ने ‘मौके से फरार होने से पूर्व जज को टक्कर मारने के लिए सड़क पर अपना रास्ता बदला था.’
एफएसएल रांची निदेशालय की एक अन्य रिपोर्ट (इसका भी चार्जशीट में हवाला दिया गया है) में कहा गया है कि अपराध स्थल से बरामद किए गए फाइबर के टुकड़े उसी ऑटो के हैं जिसे जांच के दौरान जब्त किया गया था.
आरोपपत्र में बताया गया है कि दोनों आरोपियों की डीएनए प्रोफाइलिंग भी कराई गई थी और एफएसएल रांची की एक रिपोर्ट ने ऑटो में आरोपी लखन की मौजूदगी की पुष्टि की, क्योंकि ऑटो से जब्त रूमाल और अंडरवियर से मिले डीएनए प्रोफाइल और रक्त के नमूने एक ही ‘इंसान’ के पाए गए हैं.
इसके अलावा, मुंबई के एक फोरेंसिक मेडिसिन एक्सपर्ट की रिपोर्ट में कहा गया है कि मृतक की खोपड़ी के बाएं हिस्से पर चोट ‘संभवत: ऑटो के पीले नुकीले किनारे के कारण आई है’ और यह मौत का कारण बनने के लिए पर्याप्त है. आरोपपत्र में यह भी कहा गया है कि आनंद की खोपड़ी के दाहिने हिस्से में चोट 23 किमी प्रति घंटे की गति से चल रहे ऑटो की चपेट में आकर जमीन पर गिरने के कारण लगी है.
चार्जशीट के मुताबिक, फोरेंसिक विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि ड्राइवर ‘अपने होशो-हवाश में था और वाहन पर उसका पूर्ण नियंत्रण था.’
सीबीआई ने अगस्त में मामले की जांच धनबाद पुलिस से अपने हाथ में ली थी और 20 अक्टूबर को दोनों आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की. हालांकि, उस समय हत्या के मकसद का उल्लेख नहीं किया गया था और सीबीआई ने कहा था कि इसे स्थापित करने के लिए जांच की जा रही है. झारखंड हाई कोर्ट ने पिछले महीने कहा था कि वह इस मामले में एजेंसी की जांच और उसकी गति धीमी होने से ‘निराश’ है.
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