scorecardresearch
Sunday, 24 November, 2024
होमइलानॉमिक्ससरकारी बॉन्ड मार्केट को खुदरा निवेशकों के लिए खोलना अच्छी पहल, मगर इसे सफल बनाना भी जरूरी

सरकारी बॉन्ड मार्केट को खुदरा निवेशकों के लिए खोलना अच्छी पहल, मगर इसे सफल बनाना भी जरूरी

खुदरा निवेशकों की सीधी भागीदारी के बाद पूरे बॉन्ड मार्केट को भी शामिल किया जाना चाहिए, और डेट प्रबंधन के काम को रिजर्व बैंक से अलग किया जाए.

Text Size:

भारत ने सरकारी बॉन्ड मार्केट के द्वार खुदरा निवेशकों के लिए खोल दिए हैं ताकि सरकार की कर्जों की भारी जरूरत की खातिर पैसे जुटाने के लिए निवेशकों का आधार बढ़ाया जा सके. भारतीय रिजर्व बैंक ने इस साल फरवरी में अपने ‘स्टेटमेंट ऑन डेवलपमेंटल ऐंड रेगुलेटरी पॉलिसीज’ में घोषणा की थी कि वह खुदरा निवेशकों को ऑनलाइन सरकारी प्रतिभूति के प्राइमरी और सेकंडरी बाज़ारों में पहुंचने की अनुमति देगा. इसके साथ उन्हें रिजर्व बैंक में अपना सरकारी प्रतिभूति खाता (रिटेल डाइरेक्ट गिलट अकाउंट) खोलने और चलाने की सुविधा भी देगा.

यह स्वागतयोग्य कदम है क्योंकि यह खुदरा निवेशकों के लिए सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करना और उनकी ट्रेडिंग करना अधिक आसान और सस्ता बनाएगा. अगला कदम एक स्वतंत्र पब्लिक डेट मैनेजमेंट एजेंसी (पीडीएमए) बनाने का होना चाहिए. इसके बाद सरकार और रिजर्व बैंक को बॉन्ड मार्केट रेगुलेशन और इन्फ्रास्ट्रक्चर को मुख्यधारा के वित्त बाज़ार और इन्फ्रास्ट्रक्चर से जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए.

2016 में, नेशनल सिक्युरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) सर्विसेज़ और सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज़ (इंडिया) लिमिटेड (सीएसडीएल) के डीमैट खाताधारकों को अपने डिपॉजिटरी भागीदारों के जरिए ‘एनडीएस-ओएम’ (निगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम-ऑर्डर मैचिंग) प्लेटफॉर्म पर सरकारी प्रतिभूतियों की ट्रेडिंग करने की इजाजत दी गई थी. इन भागीदारों का सब्सिडियरी जनरल लेजर (एसजीएल) खाता होना चाहिए था. 2018 में, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने अपने प्लेटफॉर्म पर प्राइमरी मार्केट में सरकारी बॉन्डों की खरीद की सुविधा दी थी.

लेकिन सेकेंडरी मार्केट में ट्रेडिंग और सेटलमेंट केवल रिजर्व बैंक द्वारा प्रबंधित इन्फ्रास्ट्रक्चर के जरिए ही संभव है. यह व्यवस्था सरकारी प्रतिभूतियों में सुगम ट्रेडिंग और निवेश की राह में रोड़ा डालती है.


यह भी पढ़ें: आर्थिक स्थिति सुधरने लगी है लेकिन दुनियाभर में हो रहे बदलावों पर भारत को रखनी होगी नजर


बॉन्ड मार्केट का जुड़ाव

एक्सचेंज, क्लियरिंग हाउस और डिपॉजिटरी ही बॉन्ड मार्केट का इन्फ्रास्ट्रक्चर है. इन तीनों का प्रबंधन रिजर्व बैंक के हाथ में है. 1990 के दशक के शुरू में हर्षद मेहता घोटाले के बाद रिजर्व बैंक ने सरकारी प्रतिभूतियों की होल्डिंग के लिए इलेक्ट्रॉनिक लेजर की स्थापना की. ‘एसजीएल’ नामक यह लेजर सरकारी प्रतिभूति अधिनियम 2006 के तहत सरकारी प्रतिभूतियों की एकमात्र वैधानिक डिपॉजिटरी है. बैंक और वित्त संस्थान ‘एसजीएल’ के सदस्य होते हैं, जिनके खाते डिपॉजिटरी में होते हैं जिनमें वे सरकारी प्रतिभूतियों को जमा रखते हैं.

वैधानिक फ्रेमवर्क ने रिजर्व बैंक को डिपॉजिटरी में भागीदारी की निगरानी, उसका प्रबंधन और नियमन करने का विशेष अधिकार दिया है. रिजर्व बैंक के पास ‘एनडीएस-ओएम’ सिस्टम है, जो सरकारी प्रतिभूतियों की ट्रेडिंग का केंद्र है. रिजर्व बैंक ने एक अनौपचारिक ‘क्लियरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ (सीसीआइएल) के गठन की प्रक्रिया शुरू की जिसका स्वामित्व बैंकों के हाथ में होगा. इस तरह, बॉन्ड मार्केट के लिए एक समानांतर केंद्र—क्लियरिंग हाउस—डिपॉजिटरी बनता है. यह व्यवस्था मुख्यधारा के वित्त बाज़ार इन्फ्रास्ट्रक्चर से अलग कोठले के रूप में काम करती है.

अंतरराष्ट्रीय अनुभव बताता है कि बॉन्ड मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर मुख्यधारा के वित्त बाज़ार इन्फ्रास्ट्रक्चर का ही एक हिस्सा होता है. अधिकतर देशों में सरकारी बॉन्डों की ट्रेडिंग शेयर बाज़ार द्वारा उपलब्ध कराए गए प्लेटफॉर्म पर होती है. सरकारी बॉन्डों के लिए डिपॉजिटरी इन्फ्रास्ट्रक्चर दूसरी प्रतिभूतियों के लिए संयुक्त इन्फ्रास्ट्रक्चर का हिस्सा होती है. प्रतिभूति बाज़ार का रेगुलेटर कुछ अपवादों को छोड़कर सरकारी प्रतिभूतियों के सेटलमेंट की निगरानी करता है. भारत एकमात्र देश है जहां बॉन्ड मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर के तीनों तत्वों का स्वामित्व, नियंत्रण और प्रबंधन केंद्रीय बैंक के हाथ में है.

बॉन्ड बाज़ार का नियमन इसके बाज़ार इन्फ्रास्ट्रक्चर की तरह भारत के प्रतिभूति बाज़ार से अलग है. वैधानिक फ्रेमवर्क (खासकर आरबीआई एक्ट, 1934 और सरकारी प्रतिभूति अधिनियम, 2006) में संशोधन के जरिए बॉन्ड बाज़ार के नियमन अधिकार रिजर्व बैंक को दे दिए गए हैं. अधिकतर देशों में वित्त बाज़ार के एकीकृत रेगुलेटर ही सरकारी बॉन्ड बाज़ार के भी रेगुलेटर होते हैं.

भारत सरकार के प्रतिभूति बाज़ार में निवेशकों को ज्यादा भागीदारी के लिए प्रेरित करने वाली गहराई और तरलता का अभाव है. सेकेन्डरी मार्केट में कम ट्रेडिंग होती है. ज्यादा ट्रेडिंग कुछ ही प्रतिभूतियों और कुछ परिपक्व होने वाले ‘बकेट्स’ तक ही सीमित रहती है. बॉन्ड मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर और प्रतिभूति बाज़ार इन्फ्रास्ट्रक्चर में सहज एकीकरण की कमी के चलते लागत बढ़ती है और खुदरा की व्यापक भागीदारी में बाधा पैदा होती है. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में कई कदमों की घोषणा की गई है लेकिन अलग-अलग मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण टकराव होता रहता है.

सरकारी प्रतिभूतियों के निर्गम और उनकी ट्रेडिंग को किसी अन्य प्रतिभूति की तरह खुदरा निवेशकों के डीमैट खाते में जारी करने की छूट देकर आसान बनाया जा सकता है. इससे सरकार को निवेशकों का व्यापक आधार बनाकर अपने उधार संबंधी कार्यक्रम को पूरा करने में मदद मिल सकती है.

रिजर्व बैंक के लिए चुनौती

फिलहाल रिजर्व बैंक के सामने चुनौती यह है कि सरकार के विशाल उधार कार्यक्रम को कम लागत में कैसे पूरा किया जाए. कच्चे तेल और जींसों की अंतरराष्ट्रीय कीमत में वृद्धि के कारण इनपुट लागत ऊंची हो रही है और इससे कीमतों में व्यापक वृद्धि हो सकती है. रिजर्व बैंक जब आर्थिक वृद्धि में फिर जान डालने पर ज़ोर दे रहा है, आर्थिक सुधार की गति और मांग में तेजी के कारण उसे ब्याज दरों में वृद्धि का रास्ता चुनना होगा.

बढ़ती दरें रिजर्व बैंक के लिए सरकार के उधार कार्यक्रम को पूरा करना चुनौतीपूर्ण बना देंगी. इस पृष्ठभूमि के साथ, निवेशकों का आधार व्यापक बनाने के लिए खुदरा निवेशकों के लिए अधिक छूट देना स्वागत योग्य कदम है.

निकट अतीत में, रिजर्व बैंक ने सरकारी बॉन्डों में विदेशी निवेशकों को अधिक हिस्सेदारी की छूट देकर निवेशकों का आधार व्यापक करने की कोशिश की थी. विदेशी निवेशकों द्वारा निवेश के लिए ‘पूरी तरह आसान रास्ता’ खोला गया, जिसके तहत कुछ विशेष प्रतिभूतियों को उनके लिए बेरोकटोक उपलब्ध कराया गया.

अब तक, अधिकांश सरकारी प्रतिभूतियां बैंकों के हाथ में हैं. कर्ज की मांग जब बढ़ रही है, बैंक के कब्जे में सरकारी बॉन्डों का अनुपात घट सकता है. जब सरकारी प्रतिभूतियां विविधतापूर्ण निवेशाक आधार के साथ अधिक बाज़ार-केन्द्रित हो रही हैं, डेट का प्रबंधन अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगा. तब सरकारी उधार कार्यक्रम को चलाने के लिए विशेष किस्म की एजेंसी की जरूरत होगी.

खुदरा की सीधी भागीदारी स्वागतयोग्य कदम है. इसके बाद एक ओर तो पूर्ण बॉन्ड बाज़ार का समावेश जरूरी है, दूसरी ओर डेट प्रबंधन को रिजर्व बैंक से अलग करने की जरूरत होगी. भारत को 10 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने के लिए निर्णायक कदम होगा वित्त क्षेत्र में सुधार.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडे एनआईपीएफपी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)



share & View comments