बेंगलुरु: अमेरिकी मनोचिकित्सक डॉ. आरोन बेक, जिन्होंने कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) विकसित की थी, 1 नवंबर को 100 वर्ष की आयु में गुज़र गए.
सीबीटी से बहुत से मनोवैज्ञानिक विकार और मानसिक समस्याओं का इलाज किया जाता है जिनमें डिप्रेशन भी शामिल है. बेक को इस तरीक़े से, मानसिक स्वास्थ्य के पूरे क्षेत्र को बदल देने का श्रेय जाता है, जिसे उन्होंने 1980 और 1990 के दशक में कॉग्निटिव थेरेपी और बिहेवियरल थेरेपी को मिलाकर विकसित किया था.
बेक ने ख़ुद से और सह-लेखकों के साथ मिलकर मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में 600 से अधिक रिसर्च पेपर्स प्रकाशित किए और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े शोध के लिए उन्हें बहुत से प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें क्लीनिकल मेडिकल रिसर्च के लिए 2006 का एल्बर्ट लस्कर अवॉर्ड भी शामिल है.
1994 में उन्होंने अपनी बेटी और प्रसिद्ध मनोविज्ञानी जूडिथ एस बेक के साथ मिलकर बेक इंस्टीट्यूट फॉर कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी की सह-स्थापना की. फिलाडेल्फिया में ये एक ग़ैर-मुनाफा संस्थान है, जो सीबीटी के लिए ट्रेनिंग और संसाधन मुहैया कराता है और उसमें शोध भी करता है.
दिप्रिंट समझाता है कि सीबीटी क्या है, और इसके फायदे क्या हैं जिसके लिए मानसिक स्वास्थ्य की दुनिया हमेशा बेक की आभारी रहेगी.
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CBT क्या है?
सीबीटी एक इंटरवेंशन तकनीक है, जिसका उद्देश्य लोगों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करना और उन्हें रोज़मर्रा की चुनौतियों पर क़ाबू पाने में सक्षम बनाना है.
शुरू में इसे अवसाद के उपचार के लिए विकसित किया गया था, लेकिन आज इसका इस्तेमाल बहुत तरह की मानसिक, और मनोदशा विकृतियों के इलाज में किया जाता है जिनमें चिंता भी शामिल है. सीबीटी भोजन विकार, व्यक्तित्व विकार, पदार्थ व्यसन विकार, मनोग्रसित-बाध्यता विकार (ओसीडी), टिक्स, आत्मघाती विचार, पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी), जुए की लत, स्मोकिंग, निचली कमर का दर्द, और फाइब्रोमाइल्जिया से जुड़ी चिंता के इलाज में भी कारगर पाई गई है.
सीबीटी लोगों की सोच और आस्थाओं में, नकारात्मक पैटर्न्स पर क़ाबू पाने में उनकी सहायता करती है, जैसे नकारात्मक भावनाओं को बढ़ाना, तबाही के बारे में सोचना और बहुत सामान्य निष्कर्ष निकालना. ऐसे नकारात्मक विचार जो सही रूप में वास्तविकता को नहीं दिखाते, उन्हें संज्ञानात्मक विकृतियां कहा जाता है, और ये आगे चलकर भावनात्मक संकट और स्वयं को हराने वाले या आत्मनाशी व्यवहार को जन्म देते हैं.
सीबीटी नकारात्मक विचारों को चुनौती देता है, और लोगों को प्रोत्साहित करता है कि संज्ञानात्मक विकृतियों को पहचानकर उनका प्रभाव कम करें.
सीबीटी बिहेवियरल थेरेपी और कॉग्निटिव थेरेपी का मिश्रण है, जिसमें पहले में आत्मनाशी व्यवहार को पहचान कर उसे बदला जाता है, जबकि दूसरे में विचारों के साथ ऐसा किया जाता है. बेक ने कॉग्निटिव थेरेपी भी विकसित की.
ये तकनीक मनोविश्लेषण और फ्रायडियन विश्लेषण के विपरीत है, जिसमें कुल मिलाकर किसी व्यक्ति की सोच, व्यवहार, और व्यक्तित्व को समझने की बजाय, समस्या-समाधान दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया जाता है. मनोविश्लेषण का विकास सिग्मंड फ्रायड ने 1890 के दशक में किया था. इसमें आमतौर पर मरीज़ एक काउच पर लेटा होता है, और वो जिस विषय पर चाहे उस पर बोल सकता है, जबकि विश्लेषक या चिकित्सक मरीज़ की निगाहों से दूर रहता है. ये प्रक्रिया सीबीटी या जस्ट बिहेवियर थेरेपी से कहीं लंबी होती है, और अक्सर बरसों तक चलती है जिसमें ये व्यक्ति के बचपन, सपनों, आकांक्षाओं और आघात आदि की गहराईयों में जाती है.
1990 के दशक में कई वैज्ञानिक स्टडीज़ के बाद, सीबीटी ज़्यादा व्यापक होने लगा, जो मनोविश्लेषण की अपेक्षा इसके केंद्रित दृष्टिकोण और किफायतीपन दोनों की वजह से था.
बेक के कॉग्निटिव ट्रायड
बेक के कॉग्निटिव ट्रायड जिन्हें निगेटिव ट्रायड या डिप्रेसिव कॉग्निटिव ट्रायड भी कहा जाता है सीबीटी का सार हैं, और इनमें माना जाता है कि तीन कारक एक फीडबैक लूप में काम करते हैं, और एक दूसरे को प्रभावित करते हैं और अवसाद तथा चिंता के दौरान सामने आकर ख़ुद को बढ़ा लेते हैं.
ये हैं- दुनिया के बारे में नकारात्मक विचार, भविष्य को लेकर नकारात्मक विचार और स्वयं अपने बारे में नकारात्मक विचार.
नकारात्मक विचार अक्स संज्ञानात्मक विकृतियों या दिमाग़ी पक्षपात को जन्म देता है, जो बहुत आम होते हैं. इनमें किसी निगेटिव घटना के महत्व या असर में इज़ाफा या अतिशयोक्ति, किसी पॉज़िटिव घटना के महत्व को घटाना, निजीकरण यानी किसी निगेटिव प्रभाव की ज़िम्मेवारी अपने ऊपर ले लेना और मनमाने अनुमान या नाकाफी सबूतों के आधार पर निष्कर्ष निकाल लेना आदि शामिल हैं.
सीबीटी के ज़रिए चिकित्सा में ऐसे नकारात्मक सोच के पैटर्न्स की पहचान की जाती है और फिर नई कुशलताओं को अभ्यास में लाया जाता है, जिन्हें उस सूरत में वास्तविक दुनिया की परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है, जब ऐसे विचार पैदा होते हैं.
बेक ने बेक डिप्रेशन इनवेंट्री भी विकसित की- 35 बिंदुओं की एक ऐसी प्रश्नावली, जिसे अक्सर व्यक्तियों में डिप्रेशन के स्तर के नापने का एक मानक परीक्षण माना जाता है.
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