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Thursday, 21 November, 2024
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मध्य प्रदेश के मंत्री नरोत्तम मिश्रा, जो एक ‘नेक दिल इंसान’ से कट्टरपंथी हिंदुत्व के झंडाबरदार बने

फिल्म और सीरीज निर्माताओं को अपनी स्क्रिप्ट जिला प्रशासन से क्लियर कराने के लिए कहने से लेकर डाबर के समलैंगिक जोड़े वाले विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने तक, नरोत्तम मिश्रा ने कई विवादों को जन्म दिया है.

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नई दिल्ली: जुलाई 2017 की एक दोपहर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का एक समूह शिवपुरी में मध्य प्रदेश के तत्कालीन जल संसाधन और सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा का पुतला जलाने के लिए एकत्र हुआ. कांग्रेस मिश्रा को शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार से हटाने की मांग कर रही थी, क्योंकि उससे पिछले माह ही चुनाव आयोग ने कथित तौर पर गलत व्यय विवरण दाखिल करने—जिसमें 2008 के चुनाव में ‘पेड न्यूज’ पर खर्च का ब्यौरा शामिल नहीं किया गया था—पर उन्हें विधानसभा के अयोग्य घोषित कर दिया था.

शिवपुरी में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पुतले पर पेट्रोल छिड़क दिया और जैसे ही उसमें आग लगाने वाले थे, पूनम पुरोहित नाम की 26 वर्षीय एक महिला इसकी तरफ लपकी. उसने पुतले को गले लगा लिया और फिर उसे छोड़ा नहीं. कुछ देर तक छीना-झपटी के बाद नाराज कांग्रेसी कार्यकर्ता वहां से चले गए. पता चला कि पूनम एक कैंसर रोगी थी और मिश्रा अपने पूर्व पद स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर उसे चिकित्सकीय मदद दिलाते रहे हैं और उसकी आर्थिक मदद करते थे.

1990 के बाद से एक को छोड़कर बाकी सब विधानसभा चुनाव जीतने वाले मिश्रा पिछले चार सालों से लगातार सुर्खियों में बने हैं—यह बात अलग है कि ऐसा एक नेक दिल मददगार इंसान होने की वजह से नहीं है. दिल्ली हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग के अयोग्यता आदेश को रद्द कर दिया था लेकिन मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.

आजकल गृह मंत्री के पद पर आसीन और चौहान सरकार में वस्तुत: नंबर दो की हैसियत रखने वाले नरोत्तम मिश्रा विवाद भड़काने के कारण अधिक चर्चा में रहते हैं. हाल में बजरंग दल कार्यकर्ताओं द्वारा फिल्म निर्माता प्रकाश झा के सेट पर तोड़फोड़ करने और उनके चेहरे पर स्याही फेंके जाने के बाद मिश्रा ने वेब सीरीज का नाम बदलने पर विचार करने का फरमान जारी किया है, क्योंकि इसके नाम आश्रम से ‘बहुसंख्यक समाज की भावनाएं आहत होती हैं.’

मिश्रा ने घोषणा की है कि यदि कोई आपत्तिजनक दृश्य है जो किसी धर्म की भावनाओं को आहत करता हो तो फिल्म या वेब-सीरीज निर्माताओं को अपनी स्क्रिप्ट क्लियर कराने के लिए मप्र के जिला प्रशासन से मंजूरी लेनी होगी.

मिश्रा ने डाबर से अपना वह विज्ञापन वापस लेने को भी कहा है, जिसमें एक समलैंगिक जोड़े को करवा चौथ मनाते दिखाया गया था.

अगस्त में जब भीड़ ने इंदौर में एक मुस्लिम चूड़ी-विक्रेता को पीटा था तो मिश्रा ने यह कहते हुए इसे जायज ठहराने की कोशिश की थी कि जब कोई आदमी अपना नाम और धर्म छिपाता है—जैसा पीड़ित ने कथित तौर पर किया भी था—तो समाज में ‘कड़वाहट’ आती है.

इसलिए ऐसा क्या है जिसने मिश्रा की छवि ध्रुवीकरण बढ़ाने वाली बना दी है?

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘उनका मानना है कि जमाना हार्डलाइनर का है और अब उनका टाइम है.’


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‘हिंदू धर्म और संस्कृति के रक्षक’

हमेशा कुर्ता-पायजामा पहने और माथे पर तिलक लगाए नजर आने वाले वाले मिश्रा अब लगातार विवादों को हवा देते दिख रहे हैं. उन्होंने मध्य प्रदेश विधानसभा में धर्मांतरण विरोधी विधेयक पेश किया और इसके पारित होने के बाद घोषणा की कि वह ‘ऐसे किसी भी प्रेम का विरोध करेंगे जो जिहाद की ओर ले जाता हो.’

पिछले साल नवंबर में उन्होंने एक मंदिर में एक चुंबन दृश्य को लेकर वेब-सीरीज ए सूटेबल बॉय के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया था. कुछ हफ्ते बाद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तुलना रामायण की कैकेयी से कर दी थी.

दिप्रिंट से बात करने वाले कई भाजपा नेताओं की राय है कि मिश्रा का हिंदू धर्म और संस्कृति के रक्षक के तौर पर सामने आना पार्टी के शीर्ष नेताओं और इसके वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को खुश करने की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. मध्य प्रदेश में पार्टी का जाना-माना ब्राह्मण चेहरा बने 61 वर्षीय मिश्रा किसी राजनीतिक परिवार से नहीं आते हैं और उन्होंने अपनी राह खुद बनाई है. उन्हें वैचारिक रूप से तैयार करने में आरएसएस की भी कोई भूमिका नहीं रही है.

भाजपा नेताओं का कहना है कि ऐसे समय में जब पार्टी आलाकमान की तरफ से राज्यों में नेताओं की एक नई पीढ़ी को आगे लाया जा रहा है और यहां भी शिवराज चौहान से आगे के विकल्प देखे जा रहे हैं, मिश्रा अपने लिए मजबूत अवसरों की तलाश में जुटे हैं और इसके लिहाज से ही खुद को हिंदुत्व के अगुआ के तौर पर सामने रखने की कोशिश कर रहे हैं. एक समय वह चौहान के विश्वासपात्र हुआ करते थे लेकिन अब अमित शाह जैसे केंद्रीय नेताओं के नजदीकी नेताओं में शुमार हो गए हैं.

वैसे तो चौहान ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने में अहम भूमिका निभाई, जिसके कारण कमलनाथ सरकार गिर गई थी. लेकिन मिश्रा ने भी राजनीतिक हलकों में ‘ऑपरेशन कमल’ के नाम से चर्चित इस अभियान में कम महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई थी.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘उन्होंने 10 दिनों के लिए बागी कांग्रेस विधायकों के साथ गुरुग्राम के एक होटल में रुकने का फैसला किया. उन्होंने उनके रहने-खाने की व्यवस्था की और उनके भोपाल आने के लिए फ्लाइट का इंतजाम भी किया.’

हालांकि, मिश्रा के पार्टी सहयोगी ‘जमीनी स्तर पर जुड़ाव’ के लिए उनकी प्रशंसा करते हैं. भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘वह लोगों की नब्ज पहचानते हैं. उनका आवास एक ऐसी जगह है जहां आप उनकी गैर-मौजूदगी में भी हमेशा कार्यकर्ताओं का जमावड़ा पाएंगे.’

हालांकि, राजनीतिक टिप्पणीकार और लेखक रशीद किदवई का कहना है, ‘उनकी कुछ टिप्पणियां स्पष्ट तौर पर भड़काऊ होती हैं और उनके राजनीतिक आकाओं को इस पर ध्यान देना चाहिए. वह हमेशा उत्सुकता से भरे रहने वाले व्यक्ति है और दिखाना चाहते हैं कि वह आ गए हैं. औचित्यपूर्ण मुद्दों को तो अब कोई महत्व नहीं दिया जाता है, लेकिन इनके बयानों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है.’

‘शिवराज चौहान के लिए खड़ी कर रहे मुश्किलें’

मिश्रा ने अपनी राजनीतिक शुरुआत भाजपा युवा मोर्चा के सदस्य के तौर पर की थी और 2005 में बाबूलाल गौर के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री बने. वह तबसे हमेशा सरकार का हिस्सा रहे हैं, 2008-2009 में कुछ महीनों को छोड़कर—जब उन्होंने गुना में ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा और असफल रहे.

भाजपा के एक अंदरूनी सूत्र ने बताया, ‘कमलनाथ सरकार गिरने के बाद भले ही वह मुख्यमंत्री न बन पाए हों, लेकिन चौहान के लिए मुश्किलें जरूर खड़ी कर रहे हैं. कैबिनेट बैठकों में वह कई सवाल उठाते हैं, जो स्पष्ट तौर पर मुख्यमंत्री के लिए परेशानी का सबब होते हैं. इनके बारे में सत्ता के गलियारों में काफी चर्चा भी होती रहती है.’

सूत्र ने कहा, ‘शायद, उन्हें इस बात का अहसास हो गया है कि भोपाल में जब कोई सत्ता परिवर्तन होगा तो आरएसएस की पृष्ठभूमि न होना उनके खिलाफ जाएगा. वह पार्टी का एक प्रमुख ब्राह्मण चेहरा हैं, लेकिन हिंदुत्व वाली साख साबित करने के लिए उन्हें खुद को हार्डलाइनर साबित करना होगा.’

पार्टी नेता बताते हैं कि अमित शाह 2017 में भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद जब पहली बार मध्य प्रदेश आए थे तो वरिष्ठ संपादकों के लिए लंच रखा गया था जिसकी मेजबानी नरोत्तम मिश्रा ने ही की थी. पार्टी में कई लोगों का मानना है कि पार्टी आलाकमान के साथ मिश्रा के समीकरणों का यह शुरुआती संकेत था.

उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. तथ्य यह है कि मिश्रा और सिंधिया दोनों को इसी महीने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया जाना पार्टी के अंदर राज्य के गृह मंत्री के बढ़ते कद के बारे में बहुत कुछ कहता है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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