नई दिल्ली: पिछले हफ्ते चीन ने एक नया क़ानून- ज़मीनी सीमा अधिनियम पास कर दिया- जो 1 जनवरी के बाद से लागू हो जाएगा और अपेक्षा है कि ये भारत के लिए एक भारी चुनौती पेश करेगा, जिसकी इस देश के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी अनसुलझी सीमा है.
शनिवार को बीजिंग द्वारा पास किए गए इस क़ानून का संबंध, अपने 14 पड़ोसी मुल्कों के साथ देश की 22,100 किलोमीटर लंबी सीमाओं पर गश्ती गतिविधियों से है और चीन के आधुनिक इतिहास में इसे अपनी तरह का पहला नीतिगत क़दम माना जा रहा है.
नए क़ानून के अनुसार, ‘राज्य ऐसे प्रभावी क़दम उठाएगा, जिनसे सीमा सुरक्षा निर्माण को मज़बूत किया जा सके, सीमा के आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ाया जा सके, बाहरी दुनिया के साथ खुलते हुए सीमा के लोगों को समृद्ध किया जा सके, सीमावर्त्ती जन सुविधाओं और ढांचागत निर्माण को सुधार जा सके, सीमा पर उत्पादन और जीवन-स्थिति को सुधारा जा सके, सीमा उत्पादन और जीवन दोनों में प्रोत्साहन और सहायता दी जा सके, और सीमा रक्षा निर्माण तथा सीमा की अर्थव्यवस्था, और समाज के समन्वित विकास को बढ़ावा दिया जा सके.’
बीजिंग के अनुसार क़ानून का मक़सद ‘राष्ट्रीय संप्रभुता, सुरक्षा, और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करना था’, और साथ ही उन देशों के साथ ‘अच्छे पड़ोसी रिश्तों और आपसी लेन-देन तथा सहयोग को बढ़ावा देना है’ जिनसे उसकी ज़मीनी सीमा लगती है.
क़ानून ने कुछ जिज्ञासा जगा दी है, क्योंकि ये ऐसे समय आया है जब भारत और चीन के बीच लद्दाख़ में टकराव के कुछ बिंदुओं की जगहों से पीछे हटने के बावजूद, एक साल से सीमा विवाद चल रहा है. जहां कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस क़ानून से, चीन के बातचीत के रुख़ में कड़ाई का संकेत मिलता है, वहीं कुछ अन्य एक्सपर्ट्स मानते हैं, कि ये ‘ख़ाली शेख़ी’ है.
बीजिंग और थिम्पू में भारत के पूर्व राजदूत गौतम बंबावाले ने दिप्रिंट से कहा कि ये क़ानून ‘ढेर सारी लफ्फाज़ी है. ये सिर्फ कोरी शेख़ी है. इससे ज़मीनी वास्तविकता पर कोई फर्क़ नहीं पड़ता’.
उन्होंने आगे कहा, ‘मई 2020 में अपनी सैन्य कार्रवाई शुरू करके चीन ने दिखा दिया है, कि वो भारत के साथ बातचीत से नहीं बल्कि ताक़त के बल पर, अपनी सीमा तय करना चाहता है. भारत ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया है. मई 2020 के बाद से पिछले कुछ महीनों में भारत-चीन रिश्ते और बिगड़े हैं. अगर ये नया क़ानून भारत के लिए संदेश था, तो मुझे डर है कि ये मुंह के बल गिर गया है, क्योंकि इससे ज़मीनी वास्तविकता में कोई बदलाव नहीं आया है’.
पिछले जून में, भारत और चीन के सैनिक पूर्वी लद्दाख़ में गलवान घाटी में टकराए थे. भारत ने 20 सैनिक गंवा दिए थे, जबकि चीनी सैनिकों की मौत की संख्या अभी तक स्पष्ट नहीं है.
सितंबर 2020 में, विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्षी वांग यी के बीच एक बैठक के दौरान, दोनों पक्ष मौजूदा सीमा समझौतों पर फिर से चर्चा, और विश्वास-बहाली उपायों की समीक्षा करने पर सहमत हो गए.
‘नया क़ानून भारतीय नज़रिए से बेहद अहम’
नए क़ानूनों के विशिष्ट प्रावधानों को समझाते हुए, तक्षशिला संस्थान में फेलो चाइना स्टडीज़, मनोज केवलरमानी ने कहा, ‘नया क़ानून भारतीय नज़रिए से बेहद अहम है. भारत उन दो देशों में से एक है जिनकी पीपुल्स रिपब्लिक के साथ एक विवादित ज़मीनी सीमा है, और ये क़ानून उससे ज़रूर टकराएगा’.
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केवलरमानी ने, जो स्मोकलेस वॉर:चाइनाज़ क्वेस्ट फॉर ज्योग्राफिकल डॉमिनेंस के लेखक भी है, कहा कि नीति के अनुच्छेद 1, जिसमें ज़मीनी सीमाओं के ‘परिसीमन और सीमांकन’ की बात की गई है, और अनुच्छेद 4 जिसमें कहा गया है, कि ‘संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पवित्र और अलंघनीय’ हैं, से संकेत मिलता है कि भारत के साथ सीमा वार्त्ता की बात आएगी, तो चीन एक ‘ज़्यादा कड़ा रुख़’ अपना सकता है.
उन्होंने कहा, ‘ये एक व्यापक क़ानून है जो केवल सीमा सुरक्षा और विकास ही नहीं, बल्कि प्रबंधन की भी बात करता है, और प्रमुख एजेंसियों को विशिष्ट कार्य सौंपता है. ये एक आंशिक प्रयास है जिसमें क़ानूनी ढांचे खड़ा करने, कार्यों तथा ज़िम्मेदारियों की पहचान करने, और ऐसे फ्रेमवर्क स्थापित करने की कोशिश की गई है, जिससे सरकारी कार्रवाई अधिकृत की जा सके’.
उन्होंने ये भी कहा कि क़ानून का एक और पहलू- अनुच्छेद 10- सीमा सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के समन्वित विकास की बात करता है.
उन्होंने कहा, ‘इसके लिए सीमा की रक्षा को मज़बूत करना होगा, सीमावर्त्ती इलाक़ों में आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना होगा, और उन क्षेत्रों में जन सेवाओं तथा इनफ्रास्ट्रक्चर में सुधार करना होगा. ये उन सीमावर्त्ती गांवों से जुड़े कार्यों के लिए, एक मज़बूत कानूनी ढांचा और प्रोत्साहन मुहैया कराता है, जो पूरे तिब्बत में बसाए गए हैं’.
चीन स्कॉलर और रिसर्चर अंतरा घोसाल सिंह ने, जो पहले सेंटर फॉर सोशल एंड इकनॉमिक प्रोग्रेस (सीएसईपी) के साथ थीं, कहा कि चीन में कुछ समय से ज़मीनी सीमा क़ानून पर चर्चा चल रही थी. सिंह ने आगे कहा कि इसके पीछे के कारक ये रहे हैं, कि चीन की रूचि इसमें है कि वो एकरूपता और मानकीकरण लाए, और केंद्रीय तथा प्रांतीय स्तर पर अपनी सीमा प्रबंधन नीतियों तथा नियमों में विरोधाभास को रोक सके.
सिंह ने कहा, ‘ये चीन की पश्चिमी विकास रणनीति का हिस्सा है, जो 90 के दशक से चली आ रही है. ख़ासकर तिब्बत के मामले में, वो एक ऐसी चीज़ का निर्माण करना चाहते हैं, जिसे वो ‘साउथ एशियन ग्राण्ड पैसेज’ कहते हैं.’
पीछे हटने पर वार्त्ताएं
भारत और चीन दोनों के बीच सैन्य तथा राजनयिक स्तर पर, पीछे हटने के लिए सिलसिलेवार वार्त्ताएं हुई हैं, जिनमें 1993 के बाद से सीमा प्रबंधन को लेकर स्थापित किए गए, पांच मौजूदा प्रोटोकोल्स को आधार बनाया जाएगा.
ये समझौते हैं भारत-चीन सीमावर्त्ती क्षेत्रों में, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बनाए रखने के लिए 1993 का समझौता; एलएसी पर सैन्य क्षेत्र में विश्वास बहाली उपायों पर 1996 का समझौता, एलएसी पर सैन्य क्षेत्र में विश्वास बहाली उपायों को लागू करने के तौर-तरीक़ों पर 2005 का प्रोटोकोल, भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए, एक कार्य तंत्र स्थापित करने पर 2012 का समझौता और 2013 का सीमा रक्षा सहयोग समझौता.
एक पूर्व रॉ अधिकारी के अनुसार, जो अपनी नाम नहीं बताना चाहते थे, क़ानून केवल ये सुनिश्चित करता है कि बातचीत पर चीन का रुख़ ‘ज़्यादा सख़्त और कठोर’ हो जाएगा, और इससे भारत के साथ तनावों में कोई बदलाव नहीं आएगा.
इसी महीने चीन और भूटान ने, अपनी सीमा वार्त्ताओं को गति देने के लिए, एक समझौता ज्ञापन पर दस्तख़त किए हैं.
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