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Friday, 22 November, 2024
होमदेशये बैंगन है या टमाटर? नहीं, ये है ‘ब्रिमेटो’, बिल्कुल पोमेटो की तरह, जिसकी क़लम वाराणसी के वैज्ञानिकों ने तैयार की है

ये बैंगन है या टमाटर? नहीं, ये है ‘ब्रिमेटो’, बिल्कुल पोमेटो की तरह, जिसकी क़लम वाराणसी के वैज्ञानिकों ने तैयार की है

ICAR-IIVR का कहना है कि ब्रिमेटो के एक पौधे से, 3-4 किलो बैंगन और 2-3 किलो टमाटर मिल सकते हैं. अर्ध-शहरी और शहरी इलाक़ों में छोटी जगहों पर इसकी उपज अधिक होगी और लागत भी कम आएगी.

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नई दिल्ली: वाराणसी में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय सब्ज़ी अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-आईआईवीआर) के वैज्ञानिक, एक ऐसी तकनीक विकसित करने में सफल हो गए हैं, जिसमें एक ही पौधे से बैंगन और टमाटर दोनों मिलते हैं. इसका नाम उन्होंने ‘ब्रिमेटो’ रखा है.

इस उपलब्धि से अर्ध-शहरी और शहरी इलाक़ों में, किचन गार्डन जैसी छोटी जगहों में ज़्यादा सब्ज़ियां उगाई जा सकेंगी. अपेक्षा की जा रही है कि इससे सब्ज़ियों की उपलब्धता में सुधार होगा, और मज़दूरी, पानी, तथा केमिकल्स जैसी इनपुट लागतों में कमी आएगी.

अनुमान के मुताबिक़ ‘ब्रिमेटो’ के हर एक पौधे से, 3-4 किलोग्राम बैंगन और 2-3 किलो टमाटर मिल सकता है.

आईआईवीआर पहले भी कामयाबी के साथ ‘पोमेटो’ नामक पौधे की क़लम तैयार कर चुका है, जिससे आलू और टमाटर की मिश्रित उपज मिलती है.

ब्रिमेटो को एक या कई क़लम तैयार करके विकसित किया गया है, जिसमें एक ही पौधे के परिवार के, दो या उससे अधिक अंकुरों की क़लम एक साथ तैयार की जाती है, जिससे एक ही पौधे से एक से ज़्यादा सब्जियां हासिल की जा सकती हैं. ब्रिमेटो के पेरेंट प्लांट्स एक बढ़े हुए बैंगन हाईब्रिड होते हैं, जिन्हें ‘काशी संदेश’ कहा जाता है, और टमाटर की एक सुधरी हुई क़िस्म होती है, जिसे ‘काशी अमन’ कहते हैं. इन दोनों की क़लम आईसी 111056 कही जाने वाली बैंगन रूट स्टॉक में लगाई गई थी.

कैसे विकसित हुआ ब्रिमेटो

ब्रिमेटो को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों ने समझाया, कि क़लम उस समय लगाई गई, जब बैंगन के अंकुर 25-30 दिन पुराने थे, और टमाटर के 22-25 दिन पुराने थे.

ग्राफ्टिंग यानी क़लम बांधना एक ऐसी तकनीक है, जिसमें टिश्यू पुनर्जन्म के ज़रिए पौधे के हिस्सों को एक साथ जोड़ा जाता है. पौधे के एक हिस्से को किसी दूसरे पौधे के, तने के अंदर या ऊपर, जड़, या टहनी के साथ जोड़ दिया जाता है. जो हिस्सा जड़ उपलब्ध कराता है उसे स्टॉक कहा जाता है, और जुड़े हुए हिस्से को क़लम कहते हैं.


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ब्रिमेटो के मामले में, क़लम बांधने के फौरन बाद अंकुरों को नियंत्रित वातावरण की स्थितियों में रखा गया. तापमान, नमी, और रोशनी को 5-7 दिन तक अनुकूलतम स्तर पर रखा गया, जिसके बाद अंकुरों को इतनी ही अवधि के लिए आंशिक छाया में रख दिया गया. फिर शुरुआती ग्राफ्टिंग ऑपरेशन के 15-18 दिन बाद, पौधों की क़लमों को खेत में लगा दिया जाता है.

फायदे

आईसीएआर-आईआईवीआर के निदेशक डॉ टीके बेहेरा के अनुसार, एक ही पौधे से दो सब्ज़ियां पैदा करने के नए तरीक़े से, खेती के लिए जगह की तंगी से पैदा हुईं, पोषण तथा उत्पादकता संबंधी मौजूदा चुनौतियों से निपटने में सहायता मिलेगी.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘पहले, ये तकनीक फूलों और फलों तक सीमित थी, लेकिन इसे सब्ज़ियों पर भी विस्तारित कर दिया गया है. पोषण सुरक्षा के मामले में भी ब्रिमेटो बहुत उपयोगी साबित होगा- सब्ज़ियों की बढ़ती क़ीमतों के मद्देनज़र, घरेलू पोषण सुनिश्चित करने का ये एक बेहतरीन तरीक़ा है. इससे लागत और बचे हुए ज़हरीलेपन में भी कमी आती है, और फसलों के अंदर रसायन की मौजूदगी घटती है’.

बेहेरा ने कहा, ‘ब्रिमेटो को मात्र 10-11 रुपए की लागत पर, एक महीने की अवधि में विकसित किया जा सकता है. इसे बड़े व्यवसायिक स्तर पर अपनाए जाने के बाद, जिसके प्रयास हो रहे हैं, पौधे की उपलब्धता क़ीमत भी घटकर 4-5 रुपए पर आ जाएगी. इसके अलावा, वैज्ञानिक दूसरी सब्ज़ियों की एक साथ क़लम तैयार करके, ऐसी बहुत सी क़िस्में विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं’.

उन्होंने आगे कहा कि जिस तकनीक से ब्रिमेटो तैयार किया गया, वो प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों जैसे जैविक और अजैविक दबावों के प्रति, फसलों की सहनशीलता बढ़ाने का एक आशाजनक उपकरण साबित होगी. ये भारी जलभराव और सूखा दोनों स्थितियों का सामना कर सकती है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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