देहरादून: संभावना जताई जा रही है कि 2022 के उत्तराखंड चुनावों में, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की संभावनाओं पर, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी की हिंसा का साया मंडराता रहेगा.
राज्य के सिख किसान नेताओं ने, जो मोदी सरकार के तीन नए कृषि क़ानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन से जुड़े रहे हैं, कहा है कि वो अपने समाज के सदस्यों पर ज़ोर डालेंगे, कि चुनावों में बीजेपी का बहिष्कार करें.
दिप्रिंट से बात करते हुए इन नेताओं ने कहा, कि उत्तराखंड के उधम सिंह नगर- जहां क़रीब नौ विधान सभा सीटों पर सिखों की एक निर्णायक भूमिका मानी जाती है- और कुछ दूसरे ज़िलों में समुदाय के सदस्यों से कहा गया है, कि वो न केवल बीजेपी के खिलाफ वोट दें, बल्कि पार्टी के चुनाव अभियान से भी दूर रहें.
उत्तराखंड के सिख किसान नेताओं ने कहा, कि लखीमपुर खीरी हिंसा ने- जिसमें आठ मौतें हुईं- उन्हें मजबूर कर दिया कि वो अपनी बिरादरी के लिए फरमान जारी करें.
लखीमपुर खीरी में उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी सिख आबादी निवास करती है, जिनमें से ज़्यादातर खेती के व्यवसाय में लगे हैं. लखीमपुर खीरी में उस समय हिंसा भड़क उठी, जब केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के क़ाफिले ने, जिसमें संदिग्ध रूप से उनका बेटा आशीष मिश्रा भी शामिल था, किसानों के एक समूह पर कथित रूप से गाड़ियां चढ़ा दीं. आठ लोग मारे गए जिनमें चार किसान थे.
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के उत्तराखंड अध्यक्ष करम सिंह पद्दा ने कहा, ‘आने वाले चुनावों में किसान, ख़ासकर उत्तराखंड में सिख संप्रदाय से ताल्लुक़ रखने वाले, बीजेपी नेताओं के साथ नहीं जाएंगे’.
पद्दा ने आगे कहा, ‘हमने हमेशा उनका समर्थन किया, और (सीएम पुष्कर सिंह) धामी सरकार हम पर मेहरबान रही है, लेकिन लखीमपुर खीरी में प्रदर्शनकारी किसानों की हत्या, और फिर अभियुक्तों की गिरफ्तारी में देरी ने, हमें राज्य में सत्ताधारी पार्टी से दूरी बनाने पर मजबूर कर दिया है’.
आशीष मिश्रा को 9 अक्तूबर को गिरफ्तार किया गया, जब 3 अक्तूबर की घटना को हुए छह दिन हो गए थे.
उत्तराखंड बीकेयू उपाध्यक्ष रंजीत रंधावा ने कहा, ‘स्थिति इतनी गंभीर है कि उत्तराखंड के सिख समाज को, लखीमपुर खीरी में मारे गए लोगों के साथ एकजुटता दिखानी होगी. वोट देना तो दूर, तराई-भाबर बेल्ट के आंदोलनकारी किसान जो मुख्य रूप से सिख समुदाय से हैं, बीजेपी के चुनाव अभियानों में भी हिस्सा नहीं लेंगे. बीजेपी रैलियों में हिस्सा लेते पाए गए सिख समुदाय के सदस्यों को, उनके गांवों में घुसने नहीं दिया जाएगा’.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि लखीमपुर खीरी के पीड़ित ‘हमारे भाई थे, और हमारा फर्ज़ बनता है कि हर संभव तरीक़े से, उनके साथ एकजुटता का इज़हार करें’.
एक अन्य किसान नेता बिजेंदर सिंह डोगरा ने कहा कि समुदाय के किसी भी सदस्य को, बीजेपी के अभियान में हिस्सा लेने नहीं दिया जाएगा.
डोगरा ने कहा, ‘पहले, कृषि क़ानूनों का विरोध था, और किसी से भी एक तरफा तौर से बीजेपी का विरोध करने को नहीं कहा गया था. सिख मतदाताओं को पूरी आज़ादी थी, कि वोट देने के मामले में वो अपने विचार और अपने जुड़ाव रख सकते थे. लेकिन, लखीमपुर खीरी के बाद उत्तराखंड के सिखों से बीजेपी का बहिष्कार करने को कहा गया है. उनका साथ देने वालों को परिणाम भुगतने होंगे’.
विश्लेषकों का कहना है कि इस फरमान का तराई क्षेत्र के चुनावी नतीजों पर असर पड़ सकता है- जो आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन पर निर्भर करेगा- लेकिन बीजेपी नेता बेफिक्र हैं. उनका कहना है कि वो चुनावों के लिए, जो अगले वर्ष के शुरू में होने हैं, समय रहते समुदाय का भरोसा फिर से जीत लेंगे.
उत्तराखंड में सिख फेक्टर
विरोध कर रहे उत्तराखंड के नेताओं की चेतावनियां, जो क़रीब एक साल से ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं, कम से कम काशीपुर से सिटिंग बीजेपी विधायक हरभजन सिंह चीमा के लिए तो मुश्किलें ज़रूर खड़ी कर सकती हैं, जिन्होंने इसी महीने कहा था कि प्रदर्शन स्थलों पर मौजूद लोग, किसान नहीं बल्कि राजनीतिक कार्यकर्त्ता हैं.
डोगरा ने कहा कि चीमा के बयान को ‘बर्दाश्त नहीं किया जा सकता’. उन्होंने कहा, ‘एक किसान का बेटा होते हुए उन्होंने ऐसा कहा. उन्हें चुनावों में इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी. पिछले 20 साल से वो काशीपुर से कभी नहीं हारे, लेकिन इस बार (उनकी जीत की) संभावना नहीं है’.
काशीपुर उन असेम्बली चुनाव क्षेत्रों में से एक है, जहां सिखों और राय सिखों की, चुनाव के नतीजों में निर्णायक भूमिका होती है.
उधम सिंह नगर ज़िले के दूसरे चुनाव क्षेत्र, जहां सिख मतदाता का एक मज़बूत प्रभाव है, वो हैं बाज़पुर, गदरपुर, खटीमा, (जिसके वर्तमान प्रतिनिधि सीएम पुष्कर धामी हैं), नानकमाटा, जसपुर, किच्छा, सितारगंज और रूद्रपुर.
जसपुर को छोड़कर, 70 सीटों वाली असैम्बली के लिए 2017 में हुए चुनावों में, बाक़ी सभी सीटें बीजेपी ने जीत लीं थीं.
2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तराखंड की क़रीब 1.4 करोड़ आबादी में, सिख 2.34 प्रतिशत या 3.4 लाख हैं. उनमें से 80 प्रतिशत से अधिक उधम सिंह नगर में केंद्रित हैं.
उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से सटे उधम सिंह नगर के, सभी नौ असेम्बली चुनाव क्षेत्रों में औसतन 15,000 सिख मतदाता हैं.
इलाक़े के सिख किसान राष्ट्रीय राजधानी के गाज़ीपुर बॉर्डर पर चल रहे कृषि क़ानून-विरोधी प्रदर्शनों में प्रमुख भागीदारी निभा रहे हैं. इलाक़े के समूह पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपने समकक्षियों के साथ, गाज़ीपुर प्रदर्शन में बारी बारी से शरीक हो रहे हैं.
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इलाक़े में खेती की 50 प्रतिशत से अधिक ज़मीन सिख किसानों के पास है, जबकि बाक़ी ज़मीन ग़ैर-सिख पंजाबियों, थारू और बोक्सा आदिवासियों, जाटों, मुसलमानों, और पूर्वी यूपी के प्रवासियों के पास है.
ग़ैर-सिख पंजाबियों और मुसलमानों ने अभी तक अपने आपको आंदोलन से दूर रखा है, लेकिन सिख नेताओं का दावा है कि वो भी प्रदर्शनकारियों के साथ ही वोट करेंगे.
रंधावा ने कहा, ‘फिलहाल, कृषि क़ानूनों का विरोध करने वाले तक़रीबन सभी किसान सिख हैं, लेकिन हमें मुसलमानों और दूसरे किसानों का समर्थन हासिल है, जो अपनी ख़ुद की मजबूरियों के चलते, खुलकर हमारे साथ नहीं आ पा रहे हैं. इसके नतीजे चुनावों में दिख जाएंगे, चूंकि तक़रीबन सभी मुसलमान किसान हमारे साथ हैं’.
नेताओं ने कहा- धामी ‘अच्छे’ इंसान हैं लेकिन उनका बहिष्कार होगा
उधम सिंह नगर के किसानों का कहना है कि अगले कुछ दिनों में, वो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यक्रमों का भी बहिष्कार करेंगे.
किसान नेता कुलविंदर सिंह किंडा ने कहा, ‘नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार और बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने, सिख समाज के सदस्यों और किसानों के बीच भारी ग़ुस्सा भर दिया है. आज कोई बीजेपी नेताओं से बात भी नहीं करना चाहता. सीएम एक अच्छे इंसान हैं, लेकिन उन्हें भी लखीमपुर खीरी घटना का ख़मियाज़ा भुगतना होगा’. कुलविंदर ने कहा कि फिलहाल, उन्होंने बीजेपी से अपना निजी समर्थन वापस ले लिया है.
इसी महीने, धामी और उनके कैबिनेट मंत्री तथा गदरपुर विधायक अरविंद पाण्डेय को, लखीमपुर खीरी घटना के तुरंत बाद किसानों के विरोध के डर से, इलाक़े का अपना दौरा रद्द करना पड़ा.
जहां धामी ने काशीपुर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में शरीक होने से मना कर दिया, वहीं घटना के दो दिन बाद पाण्डेय रोशनपुर (गदरपुर) में एक सभा को संबोधित करने नहीं आए.
डोगरा ने कहा, ‘किसानों ने उस स्थल पर पाण्डेय का विरोध करने के लिए, एक समानांतर स्टेज खड़ा कर लिया’.
BJP को अभी भी उम्मीद? विश्लेषकों का AAP की ओर इशारा
सूबे के राजनीतिक टीकाकार कहते हैं, कि सिखों द्वारा चलाए जा रहे कृषि क़ानून विरोधी आंदोलन का, तराई क्षेत्र तथा हरिद्वार और देहरादून की दूसरी सीटों के चुनावी नतीजों पर असर पड़ेगा.
लेकिन, उन्होंने ये भी दावा किया, कि अगर आप सिख वोटों में बड़ी सेंध लगा लेती है, तो बीजेपी उनमें से कुछ सीटें बचा सकती है.
पिथौरागढ़, कुमाऊं स्थित एक राजनीतिक विश्लेषक प्रेम पुनेठा ने कहा, ‘तराई की नौ सीटों के अलावा, हरिद्वार और देहरादून की कुछ अन्य सीटें भी 2022 चुनावों में प्रभावित होंगी. बीजेपी उत्तराखंड में स्थिति को संभाल सकती थी, अगर लखीमपुर खीरी घटना न हुई होती. अगर आप यहां अच्छा समर्थन जुटा लेती है, तो बीजेपी अभी भी सिख विरोध के असर को कम कर सकती है’.
लेकिन, पुनेठा ने कहा कि ये पंजाब में आप की ताक़त पर निर्भर करेगा. अरविंद केजरीवाल की पार्टी जो 2017 के पंजाब असेम्बली चुनावों में, दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, अभी भी वोट काटने का काम कर सकती है.
BJP कहती है, उत्तराखंड के सिखों को फिर से जीत लेंगे
इस बात को समझते हुए कि सिखों का रोष पार्टी को भारी नुक़सान पहुंचा सकता है, बीजेपी ने कहा है कि चुनाव पास आते आते, वो इस समुदाय का भरोसा फिर से जीत पाने में सफल हो जाएगी.
रूद्रपुर बीजेपी विधायक राजकुमार ठुकराल ने दिप्रिंट से कहा, ‘बीजेपी को निश्चित रूप से सिख किसानों के विरोध से नुक़सान पहुंचेगा, लेकिन हम उसे कम करने की कोशिश करेंगे. कृषि क़ानून-विरोधी प्रदर्शनों और लखीमपुर खीरी घटना ने उन्हें बीजेपी से दूर कर दिया है, लेकिन वो हमारे पारंपरिक समर्थक हैं, और हम उन्हें फिर से मना लेंगे’.
ठुकराल ने आगे कहा, ‘वो ग़ुस्सा हो सकते हैं लेकिन हमारे उनके साथ क़रीबी सामुदायिक रिश्ते हैं. हमने उनकी ओर से किए गए अपमान को सहन किया है, और उत्तराखंड सरकार ने हमेशा उनकी मांगें मानी हैं. मैं देश का अकेला विधायक हूं, जिसने अपनी विधायक निधि से तक़रीबन 2.5 करोड़ रुपए, गुरुद्वारों के विकास पर ख़र्च किए हैं’.
बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता मनबीर चौहान ने कहा, ‘पार्टी नेतृत्व प्रयास कर रहा है कि हमारे खिलाफ सिख समुदाय के ग़ुस्से का, कोई समाधान निकाला जा सके. हमारे सियासी विरोधी और कुछ राष्ट्र-विरोधी ताक़तें, इस पूरे मुद्दे को बीजेपी बनाम सिखों के तौर पर उभारना चाह रही हैं, लेकिन इसे हल कर लिया जाएगा, और हम फिर से तराई क्षेत्र को जीतेंगे’.
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