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Friday, 22 November, 2024
होमदेशकौन हैं निहंग सिख? सिंघु बॉर्डर पर बेअदबी में सिख व्यक्ति को पीट-पीट कर मार देने वाले समुदाय के बारे में जानिए

कौन हैं निहंग सिख? सिंघु बॉर्डर पर बेअदबी में सिख व्यक्ति को पीट-पीट कर मार देने वाले समुदाय के बारे में जानिए

शुक्रवार को 35 वर्षीय लखबीर सिंह नाम के एक शख्स की सिखों के एक पवित्र ग्रंथ का कथित रूप से अपमान करने के आरोप में पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी. हमलावरों ने उसके हाथ-पैर भी काट डाले थे.

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चंडीगढ़: इस शुक्रवार को दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर 35 वर्षीय लखबीर सिंह की कथित तौर निहंगों के एक समूह द्वारा की गई नृशंस हत्या ने इस सिख संप्रदाय को ओर फिर से सबका ध्यान खींचा है.

पंजाब के तरनतारन जिले के चीमा कलां नगर निवासी सिंह की मौत के बाद से ही सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे कई वीडियो में निहंगों के एक समूह ने इस घटना की जिम्मेदारी ली. उसने कथित तौर पर सिखों के एक पावन ग्रंथ ‘सरबलो ग्रंथ‘ को अपवित्र करने की कोशिश की थी.

लखबीर सिंह के हाथ-पैर काट दिए गए थे और उसे एक पुलिस बैरिकेड् से बांध दिया गया था, जहां अत्यधिक खून बह जाने से उसकी मौत हो गई थी. शुक्रवार सुबह उसका शव मिला.

इससे पहले अप्रैल 2020 में, कोविड की रोकथाम के लिए लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान, निहंगों के एक समूह ने पटियाला में एक सहायक पुलिस उप-निरीक्षक का हाथ काट डाला था. इस घटना में जख्मी पुलिसवाले ने जब निहंगों के वाहन को रोकने की कोशिश की और कर्फ्यू पास मांगा था, तो उन्होंने उस पर कृपाण से हमला कर दिया था.

गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर के समाजशास्त्र विभाग में कार्यरत प्रोफेसर परमजीत सिंह जज, जिन्होंने निहंगों की उत्पत्ति और उनके इतिहास पर व्यापक रूप से शोध किया है, बताते हैं कि हाल के वर्षो में कई आपराधिक तत्व कई सारे निहंग डेरों में प्रवेश कर चुके हैं, जो उनके लिए एक सुरक्षित स्थान बन गए हैं.

वे कहते हैं, ’निहंग कोई संगठित संप्रदाय अथवा समूह नहीं है. उनमें बहुत विभाजन है और एक समान परंपराओं और मानदंडों का पालन करने के बावजूद, उनके अपने- अपने स्वतंत्र डेरे हैं, जिनमें से कुछ अपना प्रभुत्व दिखाने के लिए हमेशा एक-दूसरे के साथ लड़ते-भिड़ते रहते हैं.’


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निहंगों की उत्पत्ति कैसे हुई?

निहंग अपनी उत्पत्ति का स्रोत 1699 के आसपास दशम सिख गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना किये जाने से मानते हैं. कई लोग इस संप्रदाय को ‘गुरु दी लाडली फौज’ (गुरु की पसंदीदा सेना) होने का दावा भी करते हैं.

ऐसा माना जाता है कि यह सशस्त्र संप्रदाय छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद जी, के सैनिकों के एक दल अकाल सेना से निकला है. बाद में, अकाल सेना सिखों के दसवें गुरु की ‘खालसा फौज’ में बदल गई थी.

18 वीं शताब्दी के मध्यकाल में अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली के बार-बार होने वाले हमलों के दौरान निहंगों ने सिखों की रक्षा करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी. महाराजा रणजीत सिंह की सेना में भी वे प्रमुख स्थानों पर काबिज थे.

जज कहते हैं, ‘निहंगों की उत्पत्ति के बारे में कई सिद्धांत प्रचलित हैं, जिनमें से एक उनके अकाल सेना और बाद में खालसा फौज का हिस्सा होने के बारे में है. लेकिन उदासी संप्रदाय और निर्मलिया समूह, जिनकी उत्पत्ति को स्पष्ट रूप से सिख गुरुओं के साथ जोड़ा जा सकता है, के विपरीत निहंगों की उत्पत्ति का कोई पुख्ता ऐतिहासिक सुबूत उपलब्ध नहीं है.‘

हथियारबंद और निडर

सिख अध्य्यनकर्ता अमृत पाल सिंह ‘अमृत’ लिखते हैं कि निहंग शब्द का प्रयोग गुरु ग्रंथ साहिब के साथ-साथ कई अन्य सिख ग्रंथों में भी किया गया है. हालांकि इनमें इस शब्द का इस्तेमाल कई अलग-अलग अर्थों में किया गया है, अमृत पाल का कहना है कि इसका अनुवाद अक्सर ‘निडर और निरंकुश’ के रूप में किया जाता है.

जज कहते हैं, ‘निहंगों को अच्छी तरह पता होता है कि लड़ना कैसे है.’ वे यह भी कहते हैं निहंग अपने हथियारों और पोशाक के लिए खास तौर पर जाने जाते हैं, और पंजाब में पारंपरिक धार्मिक मेलों के दौरान वे सबसे अधिक मांग में रहने वाले लोग होते हैं.

वे आम तौर पर न केवल आधुनिक आग्नेयास्त्रों, बल्कि पारंपरिक हथियारों से भी सर से पैर तक लैस होते हैं. इनमें कलाई में पहने जाने वाले लोहे के कंगन या जंगी कड़ा और पगड़ी के चारों ओर लगने वाला एक चक्रम या स्टील क्वॉइट भी शामिल होता हैं. वे दो तलवारें या कृपाण, भाले और हाथ में रखे जाने वाले छोटे खंजर भी लेकर चलते हैं. उनके पूर्ण कवच में पीछे की ओर ढाल के रूप में पहनी गई भैंस की खाल और गले में चक्रम और लोहे की जंजीरें भी शामिल होती हैं.

वे लंबे नीले चोगे और चमड़े के जूते पहनते हैं जिन्हें जंगी मोज़े कहा जाता है. उनके पैर के अंगूठे के पास एक तेज धातु लगी होती है जिसे हथियार के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. उनकी वेश-भूषा का सबसे अधिक दिखने वाला भाग उनकी पगड़ी होती है, जिसका आकार उनके लिए गर्व की बात है – कुछ निहंग अपने सिर से कई गुना बड़ी पगड़ी पहनते हैं और इन्हें सिख धर्म के प्रतीक खंडा साहिब के साथ सजाते हैं.


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निहंग जीवन शैली

कहा जाता है कि निहंगों के अपने डेरे और जीवन जीने का एक विशिष्ट तरीका होता है.

जज बताते हैं, ‘उनमें से जो शादी शुदा होते हैं उन्हें डेरों की देखभाल करने का प्रभार दिया जाता है जबकि अन्य निहंग राज्य में चारों ओर घूमते रहते हैं. इन डेरों के पास हथियार, लाइसेंसी आग्नेयास्त्र, घोड़े आदि हैं और आम तौर पर हर कोई सैन्य प्रशिक्षण से प्राप्त होता है.’

उनका कहना है कि इस संप्रदाय के पास साल भर उनके भाग लेने योग्य कार्यक्रमों का एक कैलेंडर होता है, और इसमें माघी से शुरू होकर बैसाखी, राखर पुनिया, दीवाली और जोर मेला तक सभी महत्वपूर्ण धार्मिक मेले शामिल होते हैं.

जज का कहना है, ‘वे भांग या कई अन्य प्रकार के ऐसे नशीले पदार्थों के पारंपरिक उपभोक्ता के रूप में जाने जाते हैं जो खाये या पिए जा सकते हैं, लेकिन वे कभी धूम्रपान नहीं करते हैं.’

जब पटियाला में पुलिस पर हमला करने वाले निहंगों को उनके डेरे से गिरफ्तार किया गया, तो पुलिस को वहां हथियारों के अलावा, बड़ी मात्रा में ‘भुक्की’ या सूखी अफीम भी मिली थी .

जज समझाते हुए बताते हैं, ‘हालांकि निहंग कई छोटे समूहों और डेरों में विभाजित फिर भी वे दो व्यापक ऐतिहासिक विभाजनों – तरना दल और बुड्ढा दल – के प्रति अपनी निष्ठा रखते हैं. पहले वाले दल में युवा और बाद वाले दल में बूढ़े सदस्य शामिल होते है.’ बुड्ढा दल का मुख्यालय तलवंडी साबो में है, जबकि तरना दल का होशियारपुर में है.

किसी भी नियत समय पर निहंगों का एक बड़ा हिस्सा चालयमान ही रहता है

जज का कहना है कि, ‘पहले, वे छावनी नामक अस्थायी डेरों में रहते थे. लेकिन अब राज्य में कई जगहों पर स्थायी डेरे बन गए हैं, जहां वे गतका, घुड़सवारी और हथियार चलाने जैसी मार्शल आर्ट सीखते रहते हैं.’ जज यह भी बताते हैं कि अधिकांश डेरों में गुरुद्वारे भी बने होते हैं.

इन डेरों का खर्च चलाने के लिए वे आस-पास के गांवों से चंदा इकट्ठा करते हैं. बड़े डेरों में आजीविका के लिए उनसे संलग्न कृषि क्षेत्रों में खेती की जाती है. ऐसे डेरे स्कूल, घुड़सवारी केंद्र और मार्शल आर्ट अकादमी भी चलाते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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