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Friday, 22 November, 2024
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2022 के गोवा चुनाव में BJP से टिकट चाहते हैं मनोहर पर्रिकर के बेटे, कहा- पिता की विरासत का हो सम्मान

उत्पल ने कहा कि हालांकि उनके पिता को सभी समुदाय के लोग पसंद करते थे लेकिन भाजपा के पास अपनी मजबूत संगठनात्मक ताकत के कारण नुकसान की भरपाई करने की ताकत है.

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मुंबई: 2019 में पूर्व सीएम और भाजपा नेता मनोहर पर्रिकर की मौत के बाद से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) गोवा में पहला राज्य चुनाव लड़ने की तैयारी में है, इसलिए उनके बेटे उत्पल पर्रिकर ने पूर्व केंद्रीय मंत्री की विरासत पर दावा पेश कर दिया है. उन्होंने पार्टी से आग्रह किया है कि वह पणजी से उन्हें मैदान में उतारें. इस विधानसभा क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री ने करीब 25 साल तक सेवा की.

गुरुवार को फोन पर दिप्रिंट से बात करते हुए मनोहर पर्रिकर के बड़े बेटे उत्पल ने कहा कि वह पणजी निर्वाचन क्षेत्र के आसपास यात्रा कर रहे हैं, भाजपा कार्यकर्ताओं से बात कर रहे हैं, जो उनके पिता के प्रति वफादार रहे थे और दावा किया कि वे सभी चाहते हैं कि वह फरवरी 2022 में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव लड़ें.

‘गोवा की ज्यादातर सीटों पर मौजूदा विधायक ज्यादातर दो कार्यकाल तक रहते हैं, लेकिन मेरे पिता ने इस सीट पर दशकों तक प्रतिनिधित्व किया है. उत्पल ने दिप्रिंट से कहा, इस वजह से पणजी के लोगों को कुछ उम्मीदें हैं.

उन्होंने कहा, ‘जब मैं अपने पिता की विरासत के बारे में बात करता हूं तो इसका सम्मान होना चाहिए. मुझे कोर भाजपा कार्यकर्ताओं का समर्थन हासिल है.’

मार्च 2019 में अग्नाशय के कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद मनोहर पर्रिकर की मौत हो गई थी. गोवा में भाजपा का आधार बढ़ाने का श्रेय उन्हें दिया जाता है. चार बार सीएम रहे मनोहर पर्रिकर ने पणजी को लगभग 25 साल तक भाजपा का गढ़ बनाया था.

गोवा में उनकी अपील इतनी मजबूत थी कि 2017 में जब भाजपा ने क्षेत्रीय संगठनों महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) और गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी) के साथ गठबंधन किया तो पार्टी पर्रिकर को फिर से राज्य में लेकर आई. खास बात यह है कि सीएम के पद पर उनके नाम के लिए सभी पार्टियों की आम सहमति थी.

यहां तक कि जब पर्रिकर गंभीर रूप से बीमार थे और फरवरी 2018 से इलाज के लिए गोवा से आ जा रहे थे तब भी भाजपा ने उन्हें सीएम के रूप में बरकरार रखा ताकि भारत के सबसे छोटे राज्य में बनी अस्थिर तीन दलों की गठबंधन सरकार को परेशान न किया जा सके.

उत्पल ने कहा कि हालांकि उनके पिता को सभी समुदाय के लोग पसंद करते थे लेकिन भाजपा के पास अपनी मजबूत संगठनात्मक ताकत के कारण नुकसान की भरपाई करने की ताकत है.


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‘फडणवीस से मिले, भरोसा है कि पार्टी मेरी उम्मीदवारी पर विचार करेगी’

38 वर्षीय उत्पल 2019 में ही पणजी उपचुनाव का चुनाव लड़ना चाहते थे ताकि उनके पिता के निधन के कारण हुई खाली हुई सीट को भरा जा सके. हालांकि, बीजेपी उस वक्त उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया और इसके बजाय सिद्धार्थ कुन्कलिंकर को मैदान में उतारा.

भाजपा ने गोवा में अपनी सबसे प्रतिष्ठित मानी जाने वाली इस सीट को 25 साल में पहली बार गंवा दिया. बीजेपी को बाबुश के नाम से मशहूर अतानसियो मोनसेरेट के हाथों हार का सामना करना पड़ा. वे उस वक्त कांग्रेस पार्टी में थे. हालांकि, उत्पल ने तब भाजपा की आलोचना करने से इनकार करते हुए कहा था कि पार्टी नतीजों पर ‘आत्ममंथन’ करेगी और अगले चुनाव में जीत सुनिश्चित करेगी.

उत्पल ने दिप्रिंट को बताया, ‘उस समय मैंने उस फैसले का सम्मान किया. इस बार पणजी में भाजपा के सभी कोर मतदाताओं का समर्थन है.’ मैंने पार्टी से अनुरोध किया है कि वे मेरी उम्मीदवारी पर विचार करें और मुझे विश्वास है कि वे इसे सकारात्मक तरीके से लेंगे और उस पर विचार करेंगे.

उन्होंने कहा कि मैंने इस महीने की शुरुआत में भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस की गोवा विजिट के दौरान उनसे भी मुलाकात की थी, क्योंकि वह राज्य में चुनाव तैयारियों के इंचार्ज हैं.

इस बार भी टिकट से वंचित होने पर वह बागी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने पर विचार कर सकते हैं या नहीं, इस पर उत्पल ने कहा, पार्टी की एक प्रक्रिया है, इसके बारे (अगर उन्हें पार्टी टिकट नहीं देती है तो) में मैं बाद में बात करूंगा. मेरा ध्यान भाजपा कार्यकर्ताओं और कोर मतदाताओं से मिलने पर है और मुझे विश्वास है कि पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं को देखेगी.


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भाजपा के लिए आसान नहीं होगा फैसला

गोवा बीजेपी नेतृत्व के लिए यह फैसला आसान नहीं होगा. कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल करने वाले वर्तमान पणजी विधायक मोनसेरेट ने जुलाई 2019 में पार्टी के नौ अन्य विधायकों के साथ-साथ अपनी पत्नी जेनिफर मोनसेरेट को लेकर बीजेपी में शामिल हो गए थे, जिसकी वजह से 40 सदस्यीय सदन में पार्टी की ताकत बढ़कर आराम से 27 के आंकड़े तक पहुंच गई थी.

दलबदल ने भाजपा को कांग्रेस की ताकत कम करने में मदद की. दरअसल, 2017 चुनाव के बाद कांग्रेस 17 सीटों के साथ सदन में अकेली सबसे बड़ी पार्टी थी. लेकिन मोनसेरेट के दलबदल के बाद कांग्रेस की संख्या घटकर 5 रह गई थी. मोनसेरेट के दलबदल के पहले ही दो और विधायकों ने पार्टी बदल ली थी. इसी साल मार्च में भी मॉन्सरेट ने पणजी नगर निगम चुनाव में भाजपा को 30 में से 25 सीटें जीतने में मदद की थी.

उत्पल के पणजी में मनोहर पर्रिकर के प्रतिद्वंद्वियों में शामिल मोनसेरेट के साथ तनावपूर्ण संबंध रहे हैं. पणजी में नगर निगम चुनाव में मोनसरेट और उत्पल के बीच मतभेद खासतौर पर नजर आए. हालांकि गोवा में नागरिक चुनाव दलगत आधार पर नहीं लड़े जाते हैं, लेकिन स्थानीय विधायक उम्मीदवारों के एक पैनल को मैदान में उतारते हैं जिनका वे सार्वजनिक रूप से समर्थन करते हैं.

नगर निकाय चुनाव में जहां भाजपा ने मोनसेरेट के पैनल का समर्थन किया था, जबकि उत्पल और कुनकलिएंकर ने कुछ अन्य उम्मीदवारों का समर्थन किया था.

उत्पल ने दिप्रिंट से कहा, ‘पणजी नागरिक निकाय में पणजी निर्वाचन क्षेत्र और तलेगाओ निर्वाचन क्षेत्र के कुछ हिस्से शामिल हैं. हालांकि, काफी लोगों को मेरा समर्थन लेने में दिलचस्पी थी, लेकिन मैंने कभी भाजपा के पारंपरिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ विद्रोह नहीं किया.

पणजी निर्वाचन क्षेत्र के हिस्से वाली ज्यादातर सीटें पारंपरिक बीजेपी कार्यकर्ताओं ने जीतीं. वर्तमान विधायक को ज्यादातर वे सीटें मिलीं जो तलेगाओ का हिस्सा थीं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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