नई दिल्ली: भारत और चीन लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों में लगातार दूसरे साल सर्दियों में सैनिकों की तैनाती जारी रखने के लिए तैयार नजर आ रहे हैं. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.
रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सबसे अहम बात यह है कि कोर कमांडर-स्तर की अगली वार्ता इसी महीने होने के आसार के बावजूद दोनों पक्षों के हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र- जो सेनाओं के आमने-सामने आने वाली आखिरी ऐसी जगह है जहां विवाद अनसुलझा रह गया है- में आगे बढ़ने की संभावना है.
रक्षा सूत्रों के अनुसार, तैनाती जारी रहना दोनों पक्षों के बीच ‘भरोसे की कमी’ का नतीजा है क्योंकि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के वेस्टर्न सेक्टर में पिछले साल अप्रैल-मई में शुरू हुआ गतिरोध करीब 18 महीने बीतने के बाद भी जारी है.
यद्यपि भारत और चीन दोनों पैंगोंग त्सो के उत्तरी और दक्षिणी तट में एक-दूसरे के आमने-सामने आ जाने वाली जगहों के साथ-साथ गोगरा और गलवान घाटी में भी पीछे हट गए हैं, लेकिन बहु-स्तरीय तैनाती के तौर पर वहां अतिरिक्त सैनिकों को बरकरार रखा गया है.
डेमचोक और देपसांग मैदानों में भी अतिरिक्त सैनिक तैनात हैं. यद्यपि टकराव वाली इन जगहों पर भारतीय और चीनी सैनिक आमने-सामने तो नहीं हैं लेकिन एक-दूसरे की संभावित गतिविधियों पर नजर रखने के लिए यहां मौजूद रहना जरूरी हैं.
रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े एक सूत्र ने कहा, ‘हालांकि लद्दाख में युद्धक तैनाती से हम प्रभावित हो रहे हैं लेकिन हमने पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) को भी अग्रिम तैनाती के लिए विवश कर दिया है, जिससे उनका पैसा खर्च हो रहा है और साथ ही मनोबल पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है.’
लद्दाख में सर्दियां बेहद कठिन होने की बात तो जगजाहिर है, जहां ठंड चरम पर पहुंचने के दौरान तापमान -30 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है.
लद्दाख में न्यूनतम तापमान इस समय ही शून्य डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है, आने वाले हफ्तों में इसमें और गिरावट आने का पूर्वानुमान लगाया गया है. पिछले साल पहली बार ऐसा हुआ था जब बेहद कठोर ठंड के दौरान भी एलएसी के अग्रिम क्षेत्रों में सैनिकों को तैनात रखा गया था.
2020 तक, आमतौर पर चीनी सैनिक गश्त पूरी करने के बाद अपनी बैरक में लौट जाते थे लेकिन उन्हें भी सर्दियों के दौरान अग्रिम मोर्चों पर तैनाती बहाल रखने पर बाध्य होना पड़ा है.
भारतीय सैन्य अधिकारियों का कहना है कि यह एक ऐसा घटनाक्रम है जिस पर शायद चीनियों ने गौर नहीं किया है.
उन्होंने आगे कहा कि जब चीन ने पहली बार एलएसी का उल्लंघन करके अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की थी, तो उसने शायद सोचा भी नहीं होगा कि गतिरोध इतना ज्यादा लंबा खिंच सकता है.
सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे ने पिछले हफ्ते न्यूज एजेंसी एएनआई को एक इंटरव्यू में बताया था कि 13वें दौर की कोर कमांडर स्तर की वार्ता संभवत: अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में हो सकती है. 12वां राउंड 31 जुलाई को हुआ था.
उन्होंने ‘पूर्वी लद्दाख और पूर्वी कमान तक पर्याप्त संख्या में’ चीनी सैनिकों की तैनाती बढ़ने को लेकर चिंता भी जताई थी.
उन्होंने कहा, ‘हम भी उसके अनुरूप ही बुनियादी ढांचे के विकास और सैनिकों की तैनाती बढ़ाने में जुटे हैं. हम किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.’
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सर्दियों ने चीन की चिंता बढ़ाई
पिछले साल गतिरोध शुरू होने के बाद से चीनियों की तरफ से सर्दियों के दौरान अपने सैनिकों के रहने के लिए पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास इस मौसम के अनुकूल दर्जनों बड़े ढांचे स्थापित करना या इनका निर्माण किया जाना जारी है.
सूत्रों ने कहा कि यद्यपि टकराव वाले कुछ बिंदुओं से सैन्य वापसी हुई लेकिन सैनिक अपनी पारंपरिक तैनाती वाली स्थिति में लौटने के बजाये एलएसी के करीब ही बने हुए हैं.
चीन की तरफ से अन्य निर्माण कार्य- नए हेलीपैड बनाना, हवाई पट्टियों को चौड़ा करना, नए बैरक, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों और रडार के लिए नए ठिकाने बनाना भी जारी हैं.
चीन ने यहां जारी गतिरोध के बीच ही एलएसी के आसपास बड़े पैमाने पर निर्माण किया है, जिसमें पूर्वी लद्दाख में अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए घरों के अलावा नए पुल और सड़कें बनाना भी शामिल है.
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भारत की जवाबी-तैनाती
इधर भारत ने भी अपनी तरफ से पूर्वी लद्दाख में शीतकालीन तैनाती के लिए अपने बंदोबस्त पूरे कर लिए हैं. सूत्रों ने बताया कि पिछले कुछ महीनों के दौरान और अधिक बुनियादी ढांचे का विकास किया गया है.
सूत्रों ने बताया कि क्षेत्र में न केवल अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती बहाल रखी जा रही, बल्कि भारत ने 155 मिमी वज्र के9 स्वचालित हॉवित्जर की एक पूरी रेजिमेंट तैनात कर दी है, जिसकी मारक क्षमता कई किलोमीटर दूर तक होती है और अमेरिका से 155 एमएम अल्ट्रा-लाइट वेट हॉवित्जर की एक रेजिमेंट की खरीद की गई है.
यद्यपि वज्र का ऑर्डर रेगिस्तान और मैदानी इलाकों के लिए दिया गया था लेकिन उनमें से तीन को टेस्टिंग के लिए इस साल की शुरुआत में लद्दाख लाया गया था.
सेना परीक्षणों से संतुष्ट रही हैं और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए कम से कम दो और रेजिमेंट का ऑर्डर देने पर विचार किया जा रहा है.
सूत्रों ने कहा कि दो अतिरिक्त ब्रिगेड, जिनमें से एक रि-बैलेंस्ड स्ट्राइक कोर से है, बारी-बारी से अपनी जिम्मेदारी संभालती रहती हैं. सर्दियों के लिए अन्य सैनिकों को यहां लगाया गया जबकि यहां पहले से तैनात कुछ सैनिकों को वापस बुलाया गया है, ताकि सर्दियों के दौरान जरूरत पड़ने पर पर्याप्त संख्या में सैन्य बलों की तैनाती सुनिश्चित की जा सके.
सूत्रों ने कहा कि 2020 में तो सीधे तौर पर चीन की आक्रामकता का जवाब देने के लिए तेजी से सैनिकों की संख्या बढ़ाई गई थी लेकिन इस बार दीर्घकालिक तैनाती की जरूरत को ध्यान में रखते हुए सभी आवश्यक कदम उठाए गए हैं.
एक सूत्र ने बताया, ‘गर्मी का समय भी ऑपरेशनल पीरियड होता है जब नए सैनिक ट्रेनिंग और यहां के मौसम के अनुकूल ढलने के उद्देश्य से बाहर से यहां आते हैं. ये सैनिक दो महीने या उससे अधिक समय तक अपना प्रशिक्षण पूरा करते हैं और फिर उनकी जगह नए सैनिकों को ले लिया जाता है. लेह स्थित 14 कोर के तहत मौजूदा सैनिक बने रहेंगे. ऐसा रोटेशन अक्टूबर अंत तक चलता है. लेकिन तनाव बरकरार रहने को देखते हुए इस बार सर्दियों के लिए भी अतिरिक्त तैनाती की जाएगी.’
रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने यह भी बताया कि सेना ने पिछले एक साल में आपात खरीद के तहत हासिल किए गए नए निगरानी उपकरणों की भी तैनाती की है. साथ ही जोड़ा कि यह मानव और प्रौद्योगिकी का मिश्रण है जिसका उपयोग सीमावर्ती क्षेत्रों और चीनी सैनिकों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किया जा रहा है.
2021 की गर्मियों से पहले सेना ने तैनाती के चरण में बदलाव किया और यही नहीं चीनी की तरफ से खतरे का मुकाबला करने के लिए ऑर्डर ऑफ बैटल (ओआरबीएटी) को नए सिरे से निर्धारित किया.
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