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Friday, 22 November, 2024
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‘नाम का CM है, काम तो कोनी करे’: हरियाणा में खट्टर के खिलाफ क्यों बढ़ रही है नाराज़गी

ये सिर्फ मोदी सरकार के तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन ही नहीं है, जिसने पार्टी का खेल बिगाड़ दिया है. जमीनी स्तर पर लोग खट्टर को शासन में अप्रभावी मानते हैं.

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करनाल: 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबको चौंकाते हुए, अपने पुराने दोस्त मनोहर लाल खट्टर को हरियाणा सरकार की अगुवाई के लिए चुना, तो उसे एक मास्टरस्ट्रोक कहा गया. एक ऐसे राज्य में जिसकी 28 प्रतिशत आबादी जाट है- जो काफी हद तक कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय लोकदल से जुड़े हैं- पंजाबी खत्री समाज से आने वाले पहली बार के एक विधायक की नियुक्ति के प्रयोग से, अपेक्षा की जा रही थी कि ग़ैर-जाट वोट, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पक्ष में लामबंद हो जाएंगे.

हालांकि 2019 के असेम्बली चुनावों में पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर सकी, लेकिन वो खट्टर के साथ बनी रही, जिनकी मतदाताओं के बीच एक साफ-सुथरी छवि थी.

लेकिन, मोदी के प्रयोग के सात साल के बाद, अब हरियाणा में बीजेपी के नीचे से ज़मीन फिसलती दिखाई दे रही है.

लेकिन ये सिर्फ मोदी सरकार के तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन ही नहीं है, जिसने पार्टी का खेल बिगाड़ दिया है. स्थानीय अख़बारों में निजी कंपनियों की ओर से नौकरियों के विज्ञापन भरे हुए हैं, लेकिन प्रश्न पत्र लीक, गांवों तथा शहरों में जलभराव, और आंदोलनकारी किसानों द्वारा राजनीतिक गतिविधियों के बहिष्कार के मुद्दे ही, पहले पन्ने पर छाए रहते हैं.

ज़मीनी हालात का आंकलन करने के लिए, दिप्रिंट ने हरियाणा के रिवाड़ी, झज्झर, रोहतक, जींद, और करनाल ज़िलों का दौरा किया. और जैसा कि सामने आया, ऐसा लगता है कि सीएम खट्टर के सामने विश्वसनीयता का संकट खड़ा हो गया है. सिर्फ जाट क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि सभी इलाक़ों और जाति वर्गों में, उनके खिलाफ नाराज़गी बढ़ती जा रही है.

लेकिन बीजेपी बिल्कुल शांत नज़र आती है, और नेताओं का कहना है कि पार्टी का, खट्टर के शासन और उनकी पिछली उपलब्धियों पर पूरा भरोसा है.

‘अधिकारियों पर कोई बस नहीं’

जींद के मुआना गांव के 65 वर्षीय सियाराम शर्मा, शिकायत करते हैं, कि खट्टर का सरकारी अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं है. शर्मा कहते हैं, ‘कोई एक्शन लेता सुना है कि ये अधिकारी सस्पेंड कर दिया? खट्टर से म्हारी भैंस भी ना डरती. वो खट्टर नहीं खट्टा से’.

शर्मा के पास खड़ा एक युवक, जो अपनी पहचान नहीं बताना चाहता, आगे कहता है: ‘आप ज़िले के किसी भी विभाग में जाईए, ऐसा लगता है कि हमारे यहां कोई सरकार ही नहीं है’.

जींद के घोगीरन गांव का रामनिवास बूरा उन ‘पुराने दिनों’ को याद करता है, जब बंसी लाल और देवी लाल सीएम की कुर्सी पर थे और अचानक गांवों के दौरों पर पहुंच जाया करते थे.

भूरा कहता है,‘खड़े खड़े मौके पर ही नौकरी दे दिया करते थे. फिर चाहे कोई अनपढ़ ही क्यों न हो, वो भी रोडवेज़ में कंडक्टर की नौकरी पा जाया करता था.

उसने एक चुटकुला भी सुनाया, जो चुनावी मौसम में पूरे हरियाणा में सुनने को मिलता है. ‘एक बार बंसी लाल एक गांव में गए और एक युवक उनके पास आया. सीएम ने उससे पूछा कितना पढ़े हो? युवक ने जबाव दिया कि वो निरक्षर है, लेकिन रोडवेज़ में नौकरी चाहता है. सीएम ने जवाब दिया ‘फिर तो रोडवेज़ नहीं किसी डिपार्टमेंट का डायरेक्टर बनना पड़ेगा’ और उसे नौकरी दे दी.

ये पूछे जाने पर कि क्या पहले के सीएम ऐसे ही नौकरियां दे देते थे, जैसे भूरा ने बताया, ज़िला अधिकारियों ने माना कि वो दे देते थे, लेकिन फौरन ही ये भी कहा कि ऐसे मामलों में ‘नियमों को दरकिनार’ रखा जाता था.

ज़िले के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ऐसी तरकीबों से मतदाता ख़ुश हो जाते थे, लेकिन निष्पक्ष चयन प्रक्रिया बाधित होती थी’.


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प्रशासन की समस्याएं, भ्रष्टाचार

जींद, करनाल, और रोहतक के ग्रामीण बिजली कनेक्शन मिलने में देरी को लेकर भी बहुत नाराज़ हैं, और भारी संख्या में एकत्र होकर शिकायत करते हैं. खट्टर के भ्रष्टाचार-विरोधी रुख़ के बावजूद, कुछ लोगों को लगता है कि वो इसपर लगाम लगाने में अक्षम रहे हैं.

रोहतक के हसनगढ़ गांव के 69 वर्षीय रघुवीर सिंह ने आरोप लगाया, ‘सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि भूपिंदर सिंह हुड्डा के ज़माने में, जो कमीशन 2,000 रुपए हुआ करता था, वो आज बढ़कर 10,000 रुपए हो गया है. मैंने कृषि बिजली कनेक्शन के लिए 5 लाख रुपए दिए हैं, लेकिन दफ्तरों के चक्कर काटते-काटते मेरे चप्पल घिस गए हैं’.

बलबीर सिंह, जो पिछले साल तक रोहतक के भैंसरू गांव के सरपंच हुआ करते थे, और अब कांग्रेस के साथ जुड़े हैं आगे कहते हैं: ‘अब पूरे गांव को (काम के लिए) ज़िले की ओर भागना पड़ता है. सरकारी दफ्तरों में छोटे से काम की रिश्वत भी बढ़ गई है. पेंशन में अब तीन महीने की देरी चल रही है. पैसा जारी नहीं किया जाता. बहुत अराजकता का माहौल है’.

लेकिन, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने, जो अज्ञात रहना चाहते हैं, समझाया कि बिजली कनेक्शन में देरी एक योजना के तहत है.

इस अधिकारी का कहना है, ‘दरअसल सूबे में पानी के बढ़ते संकट को देखते हुए, खट्टर सरकार नहीं चाहती कि किसान धान की खेती करें. ‘मेरा पानी, मेरी विरासत’ स्कीम के तहत, सरकार किसानों को धान से दूसरी फसलों पर जाने के लिए, 7,000 हज़ार रुपए देती है. उसी को बिजली कनेक्शन्स में देरी का एक कारण माना जा रहा है’.

पंचायत चुनावों में देरी

खट्टर की हरियाणा सरकार को पंचायत चुनाव टालते हुए, अब एक साल से अधिक हो गया है. इस साल सितंबर में, सरकार ने पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में एक हलफनामा दिख़िल किया था, कि वो इन चुनावों को चरणबद्ध तरीक़े से कराना चाहती है.

लेकिन ज़मीनी स्तर पर, सरकार का ये रुख़ उसके खिलाफ जा रहा है.

भैंसरू कलां के बलबीर सिंह कहते हैं, ‘लोगों में रोष है कि किसानों के आंदोलन की वजह से, पंचायत चुनावों को टाला जा रहा है. अब लोग कहते हैं कि खट्टर सिर्फ नाम के सीएम हैं’.

‘ये मामला जाति का नहीं, बल्कि खट्टर और उनके डिप्टी का है’

जब खट्टर सीएम बने तो बड़ा सवाल ये था, कि इस ज़िम्मेदार पद पर एक ग़ैर-जाट कैसा प्रदर्शन करेगा. लेकिन अब, खुद उनकी जाति के लोग ही उनके खिलाफ हो गए हैं, और जाटों का कहना है कि उन्हें दूसरे ग़ैर-जाट सीएम को स्वीकारने में कोई परेशानी नहीं होगी; उनकी समस्या ख़ुद खट्टर और उनके डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला से है, जो एक जाट हैं.

रोहतक के हसनगढ़ गांव में प्रेम सिंह सैनी, जो बीजेपी समर्थक होने का दावा करते हैं, कहते हैं कि वो खट्टर की सियासत के खिलाफ हैं. सैनी एक दुकान चलाते हैं जो गांव के किसानों को कृषि उपकरण सप्लाई करती है.

वो ग़ुस्से में कहते हैं, ‘कांग्रेस का सिस्टम वापस आ गया है. खट्टर का दावा था कि नौकरियों में पारदर्शिता होगी, लेकिन हमारे सैनी लड़के नौकियों के लिए क्यों नहीं चुने जा रहे? मैं आपको पड़ोस के एक गांव की मिसाल दे सकता हूं, जहां से केवल जाटों का चयन किया गया’.

झज्जर के रोहड़ टोल प्लाज़ा पर एक आंदोलनकारी किसान 52 वर्षीय वजीर सिंह, खट्टर और दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व का मज़ाक़ उड़ाते हैं.

सदन की संख्या की ओर इशारा करते हुए वो कहते हैं, ‘साफ ज़ाहिर है कि दुष्यंत की सहमति लिए बिना, खट्टर कोई फैसले नहीं ले सकते. और इस बार हम दुष्यंत को ऐसे ही निकल जाने नहीं देंगे’.

गोगीरन गांव के राजेंदर सिंह बूरा, जो एक रिटायर्ड फौजी हैं और अब खेती करते हैं, यही भाव व्यक्त करते हैं. वो कहते हैं, ‘हमने अभूतपूर्व ढंग से दुष्यंत को वोट दिया था, लेकिन अब वो खट्टर की गोदी में बैठ गए हैं. खट्टर ने कहा था कि कांग्रेस की व्यवस्था को बाहर फेंक दिया जाएगा, लेकिन पिछले एक साल में वो पुरानी और भ्रष्ट व्यवस्था वापस आ गई है’.

खट्टर की कार्यशैली की अपेक्षा लोग राज्य के गृह मंत्री अनिल विज के जनता दरबार, और ‘तत्काल न्याय’ की अवधारणाओं से ज़्यादा प्रभावित नज़र आते हैं.

घोगीरन गांव के रामनिवास बूरा कहते हैं: ‘अनिल विज तौला (जल्दी से)  फैसला कर देता है’

वजीर सिंह आगे कहते हैं: ‘वो कहते हैं कि जाटों को एक पंजाबी सीएम से दिक़्क़त है. हम कहते हैं कि अनिल विज को सीएम बना दीजिए, वो भी एक पंजाबी हैं. लेकिन खट्टर और दुष्यंत के पास हरियाणा के किसानों के बारे में सोचने के लिए साधन ही नहीं हैं’.

BJP को चिंता नहीं

जनता की ओर से उठाए गए इन सभी मुद्दों के जवाब में, पार्टी प्रवक्ता और खट्टर के पूर्व ओएसडी जवाहर यादव का कहना है, कि सूबे में सीएम का चेहरा बदलने की कोई ज़रूरत नहीं है.

यादव कहते हैं, ‘वो अपना कार्यकाल पूरा करेंगे. पिछले सभी सीएम जातियों के नेता थे, लेकिन खट्टर सबके नेता हैं. खट्टर अलोकप्रिय नहीं हैं. पूरे राज्य में नौकरी भर्तियों में पारदर्शिता के लिए, उनकी सराहना की जा रही है. हाल ही के दिनों में पेपर लीक का केवल एक मामला सामने आया है, और उसकी जांच की जा रही है’.

लेकिन एक दूसरे बीजेपी नेता, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते, कहते हैं, ‘हरियाणा बीजेपी के पास कोई दूसरा चेहरा नहीं है, इसलिए मुख्यमंत्री पद में कोई बदलाव नहीं होगा’.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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