नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) में अंग्रेजी साहित्य का पाठ्यक्रम अगस्त में उस समय सुर्खियों में रहा जब संस्थान की ओवरसाइट कमेटी ने दो दलित लेखिकाओं बामा फॉस्टिना सुसाईराज और सुकीर्थरानी और एक एक्टिविस्ट लेखिका महाश्वेता देवी की कहानियों को तीसरे वर्ष के पाठ्यक्रम से हटा दिया.
डीयू के सूत्रों के मुताबिक, समिति ने वीभत्स, यौन सामग्री और भारतीय सेना की खराब छवि पेश किए जाने के कारण यह सामग्री पाठ्यक्रम से हटाने का तर्क दिया था.
दक्षिणपंथी शिक्षक संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (एनडीटीएफ) ने समिति के फैसले का समर्थन किया, साथ ही अंग्रेजी साहित्य पाठ्यक्रम की पूरी समीक्षा के लिए भी कहा ताकि ‘इसी तरह के किसी भी अपमानजनक’ संदर्भ को हटाया जा सके.
उसी समय यूनिवर्सिटी के 130 अंग्रेजी शिक्षकों ने ‘मनमाने तरीके से’ संशोधन किए जाने पर विरोध जताया और इस पर चर्चा के लिए एक आम सभा की बैठक बुलाने को कहा.
हालांकि, यह पहली बार नहीं था जब ओवरसाइट कमेटी के किसी फैसले पर विवाद उत्पन्न हुआ. 2019 में एनडीटीएफ ने कमेटी से ‘2002 के गुजरात दंगों पर एक कहानी के अलावा भारतीय जाति व्यवस्था पर एक पेपर और समलैंगिकता पर एक पेपर में हिंदू धर्मग्रंथ के उल्लेख’ को हटाने के लिए कहा था.
इस मांग को लेकर अच्छा-खासा विवाद खड़ा हो गया था.
लेकिन तमाम विवादों और हो-हल्ले के बीच दिल्ली यूनिवर्सिटी ने पिछले एक दशक में अंग्रेजी साहित्य के शिक्षण पैटर्न और पाठ्यक्रम में कई बदलाव देखे हैं.
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पाठ्यक्रम में बदलाव कब-कब हुए
अंग्रेजी साहित्य पाठ्यक्रम 2011 में संशोधित किया गया था जब डीयू में सेमेस्टर प्रणाली शुरू हुई थी. कोर्स के तहत पहले पढ़ाए जाने वाले नौ पेपर को छह सेमेस्टर में पढ़ाए जाने वाले 19 पेपर में विभाजित किया गया था.
2015 में अंग्रेजी साहित्य पाठ्यक्रम की फिर से समीक्षा की गई जब यूनिवर्सिटी में क्रेडिट-बेस्ट मार्किंग सिस्टम लागू किया गया. अब पहले की तरह वार्षिक परीक्षा के बजाये हर छह महीने में एक सेमेस्टर पूरा होने के बाद परीक्षा आयोजित की जानी थी.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की तरफ से 2015 में च्वाइस-बेस्ड क्रेडिट सिस्टम शुरू किया गया था. यह बदलाव छात्रों और शिक्षक के विरोध के बीच हुआ, जो अंततः शांत हो गया था.
अंग्रेजी विभाग ने 2017 और 2019 के बीच फिर पाठ्यक्रम की समीक्षा की. प्रोफेसरों का दावा है कि पाठ्यक्रम फिर तैयार करने में करीब 1,000 घंटे की मशक्कत वर्ल्ड क्लासिक्स को इसमें शामिल करके इसे अधिक समावेशी बनाने के लिए की गई.
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सिलेबस में क्या बदला
दिप्रिंट ने यहां इस विषय के पाठ्यक्रम में 2001 से 2019 के बीच हुए बदलावों की तुलना की है, जब इसे आखिरी बार संशोधित किया गया था.
डीयू में अंग्रेजी साहित्य का स्नातक स्तर का पाठ्यक्रम पिछले एक दशक में पूरी तरह बदल चुका है और अधिकारियों का कहना है कि पाठ्यक्रम को और अधिक ‘समावेशी’ बनाने के लिए ही ये बदलाव किए गए हैं.
अंग्रेजी ऑनर्स के पाठ्यक्रम में बदलाव मुख्य रूप से 2015 की समीक्षा के बाद किए गए जब भारतीय शास्त्रीय साहित्य, अमेरिकी साहित्य और बाइबिल और महाभारत के अध्यायों जैसे नए पेपर इसमें जोड़े गए.
पाठ्यक्रम में अब 16 कोर पेपर और चार इलेक्टिव पेपर हैं. कोर पेपर में लिटररी स्टडीज का परिचय, मध्ययुगीन काल से लेकर 20वीं शताब्दी तक ब्रिटिश साहित्य पर पेपर और आधुनिक यूरोपीय नाटक पर एक पेपर शामिल है. कुछ बदलावों को छोड़कर यूरोपीय साहित्य पर पेपर पहले जैसा ही बनाए रखा गया है. पहले वैकल्पिक में शुमार महिलाओं के लेखन और उत्तर-औपनिवेशिक साहित्य संबंधी पेपर अब कोर पेपर का हिस्सा है.
पाठ्यक्रम में 2017-19 के बीच बदलावों में जो कुछ नया जोड़ा गया, उसें अंग्रेजी में भारतीय लेखन, इंट्रोगेटिंग क्वेरनेस, बच्चों और युवा वयस्कों के लिए साहित्य, प्रवासी साहित्य, आधुनिक भारतीय लेखन का अंग्रेजी अनुवाद शामिल है.
इसके अलावा वैकल्पिक विषयों में अफ्रीकी साहित्य, लैटिन अमेरिकी साहित्य, साहित्य और सिनेमा, साहित्य और विकलांगता, विभाजन साहित्य और पूर्व-औपनिवेशिक भारतीय साहित्य को शामिल किया गया है.
यूरोपीय क्लासिकल लिचरेचर के तौर पर बाइबिल के कुछ हिस्सों- ‘द बुक ऑफ जॉब’ और ‘द गॉस्पेल इन द मैथ्यू’ का चयनित हिस्सा- को इस पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है.
इसके साथ ही व्यास की महाभारत के अध्याय इंडियन क्लासिकल लिचरेचर के तौर पर इसमें शामिल किए गए हैं.
इसके अलावा, एक संस्कृत नाटक सूद्रक रचित मृच्छकटिकम और तमिल संगम पोएट्री के कई पाठ इसमें जोड़े गए हैं. वहीं, भारतीय धर्मग्रंथों पर और एक महिला का नजरिया सामने रखने वाली चंद्रावती की रामायण को भी इसका हिस्सा बनाया गया है.
लगभग 30 वर्षों से रामजस कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाने वाले प्रोफेसर देबराज मुखर्जी ने कहा कि साहित्य पर मौजूदा पाठ्यक्रम समावेशी है और यह अंग्रेजी विभाग के शोध और कड़ी मेहनत का नतीजा है.
उन्होंने कहा, ‘हमने ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज का साहित्य कहे जाने वाली पाठ्य सामग्री को इस तरह विस्तारित किया है कि… जिसे समावेशी विश्व साहित्य कहा जा सकता है. इसमें अब अफ्रीकी, अमेरिकी और समकालीन भारतीय और अंतरराष्ट्रीय साहित्य के पाठ शामिल हैं.’
दलित लेखकों और हाशिए पर रहने वाले अन्य समुदायों के लोगों का लेखन इसमें बढ़ाए जाने के साथ अंग्रेजी साहित्य पाठ्यक्रम का रंग प्रकृति में अधिक राजनीतिक हो गया है. हालांकि, मार्क्सवाद, नारीवाद, उत्तर-संरचनावाद, विघटन, उत्तर आधुनिकतावाद पर पूर्व में पढ़ाए जाने वाले पाठ इंडीविजुअल पेपर के तौर पर नदारत हो गए हैं और ऐसे पाठ के तौर पर शामिल हैं जिनमें ये अंतर्निहित विषय के रूप में शामिल हैं.
पाठ्यक्रम के ‘समावेशी स्वरूप’ पर टिप्पणी करते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी विभाग के प्रमुख डॉ. राज कुमार ने कहा, ‘जब हम अंग्रेजी साहित्य की बात करते हैं, तो हम अक्सर ब्रिटिश साहित्य के बारे में बात करते हैं, लेकिन इन सालों में हमने देखा है कि दुनियाभर के संस्थान इसमें विविध साहित्य शामिल कर रहे हैं. पहले दलित साहित्य, डिसएबिलिटी स्टडीज, या क्वीर पर पेपर जैसे टॉपिक नहीं थे, हम इन्हें अपने साहित्य पाठ्यक्रम का हिस्सा बनने का मौका देना चाहते थे. हमने कुछ ब्रिटिश साहित्य हटाया है लेकिन ऐसे पाठों को पूरी तरह खारिज नहीं किया है.’
उन्होंने कहा, ‘ऐसे पाठ शामिल किए जाने से हमें न केवल नई आवाजों को सुनने बल्कि उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक पूंजी को जानने का भी मौका मिल रहा है.’
धार्मिक ग्रंथों को साहित्य पाठ्यक्रम में जगह दिए जाने पर राज कुमार ने कहा, ‘धर्म हमेशा से साहित्य का हिस्सा रहा है. यहां सवाल यह है कि क्या धर्म को साहित्यिक प्रतिनिधित्व के एक हिस्से के तौर पर पढ़ाया जा सकता है. मैं इसे केवल धार्मिक ग्रंथों के रूप में नहीं बल्कि साहित्यिक अभिव्यक्ति के एक हिस्से के तौर पर देखता हूं क्योंकि हम धर्म को अपने जीवन से अलग नहीं कर सकते.’
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भारतीय लेखकों को जगह देने के लिए क्लासिक साहित्य हटाया
इन भारतीयों और ‘हाशिये’ पर रहने वाले अन्य अन्य लेखकों को जगह देने के लिए अंग्रेजी क्लासिक साहित्य से जुड़े कई पाठों को हटा दिया गया है. पाठ्यक्रम में पहले विलियम शेक्सपियर के लेखन थे, जिनमें ओथेलो, एज यू लाइक इट, एंटनी एंड क्लियोपेट्रा और उनके कुछ सॉनेट शामिल थे. उनका लेखन अब केवल मैकबेथ और विदाउट मच एडो तक सीमित रह गया है. उनके कुछ सॉनेट अभी पाठ्यक्रम का हिस्सा बने हुए हैं.
डीयू के एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘नए पेपर शामिल करने के लिए कुछ अर्थपूर्ण पेपर हटा दिए गए हैं. यद्यपि नया पाठ्यक्रम समावेशी है, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि भारत-केंद्रित और ज्यादा पाठों को बनाए रखा जाना चाहिए था. अंग्रेजी साहित्य कहलाने के लिए कुछ ब्रिटिश अंग्रेजी पाठों को बनाए रखा गया है लेकिन कुछ बेहद महत्वपूर्ण भारतीय लेखन छोड़ दिया गया है.’
शार्लोट ब्रोंट, होनोर डी. बाल्जक, एमिल जोला, मार्गरेट मिशेल और गायत्री स्पिवक कई लेखक ऐसे हैं जिनका लेखन पाठ्यक्रम से बाहर हो गया है.
इसमें जो ज्यादा दिलचस्प चीजें जोड़ी गई हैं उनमें नैरेटिव कोर्स में फ्रैंक मिलर की बैटमैन: द डार्क नाइट रिटर्न्स इन द ग्राफिक, भारतीय लेखन पर पेपर में सलमान रुश्दी की द प्रोफेट्स हेयर और इंट्रोगेटिंग क्वेरनेस पर पेपर में सैफो के हाइमन टू एफ्रोडाइट शामिल हैं.
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