नई दिल्ली: जाति-आधारित जनगणना कराने में ‘अनिच्छा’ के कारण विपक्ष दलों द्वारा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को घेरे जाने के बाद इसकी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) इकाई के प्रमुख के. लक्ष्मण ने अब यह राज्य सरकारों पर जिम्मेदारी डाल दी है.
दिप्रिंट से बात करते हुए, बीजेपी ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि सभी राज्य अपनी-अपनी जाति आधारित जनगणना करने के लिए स्वतंत्र हैं और शुरुआत में उस डेटा का उपयोग कर सकते हैं.
लक्ष्मण ने कहा, ‘राज्यों को अपना सर्वेक्षण करने से कौन रोक रहा है? वे एक सर्वेक्षण कर सकते हैं और अपनी नीतियों को लागू करने में सहायता हेतु इसके डेटा का उपयोग कर सकते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘जहां तक केंद्र सरकार का सवाल है, राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की कवायद करने के लिए गहन शोध और आम सहमति की आवश्यकता है. राज्यों द्वारा आंकड़े उपलब्ध कराए जाने के बाद हम चीजों को वहां से आगे बढ़ा सकते हैं.’
जनगणना 2021 के माध्यम से जाति-आधारित जनगणना की किसी भी संभावना को खारिज करते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि जाति पर विवरण एकत्र करने के लिए जनसंख्या जनगणना आदर्श साधन नहीं है.
21 सितंबर को अदालत के समक्ष दायर एक हलफनामे में, केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने जनगणना में पिछड़े वर्ग के नागरिकों (बॅक्वर्ड क्लास ऑफ सिटिज़न्स -बीसीसी) पर जानकारी एकत्र करने को असंभव बताया.
समाजवादी पार्टी जैसे विपक्षी दलों के अलावा, नीतीश कुमार और अपना दल की अनुप्रिया पटेल सहित भाजपा के सहयोगी दलों ने भी जातीय जनगणना की मांग की है. कुमार ने जाति-आधारित जनगणना को एक ‘वाजिब मांग’ भी बताया और कहा कि वह इस के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाएंगे.
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विपक्ष ढोंग कर रहा है: लक्ष्मण
हालांकि, भाजपा ओबीसी मोर्चा के प्रमुख के. लक्ष्मण का कहना है कि वे विपक्षी दल जो इसे एक मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, केवल अपने पाखंड को ही उजागर कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘कर्नाटक सरकार ने जाति के आधार पर एक सर्वेक्षण किया था, लेकिन जब डेटा सार्वजनिक करने की बात आई तो (कांग्रेस के मुख्यमंत्री) सिद्धारमैया ने अपने पैर पीछे खींच लिए.’
लक्ष्मण ने आगे कहा, ‘जहां तक उन विपक्षी दलों का सवाल है जो इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, यह सिर्फ उनके पाखंड की ओर इशारा करता है. उन्हें यह सब कहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है क्योंकि वे एससी, एसटी और ओबीसी के पैरोकार होने का दावा तो करते हैं, लेकिन वास्तव में उन्होंने उनके लिए कुछ किया नहीं है.’
वे कहते है, ‘आखिर कांग्रेस पार्टी इतने सालों से कर क्या रही थी? उन्होंने पहले इसे क्यों नहीं किया? यहां तक कि 2011 में भी उन्होंने जो कुछ किया वह गलतियों से भरा है. इसके डेटा पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. यूपीए के तहत, निजी एजेंसियों, गैर सरकारी संगठनों सहित तमाम संस्थाओ को जनगणना करने के लिए तैनात किया गया था और इस कवायद पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए थे. मगर आखिरकार नतीजा क्या निकला? हमारे पास एक ऐसा डेटा है जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि यह गलतियों से भरा है.’
उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ ही विपक्ष ने पहले से ही जाति आधारित जनगणना को एक प्रमुख मुद्दा बना दिया है.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव, जो लगातार जाति-आधारित जनगणना और 2011 के आंकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं, ने योगी आदित्यनाथ सरकार पर जाति-आधारित जनगणना न करवा के ओबीसी समुदाय को उनके हक से वंचित करने का आरोप लगाया है.
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