केरल: केरल के पाला शहर स्थित सीरो-मालाबार चर्च के बिशप जोसेफ कल्लारंगट ने 10 सितंबर को ईसाई महिलाओं को ‘नारकोटिक्स जिहाद’ के बारे में आगाह किया, जिसके बारे में उनका कहना है कि ‘जिहादी’ महिलाओं को नशीले पदार्थों के जाल में फंसाने की कोशिश करने में लगे हैं.
उनकी टिप्पणी और उस पर पाल डाइसिस की तरफ से स्पष्टीकरण जारी किए जाने के कई हफ्ते बीत चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद इस मामले में विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है.
मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने पिछले बुधवार को एक प्रेस कांफ्रेंस की, जिसमें उन्होंने नशीले पदार्थों और ‘जिहाद’ के बीच किसी भी संबंध को सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, ‘इस तरह के अभियान केरल जैसे राज्य में नफरत फैलाने की कोशिश होंगे जहां सभी समुदायों के लोग साथ मिलजुलकर रहते हैं.’
लेकिन विजयन का यह बयान ऐसे समय आया है जब कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के साथ-साथ आलोचकों की ओर से भी लगातार आरोप लगाया जा रहा था कि लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) सरकार ने इस मामले में ‘सुरक्षित रुख अपना रखा’ है और पहले ही दिन से इस मामले में कोई स्पष्ट और मजबूत कदम नहीं उठा रही है.
माकपा ने शुरू में यह भी तर्क भी दिया था कि बिशप का इरादा ‘शत्रुता फैलाने’ का नहीं था.
यूडीएफ के लिहाज से यह सब सही नहीं माना जा सकता, जो कि अपने दोनों मजबूत वोट-बैंक के बीच उभरती दरार से चिंतित है.
इस बीच, भाजपा ने बिशप के बयान का खुलकर समर्थन किया है. वहीं राज्य में पार्टी नेताओं के नेताओं की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर बिशप के खिलाफ जारी प्रदर्शनों के मद्देनजर उनकी सुरक्षा के उपाय करने का आग्रह किया गया है.
सीपीएम बैकफुट पर, ‘चुप्पी साधने’ के आरोप लग रहे
पाला बिशप की टिप्पणी के खिलाफ अपनी पहली प्रतिक्रिया में 10 सितंबर को मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में नारकोटिक्स की समस्या का किसी ‘धर्म से कोई लेना-देना’ नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि बिशप की टिप्पणी का संदर्भ स्पष्ट नहीं था, लेकिन जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समाज में ‘कोई धार्मिक वैमनस्य’ न फैले.
हालांकि, कुछ दिनों बाद मुख्यमंत्री ने बिशप के खिलाफ किसी भी कार्रवाई की संभावना खारिज करने के साथ कहा कि ये बयान वैमनस्य फैलाने के लिए नहीं था क्योंकि टिप्पणी समुदाय से जुड़े लोगों के बीच उपदेश का हिस्सा थी, न कि सार्वजनिक तौर पर की गई कोई टिप्पणी.
हालांकि, माकपा की मुश्किलें पार्टी की तरफ से तैयार एक पर्चे के कारण और बढ़ गईं, जिसमें पेशेवर कॉलेजों में ‘शिक्षित युवतियों को आतंकवाद की राह अपनाने के लिए प्रेरित करने’ के कथित बढ़ते प्रयासों के खिलाफ आगाह किया गया था. राज्य के तमाम जिलों में स्थानीय स्तर पर पार्टी की बैठकों में कार्यकर्ताओं के बीच बांटे गए पर्चों की यह कहते हुए आलोचना की गई कि यह ‘लव जिहाद’ के नैरेटिव को ही आगे बढ़ाने वाले हैं.
कांग्रेस नेता और केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता वी.डी. सतीशन ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम इस बात पर जोर देते रहे है कि स्थिति को सुधारने के लिए मुख्यमंत्री को एक सर्वदलीय बैठक और सभी धर्मों के प्रमुखों से चर्चा करनी चाहिए और इस मुद्दे को ऐसे ही उबलते नहीं रहने देना चाहिए. लेकिन मुख्यमंत्री ने ऐसा करने से मना कर दिया. वे इस मामले पर सीधे तौर पर कुछ ही कहने-करने से बचते रहे हैं. उनकी प्रारंभिक प्रतिक्रिया बहुत लचर थी.’
माकपा के लिए यह मामला और अधिक जटिल इसलिए भी हो गया क्योंकि कि इसकी नवीनतम सहयोगी केरल कांग्रेस (एम) के नेता जोस के. मणि ने यह कहते हुए पाला बिशप के बयान का समर्थन किया कि बिशप केवल ‘सामाजिक खतरों’ को लेकर आगाह कर रहे थे.
केरल कांग्रेस (एम) ने 2021 के विधानसभा चुनावों से पहले यूडीएफ के साथ गठबंधन तोड़ दिया था और एलडीएफ का हिस्सा बन गया था. इसे एलडीएफ के लिए एक सफलता माना गया क्यों क्योंकि केसीएम राज्य में ईसाइयों की प्रमुख पार्टी है.
बिशप के खिलाफ सख्त रुख अपनाने के लिए लगातार बढ़ते दबाव के बीच मुख्यमंत्री ने बुधवार को न केवल पादरी से यह आग्रह किया कि वह अपने बयान पर स्पष्टीकरण दें, बल्कि यह दर्शाने वाला डाटा भी सामने रखा कि कोई भी धार्मिक समूह मादक द्रव्यों की तस्करी से नहीं जुड़ा है.
माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य एम.ए. बेबी ने स्पष्ट किया कि पार्टी की प्रतिक्रिया में किसी तरह का कोई दोहराव नहीं है.
बेबी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुख्यमंत्री ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि नारकोटिक्स को किसी भी धर्म से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. हम सभी उनके बयान का समर्थन करते हैं.’
यूडीएफ को अपना अल्पसंख्यक वोट बैंक सिमटने की आशंका
ईसाइयों और मुस्लिम समुदाय के बीच दरार बढ़ने की आशंका को देखते हुए यूडीएफ ने बिशप की टिप्पणी के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है.
26 प्रतिशत मुसलमानों और 18 प्रतिशत ईसाइयों के साथ ये दोनों ही समुदाय केरल में कुल मतदाता आधार का एक बड़ा हिस्सा हैं. दोनों अल्पसंख्यक समुदाय परंपरागत तौर पर कांग्रेस-आईयूएमएल गठबंधन के समर्थक रहे हैं.
हालांकि, अप्रैल 2021 के विधानसभा चुनावों में दोनों समुदायों में एलडीएफ की ओर एक बड़ा शिफ्ट नजर आया था. लोकनीति-सीएसडीएस के चुनाव बाद के सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में हर पांच में से दो मुस्लिम और ईसाई मतदाताओं ने एलडीएफ के पक्ष में मतदान किया, जो 2016 के चुनावों में एलडीएफ का समर्थन करने वाले दोनों समुदायों के एक-तिहाई मतदाताओं की तुलना में एक अच्छी-खासी वृद्धि है.
आईयूएमएल नेता और पूर्व समाज कल्याण मंत्री एम.के. मुनीर ने दिप्रिंट से बातचीत के दौरान माना कि ‘अल्पसंख्यक यूडीएफ से दूर जा रहे हैं.’
मुनीर ने कहा, ‘यह माकपा के आक्रामक प्रचार का नतीजा है. ऐसा केवल इसलिए क्योंकि माकपा दिखावे में काफी भरोसा करती है. मुस्लिमों को खुश करने के लिए वे सीएए के खिलाफ कड़े बयान देंगे, लेकिन उनके सशक्तिकरण के लिए जमीनी स्तर पर कुछ ठोस नहीं कर रहे.’
उन्होंने आगे कहा कि पाला बिशप के बयान पर माकपा की ‘लचर प्रतिक्रिया’ से पता चलता है कि पार्टी ‘वास्तव में क्या चाहती है.’ उन्होंने कहा, ‘वे राजनीतिक दिखावे में विश्वास करते हैं, और दोनों समुदायों को वास्तव में उनके लिए कुछ किए बिना ही खुश करना चाहते हैं.’
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‘बिशप पर कड़े तेवर नहीं अपना रहीं पार्टियां’
विशेषज्ञों ने कहा कि एलडीएफ को ‘अल्पसंख्यकों को साधने और ध्रुवीकरण’ के इस ठोस प्रयास से फायदा मिलने के आसार हैं.
राजनीतिक विश्लेषक जी. प्रमोद कुमार ने कहा, ‘ईसाई और मुसलमान दोनों यूडीएफ की रीढ़ हैं. दोनों समुदायों के बीच ध्रुवीकरण से एलडीएफ को ही फायदा मिलेगा क्योंकि इससे वह यूडीएफ के दो मजबूत वोट-बैंकों में सेंध लगा सकेगा.’
कुमार ने आगे कहा कि लेकिन कांग्रेस ने भी बिशप पर निशाना नहीं साधा है, और केवल ‘शांतिदूत की भूमिका निभाने’ की कोशिश कर रही है.
उन्होंने कहा, ‘यूडीएफ खुद को अजीब स्थिति में घिरा पा रहा है क्योंकि वह दोनों समुदायों में से किसी को अपने से दूर नहीं करना चाहता. इसलिए जब वे यह दर्शाना चाहते हैं कि मुसलमानों के साथ खड़े हैं, तो बिशप के खिलाफ कोई आक्रामक रुख न अपनाते हुए केवल शांति बढ़ाने वाली भाषा बोल रहे हैं.’ साथ ही जोड़ा कि ‘भाजपा को छोड़कर सभी दलों ने इस मामले को दबाने की ही कोशिश की है.’
कांग्रेस तो इस मामले पर पार्टी के भीतर ही राजनीतिक अंतर्विरोधों को छिपाने में नाकाम रही है.
पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने रविवार को द इंडियन एक्सप्रेस में अपने एक लेख में पाला बिशप को उनके रुख के लिए काफी खरी-खोटी सुनाई, जो कि केरल कांग्रेस अध्यक्ष के. सुधाकरन के उस रुख के खिलाफ है, जिन्होंने कहा था कि ‘केपीसीसी इस मामले को देख रही है और ‘किसी भी बाहरी को इस स्थिति पर उत्तेजित होने की जरूरत नहीं है.’
‘उन्होंने जो कहा उसमें कुछ गलत नहीं’, भाजपा ने किया बिशप का समर्थन
भाजपा ने पाला बिशप की टिप्पणी पर अपना पूरा समर्थन जताया है, खासकर यह देखते हुए कि यह राज्य में पार्टी की राजनीति की लिहाज से उपयुक्त है.
पार्टी ने अपने 2021 के विधानसभा चुनाव घोषणापत्र में केरल में ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून बनाने का वादा किया था.
केरल भाजपा अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने दिप्रिंट से कहा कि वे बिशप की टिप्पणी का ‘पूरी तौर पर समर्थन’ करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘यह कोई नया ट्रेंड नहीं है. पूरी दुनिया में ड्रग माफिया और आतंकी संगठनों के बीच सांठगांठ स्पष्ट है. ऐसे में सरकार के लिए यह जांच का विषय है और पाला बिशप ने जो कुछ भी कहा है उसकी तह तक जाना जरूरी है. सरकार को उनकी राय नजरअंदाज नहीं करनी चाहिए. उन्होंने जो कहा उसमें कुछ भी गलत नहीं है.’
यह बात अलग है कि एनडीए में भी इस पर एक राय नहीं है. एसएनडीपी, एनडीए की ही एक सहयोगी और एक प्रमुख दल हिंदू एझावा पार्टी, ने ‘लव जिहाद’ नैरेटिव के खिलाफ जाकर टिप्पणी की है कि वो तो ईसाई हैं जो ‘धर्मांतरण कराने में सबसे आगे’ रहते हैं.
पार्टी महासचिव वेल्लापल्ली नतेसन ने यह बात बिशप रॉय कन्ननचिरा की उस टिप्पणी के जवाब में कही, जिसमें उन्होंने हिंदू एझावा पार्टी पर ईसाई महिलाओं को लुभाने का आरोप लगाया गया था. नटेसन ने न केवल एझावा पर टिप्पणी के लिए बिशप पर पलटवार किया, बल्कि ‘लव जिहाद’ वाली टिप्पणियों के लिए पाला बिशप पर भी निशाना साधा. हालांकि बिशप कन्ननचिरा ने बाद में अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांग ली.
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