आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन है. प्रधानमंत्री के रूप में मोदी का उदय भारतीय राजनीति में व्यापक बदलाव का स्पष्ट संकेत था. बात चाहें जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की हो या राम मंदिर निर्माण की या फिर बात करें तीन तलाक कानून के शिकंजे से महिलाओं को निकालने की पीएम मोदी के रूप में इन कामों को तो बखूबी किया. प्रधानमंत्री मोदी की एक विशेषता यह रही कि विषम परिस्थितियों को भी उन्होंने अपने हित और लाभ में बदल लिया. पढिए रशीद किदवई कि किताब भारत के प्रधानमंत्री देश, दशा, दिशा, में नरेंद्र मोदी पर लिखा ये टुकड़ा.
नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री के रूप में उदय भारतीय राजनीति में व्यापक बदलाव का स्पष्ट संकेत था. पहले 2014 और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी एक लोकलुभावन और आक्रामक वक्ता होने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के आदर्श उम्मीदवार साबित हुए. प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने आर.एस.एस. के एजेंडे को जिस तत्परता और निष्ठा से पूरा करने का प्रयास किया, वह अचम्भित करने वाला जरूर था पर अस्वाभाविक नहीं था. चाहे विदेश-नीति हो या कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करना या राम मन्दिर निर्माण के प्रति कटिबद्धता, उन्होंने आर.एस.एस. को कभी निराश नहीं किया.
प्रधानमंत्री मोदी की एक विशेषता यह रही कि विषम परिस्थितियों को भी उन्होंने अपने हित और लाभ में बदल लिया. 2016 की नोटबन्दी इसका उदाहरण है. इसकी घोषणा में काले धन पर अंकुश लगाने और आतंकवाद समाप्त करने जैसे दावे किए गए थे लेकिन हुआ कुछ नहीं. बल्कि उलटे उससे अर्थव्यवस्था चरमरा गई. मोदी की पार्टी भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपनी अभूतपूर्व जीत का श्रेय नोटबन्दी को दिया. मोदी समर्थकों ने भी ऐसा ही माना. धारा 370 समाप्त करने और जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने को लेकर भी बड़े-बड़े दावे किए गए, लेकिन न कश्मीर घाटी के राजनीतिक हालात बदले, न ही एक साल से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद भी वहां हालात सामान्य हो पाए.
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कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी का फैलाव रोकने के लिए मोदी सरकार ने लॉकडाउन लगाया. लॉकडाउन के तहत देशभर में कड़ी पाबन्दियां लगाई गईं. इसने सबकी, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी मजदूरों की परेशानी बढ़ा दी. बड़ी तादाद में बेरोजगार होकर वे अपने गांव लौटने लगे. भूखे-प्यासे मजदूरों को सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पैदल या साइकिल से तय करनी पड़ी. देशभर का श्रमिक वर्ग रोजगार,जीवनयापन के साधन व रुपये-पैसों के अभाव में बेबस दिखा. इस दौरान कई लोगों की मौत की खबरें भी आईं. इस अभूतपूर्व पलायन और उससे उपजी त्रासदियों ने स्पष्ट किया कि सरकार ने लॉकडाउन को लेकर कोई तैयारी नहीं की थी.
कोरोना काल में भारी अव्यवस्थाओं का राज रहा, लेकिन मोदी सरकार कोई ठोस उपाय करती नजर नहीं आई. शासक वर्ग एवं मीडिया मोदी को सुपर हीरो के रूप में प्रस्तुत करते रहे.
कुछ ऐसा ही चीन द्वारा देश के कुछ सीमावर्ती हिस्सों में की गई घुसपैठ के समय भी नजर आया. इस घुसपैठ के प्रारम्भिक दौर में ही 20 भारतीय जवानों की जान चली गई, लेकिन इसके बाद भी आश्चर्यजनक रूप से मोदी के पराक्रम के चर्चे रहे.
ऐसा नहीं है कि मोदी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे. कोरोना काल में वे देश को लगातार सम्बोधित करते रहे. मोदी लोगों से कभी थाली पीटने तो कभी मोमबत्ती जलाने का आग्रह करते रहे. मोदी सरकार ने 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पाँच दिनों तक हर दिन पैकेज की रकम के आवंटन को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की. लेकिन यह सवाल बना रहा कि इन पैकेज का लाभ वास्तव में जरूरतमन्दों तक पहुँचा या नहीं? चीन की घुसपैठ के समय मोदी अचानक लद्दाख चले गए और सेना का मनोबल बढ़ाते दिखे. चीन के एप्प पर प्रतिबन्ध लगाकर उसे एक बड़े कारनामे के रूप में प्रस्तुत किया.
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वस्तुतः देश के राजनीतिक फलक पर नरेन्द्र मोदी का उदय होने के बाद सामाजिक माहौल बहुत तेजी से बदला. गो-वध के मुद्दे पर इतनी तीव्र व हिंसक प्रतिक्रिया होने लगी कि मात्र शंका के चलते अनेक निर्दोष लोगों को जान गँवानी पड़ी. व्याकुल करने वाली बात यह रही कि इन अमानवीय घटनाओं को सामाजिक स्तर पर सत्ताधारी पार्टी और समाज के कई वर्गों का घोषित-अघोषित समर्थन मिला.
मॉब लिंचिंग के मामलों में बढ़ोतरी मोदी के कार्यकाल का एक अहम मसला है. इस खतरे से निपटने के लिए एक विशेष कानून की आवश्यकता लगातार बनी हुई है. इसकी बराबर मांग भी होती रही, लेकिन मोदी सरकार ने इस ओर कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई. इसकी आवश्यकता को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचारों से निपटने के लिए बने विशेष कानून (एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून, 1989) के उदाहरण से समझा जा सकता है. एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून से जातिगत भेदभाव भले ही पूरी तरह खत्म नहीं हो सका है, लेकिन इसने एक सशक्त प्रतिरोधी (deterrent) का काम जरूर किया है.
कुछ लोगों का तर्क है कि नया कानून बनाने से ज्यादा जरूरत इस बात की है कि केन्द्र और राज्य सरकारें मॉब लिंचिंग पर रोक लगाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाएं. कुछ राज्यों में इस तरह के मामले सामने आए हैं जिनमें राजनीतिक वर्ग का एक हिस्सा मॉब लिंचिंग के आरोपियों के प्रति सहानुभूति जताता नजर आया. दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में इस बात की आशंका बनी रही कि मॉब लिंचिंग की समस्या को खत्म करने के लिए अपेक्षित सख्ती नहीं बरती जाएगी या समुचित कानूनी कदम नहीं उठाए जाएँगे.
मोदी सरकार के सत्ता-काल में अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े कई अहम और सार्थक फैसले भी लिए गए. उसने अपने पहले कार्यकाल के तहत 2018 में मुसलमानों को हज-यात्रा के लिए दी जाने वाली सब्सिडी खत्म करने का फैसला किया. सब्सिडी हटाने के निर्णय से केन्द्र को 700 करोड़ रुपये की सालाना बचत हुई.
हक़ीक़त यही है कि हज जैसी धार्मिक यात्रा पर सरकार द्वारा दी जाने वाली यह छूट सीधे तौर पर तो एक भी मुसलमान तीर्थयात्री को नहीं मिलती थी. सब्सिडी की राशि एयरलाइंस कम्पनियों के खातों में चली जाती थी.आरोप तो यह भी था कि घाटे में चल रही ‘एयर इंडिया’ को मजबूत करने के लिए हज सब्सिडी की बन्दूक मुसलमानों के कंधे पर रखकर चलाई जा रही थी. मोदी सरकार ने 45 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को बिना पुरुष अभिभावक के हज करने की इजाजत भी दी.
मोदी सरकार ने दूसरी बार सत्ता में आते ही सबसे पहले मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से निजात दिलाने का कदम उठाया. उसने तीन तलाक पर पाबन्दी के लिए ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2019’ को लोकसभा और राज्यसभा से पारित कराया. इसके बाद 1 अगस्त, 2019 से तीन तलाक देना कानूनी तौर पर जुर्म बन गया.
सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) सहित अनेक इस्लामिक देशों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपना-अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रदान किया है. मोदी के सत्ताकाल में इस्लामिक देशों के साथ भारत के सम्बन्ध भी मजबूत हुए हैं, जिसका नतीजा है कि कश्मीर मसले पर दुनियाभर के देशों ने भारत का साथ दिया. मोदी की अपील पर संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिवर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाने की स्वीकृति दी. इससे दुनियाभर में भारत व उसकी परम्परागत विरासत का मान-सम्मान बढ़ा.
भारत के प्रधानमंत्री देश, दशा, दिशा, लेखक रशीद किदवई, प्रकाशक- राजकमल प्रकाशन
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