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Friday, 22 November, 2024
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बाजार के हाल और मुद्रास्फीति ने भारतीयों को फिर से सोने का दीवाना बनाया, सरकार इसे रोकने के उपाय करे

शादियों और त्योहारों के मौसम में बढ़ने वाली मांग और ऊंची मुद्रास्फीति सोने के आयात को बढ़ावा दे रही है. बचत पर ब्याज दरों में गिरावट और इक्विटी मार्केट की समस्याएं इसमें और वृद्धि ला सकती है.

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इस साल अगस्त में भारत ने पिछले वर्ष की इसी अवधि के मुक़ाबले दोगुना ज्यादा सोना आयात किया. शादियों और त्योहारों के मौसम की मांग और ऊंची मुद्रास्फीति के कारण पिछले कुछ महीनों से इसके आयात में वृद्धि हो रही है, लेकिन बचत पर मिलने वाली ब्याज दरों में गिरावट और इक्विटी मार्केट में बढ़ती गर्मी आगामी महीनों में भी सोने को निवेश का एक अच्छा विकल्प बनाए रखेगी.

सोने का मोल

भारत में पूंजी पर नियंत्रणों के कारण सोना डॉलर वाली संपत्ति बन जाता है. विश्व बाज़ार में सोने की कीमत मूलतः डॉलर में आंकी जाती है. इसके अलावा, मुद्रा की कीमत अंततः घरेलू मुद्रास्फीति के हिसाब से घटती है. चूंकि कम परिवार ही डॉलर वाली संपत्ति खरीदने का वित्तीय साधन जुटा सकते हैं, इसलिए सोना उनके लिए सबसे अच्छा विकल्प है.

इसके अलावा, सोने से लगाव भी एक कारण है, जो शादियों और त्योहारों में उसकी खरीद को प्रोत्साहित करता है. कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण टाली गईं शादियों के चलते सोने की खरीद भी टाल दी गई थी इसलिए अब अगस्त में बड़ी खरीद हुई है.

लेकिन इस वृद्धि में केवल जेवर वाले पहलू का योगदान नहीं है. सोना वित्तीय निवेश का एक अहम साधन भी है, खासकर इसलिए कि ढीली-ढाली मुद्रा नीति के चलते दूसरे साधनों से लाभ घट गया है. पारंपरिक तौर से, लोग फिक्स्ड और निश्चित लाभ के लिए छोटी बचत के पीपीएफ, एनएससी, एससीएसएस, केवीपी जैसे साधनों पर भरोसा करते आए हैं. लेकिन पिछले दो वर्षों से इन योजनाओं में बचत में कमी आई है.

घरेलू सावधि जमा दरों में जनवरी 2019 से गिरावट होती आ रही है. ‘आउटस्टैंडिंग रुपी टर्म डिपॉजिट’ पर ब्याज मई 2019 में 6.89 प्रतिशत से घटकर मई 2021 में 5.32 प्रतिशत हो गया. डिपॉजिट रेट में गिरावट के कारण परिवारों ने बैंकों से पैसा निकालकर पूंजी बाज़ार जैसे साधनों में लगाना शुरू कर दिया. पारिवारिक वित्तीय बचत के जो अनुमान रिजर्व बैंक ने लगाए हैं वे बताते हैं कि जीडीपी में पारिवारिक वित्तीय बचत का अनुपात 2020-21 की तीसरी तिमाही में पिछले वर्ष की इसी तिमाही के मुक़ाबले 3 प्रतिशत की कमी आई है.


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बाज़ार का हाल

इसके साथ ही इक्विटी मार्केट नयी ऊंचाई छू रहा है इसलिए बचत में और बढ़त की उम्मीद कम है. सो, परिवार अपनी अतिरिक्त बचत की रकम शेयर बाज़ार में नहीं लगा सकते हैं. इसलिए शेयर बाज़ार में खुदरा भागीदारी हालांकि चालू वर्ष के पिछले कुछ महीनों में बढ़ी है लेकिन हाल में जारी आइपीओ में खुदरा निवेशकों की दिलचस्पी कम हुई है.

भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों में करीब 44.7 लाख खुदरा निवेशक शेयर बाज़ार से जुड़े हैं. खुदरा निवेशकों के इस तरह जुडने से आइपीओ को 100 गुना ज्यादा ग्राहक मिले. नतीजतन, सूचीबद्ध कंपनियों में खुदरा निवेशकों की होल्डिंग 7 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई. लेकिन रिकॉर्ड ग्राहकी के दौर के बाद खुदरा निवेशकों ने पिछले कुछ सप्ताह से इक्विटी मार्केट में ख़रीदारी की रफ्तार कम कर दी है. शेयर बाज़ार के ओवरवैलुएशन की आशंकाओं के बीच परिवार अपने पोर्टफोलियो को विस्तार देना पसंद कर सकते हैं.

मुद्रास्फीति का मामला

विभिन्न परिसंपत्तियों में सोना को मुद्रास्फीति से बचाव का बेहतर साधन माना जाता है. अध्ययन बताते हैं कि ऊंची और विस्फोटक मुद्रास्फीति के दौर में परिवार सोना ज्यादा खरीदने लगते हैं. यह उन्हें मुद्रास्फीति के मुक़ाबले ज्यादा लाभ देता है. मुद्रास्फीति के मौजूदा स्तर अपेक्षित 4 फीसदी की दर से ऊंचे हैं, जो कि रिजर्व बैंक का लक्ष्य है. इसके साथ, बैंक डिपॉजिट पर मामूली लाभ सोने से होने वाले लाभ को ज्यादा आकर्षक बना देता है.


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सोने का आयात बढ़ने पर सरकार ने आयात शुल्क बढ़ा दिया और कैपिटल कंट्रोल लागू कर दिया. अगस्त 2013 में जब मुद्रास्फीति दहाई अंक वाले आंकड़े में थी और सोनी की मांग बढ़ रही थी तब यूपीए सरकार ने सोने पर आयात शुल्क को 6 फीसदी से बढ़ाकर 10 फीसदी कर दिया था, कैपिटल कंट्रोल भी लागू कर दिया था.

सोने के आयात पर रोक लगाने के लिए सरकार ने 80:20 स्कीम शुरू की. इसके तहत आयातित सोने का 80 प्रतिशत हिस्सा देश के अंदर ही बेचा जा सकता था, 20 प्रतिशत हिस्से को निर्यात करना था.

इन उपायों से आयात तो घटा लेकिन घरेलू मांग में तेजी के कारण सोने की तस्करी और सर्कुलर ट्रेडिंग बढ़ गई. ‘सीएजी’ की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, इस स्कीम के कारण सरकारी खजाने को इ लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद नवंबर 2014 में इस स्कीम को रद्द कर दिया गया.

सरकार ने क्या किया, क्या करना चाहिए

मोदी सरकार ने भारतीय बाज़ार में सोने के आयात को रोकने और सोने की खरीद में खर्च होने वाले घरेलू बचत को वित्तीय बचत में बदलने के लिए 2015 में ‘सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड’ (एसजीबी) स्कीम शुरू की. एसजीबी ने उन निवेशकों के लिए एक विकल्प उपलब्ध कराया, जो सोने में निवेश तो करना चाहते हैं लेकिन सोना खरीदना नहीं चाहते. एसजीबी सोने के वजन (ग्राम में) के हिसाब से सरकारी प्रतिभूतियां हैं. उन्हें सोने की कीमत के मुताबिक बेंचमार्क किया जाता है.

बॉन्ड की अवधि आठ साल की है, जिस पर वार्षिक 2.5 प्रतिशत का ब्याज लगता है. एसजीबी निवेश का एक उत्तम साधन तो है लेकिन इसकी बिक्री एक अड़चन है. शेयर बाज़ार में इसकी बिक्री सीमित है क्योंकि इसके खरीदार बहुत नहीं हैं. सरकार ने इस स्कीम से अब तक 31,290 करोड़ रुपये हासिल किए हैं.

वित्तीय परिसंपत्ति के रूप में खरीदे जाने पर एसजीबी वही काम करते हैं जो सोना करता है, लेकिन इसे ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए इसे ज्यादा तरल बनाना होगा. भारतीय परिवारों को सोने की चकाचौंध से मुक्त करने के लिए सरकार आयात शुल्क बढ़ाने, रोक लगाने या कैपिटल कंट्रोल लागू करने की जगह सोने के सहारे चलने वाली तरल परिसंपत्तियां उपलब्ध कराए तो बेहतर होगा.

(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडे एनआईपीएफपी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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