नई दिल्ली: ये एक चार साल पुरानी पहेली है.
क्या रोटी और मालाबार पराठा खाने की बिल्कुल अलग-अलग चीज़ें हैं? और पापड़ तथा फ्रायम्स? या इडली-डोसा मिक्स पाउडर बनाम इसका तरल रूप, हालांकि ये सब हमारी प्लेट्स पर ही पहुंचते हैं और अच्छा भोजन बनते हैं?
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो निर्माताओं, खुदरा विक्रेताओं और उपभोक्ताओं के सामने समान रूप से खड़े हैं, जब से जुलाई 2017 में भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) शुरू किया गया और इसका कारण ये है कि इन पर और दूसरी बहुत सी चीज़ों पर अलग-अलग दरों पर टैक्स लगाया जाता है भले ही उनमें भारी समानता हो.
जीएसटी के अंतर्गत अलग-अलग टैक्स दरों ने, जिसे शुरू में एक साफ-सुथरी और सरल कर प्रणाली के तौर पर परिकल्पित किया गया था, ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जिसमें अलग-अलग व्याख्याएं होने लगी हैं. कंपनियां लगातार अपने उत्पादों को कम टैक्स दरों वाले स्लैब्स में रखने की कोशिश करती हैं और कर अधिकारी ऐसे दावों के जवाब में, उन उत्पाद पर ऊंची टैक्स दरों की बात करते हैं.
इसका परिणाम ये हुआ है कि लागू होने के चार साल के भीतर, जीएसटी को लेकर काफी संख्या में विवाद देखे गए हैं.
वित्त मंत्रालय के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 1 मार्च 2021 तक विभिन्न अदलातों में ऐसे 4,600 से अधिक विवाद लंबित थे.
कर विशेषज्ञों और वकीलों का कहना है कि ये संभवत: तब तक चलता रहेगा, जब तक जीएसटी परिषद– निर्णय लेने वाली संघीय इकाई जिसमें केंद्र और राज्यों के वित्त मंत्री होते हैं- टैक्स स्लैब्स की मौजूदा संख्या छह- 0 प्रतिशत, 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत, 28 प्रतिशत, और 28 प्रतिशत प्लस सेस- से कम नहीं कर देती.
डिलॉयट इंडिया के पार्टनर एमएस मणि ने कहा, ‘जीएसटी व्यवस्था में बहुत सारी दरों और मौजूदा छूट के कारण, वर्गीकरण से जुड़े विवाद खड़े हो गए हैं’. उन्होंने कहा कि व्यवसाय छूट या नीची दरों वाले स्लैब्स में रहना पसंद करते हैं, क्योंकि जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर है, जो वस्तु के दाम में जोड़ लिया जाता है.
उन्होंने आगे कहा, ‘चूंकि उत्पाद में नवीनता कर वर्गीकरण/कर की दरों आदि में हुए बदलावों से आगे बनी रहेगी, इसलिए आवश्यक है कि किसी भी संभावित विसंगति के जल्द निपटारे के लिए, व्यवसायों को किसी भी तरह बाधित किए बिना एक फ्रेमवर्क तैयार किया जाए और जहां तक संभव हो मुकदमेबाज़ी से बचा जाए. अगले कुछ सालों में जीएसटी स्लैब्स की संख्या में कमी देखने को मिलेगी और मौजूदा उत्पादों पर अधिक स्पष्टता मिलेगी, इसलिए समय के साथ वर्गीकरण विवादों में कमी आनी चाहिए’.
यह भी पढ़ें: ई-कॉमर्स के कड़े ड्राफ्ट नियम उपभोक्ताओं के हित में नहीं: सर्वे
वर्गीकृत करना मुश्किल?
पिछले कुछ महीनों से जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाने की संभावना बनी हुई है, जिसमें प्रस्ताव है कि कम से कम 12 प्रतिशत और 18 प्रतिशत टैक्स स्लैब वाली दरों को मिलाकर एक कर दिया जाए. लेकिन जीएसटी परिषद ने अभी तक इस प्रस्ताव पर चर्चा करके उसे मंज़ूर नहीं किया है.
नांगिया एंडरसन एलएलपी की निदेशक, अप्रत्यक्ष कर, तनुश्री रॉय ने कहा, ‘वस्तुओं पर जीएसटी दरें उनके एचएसएन वर्गीकरण (छह अंकों के यूनिफॉर्म कोड) पर आधारित होती हैं, जिन्हें सभी देश इस्तेमाल करते हैं. लेकिन अलग-अलग विशेषताओं की इतनी सारी वस्तुएं होती हैं कि उन सभी का वर्गीकरण करके ये तय करना मुश्किल हो जाता है कि उनपर कौन सी दर लगाई जाएगी’.
रॉय ने कहा, ‘अलग-अलग दरों का फायदा उठाने के लिए व्यवसायी अपनी वस्तुओं को निचली दरों के वर्ग में रखने की कोशिश करते है. इसी तरह राजस्व विभाग की अपनी अलग व्याख्या होती है कि किस चीज़ पर किस दर से कर लगाया जाए’.
और इसलिए इसमें कोई हैरानी नहीं है कि दरें इस आधार पर अलग-अलग हो जाती हैं कि अलग-अलग अदालतें पेश की गई वस्तुओं की कैसे व्याख्या करती हैं. मसलन, इडली-डोसा मिक्स तरल बैटर पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगाया जाता है, जबकि इडली-डोसा मिक्स के सूखे पाउडर पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है, भले ही अंतिम उत्पाद एक ही हो.
अभी भी स्पष्ट नहीं है कि क्या फ्रायम्स पर 18 प्रतिशत की ऊंची दर पर जीएसटी लगना चाहिए या फिर पापड़ की तरह इसे कर मुक्त कर देना चाहिए.
इसी सप्ताह, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड को मजबूरन स्पष्ट करना पड़ा कि पापड़ जीएसटी से मुक्त हैं भले ही उनका आकार कुछ भी हो.
Papad, by whatever name known, is exempt from GST vide Entry No. 96 of GST notification No.2/2017-CT(R). This entry does not distinguish based on the shape of papad. This notification is available at https://t.co/ckIfjzg8hw https://t.co/19GbQJvYZe
— CBIC (@cbic_india) August 31, 2021
इसी तरह मालाबार पराठा, फ्लेवर्ड मिल्क और पॉपकॉर्न जैसी वस्तुओं पर भी कर की दरों को लेकर इसी तरह का भ्रम बना हुआ है.
लॉ फर्म खेतान एंड को. के पार्टनर अभिषेक रस्तोगी ने कहा, ‘जीएसटी का उद्देश्य ऐसी वस्तुओं के वर्गीकरण विवाद कम करना था, जिनके बीच ज़्यादा अंतर नहीं होता. इन्हें कम करने का एकमात्र उपाय ये है कि दरों और वस्तुओं का विलय कर दिया जाए’.
रॉय ने इस ओर भी ध्यान आकृष्ट किया कि सेवाओं पर जीएसटी लगाने में भी वर्गीकरण की समस्याएं पेश आती हैं.
उन्होंने कहा, ‘मसलन, पट्टे पर देने और किराए पर देने पर लगे जीएसटी में काफी कनफ्यूज़न पैदा होता है. लेकिन ये मसला चलता रहेगा, क्योंकि व्यवहारिक रूप से ये संभव नहीं है कि सभी वस्तुओं और उनकी टैक्स दरों की एक विस्तृत सूची उपलब्ध कराई जाए’.
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: मैरिटल रेप को अपराध बनाने का समय आ गया है, SC और मोदी सरकार इसे ज्यादा दिन नहीं टाल सकती