नई दिल्ली: वैज्ञानिकों ने ऐसी महिलाओं की संख्या में ‘चिंताजनक’ वृद्धि देखी है, जिनमें हृदय रोगों के जोखिम के ग़ैर-पारंपरिक कारक देखने में आ रहे हैं, जैसे काम का तनाव, अनियमित नींद और थकावट आदि.
स्विटज़रलैण्ड में की गई इस रिसर्च में दावा किया गया है, कि संयोगवश ये इज़ाफा पूरा समय काम करने वाली महिलाओं की, बढ़ती संख्या के साथ देखा जा रहा है.
स्टडी के लिए, जिसे यूरोपियन स्ट्रोक ऑर्गनाइज़ेशन (ईएसओ) कॉन्फ्रेंस में पेश किया गया, रिसर्चर्स ने वर्ष 2007, 2012, और 2017 में, स्विटज़रलैण्ड में 22,000 पुरुषों और महिलाओं का डेटा जमा किया.
यूनिवर्सिटी अस्पताल ज़्यूरिख़ के रिसर्चर्स ने पता लगाया, कि कुल मिलाकर काम को लेकर तनाव में रहने वाले लोगों की संख्या, 2012 में 59 प्रतिशत से बढ़कर 2017 में 66 प्रतिशत पहुंच गई.
स्टडी में कहा गया है कि ये प्रवृत्ति संयोगवश, पूरे समय काम करने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या से मेल खाती है- जो 2007 में 38 प्रतिशत से बढ़कर, 2017 में 44 प्रतिशत हो गई.
स्टडी के अनुसार, दस साल की अवधि में थकावट की शिकायत करने वालों की संख्या, 2007 में 23 प्रतिशत से बढ़कर, 2017 में 29 प्रतिशत हो गई थी.
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इसी अवधि में, अनियमित नींद की शिकायत करने वाले प्रतिभागियों की संख्या, 24 प्रतिशत से बढ़कर 29 प्रतिशत हो गई, जिसमें महिलाओं के अंदर नींद की गंभीर समस्या (8 प्रतिशत), पुरुषों (5 प्रतिशत) के मुक़ाबले ज़्यादा तेज़ी से बढ़ी थी.
पारंपरिक कारक स्थिर रहे
शोधकर्त्ताओं ने ये भी पाया कि दिल की बीमारियां पैदा करने वाले पारंपरिक कारक, उसी 10 वर्ष की अवधि में स्थिर बने रहे थे, जिसमें 27 प्रतिशत को हाइपरटेंशन की शिकायत थी, 18 प्रतिशत का कॉलिस्ट्रॉल बढ़ा हुआ था, और 5 प्रतिशत को डायबिटीज़ थी.
मोटापा बढ़कर 11 प्रतिशत हो गया, और स्मोकिंग लगभग 10.5 सिगरेट प्रतिदिन से घटकर 9.5 प्रतिदिन पर आ गई, लेकिन ये दोनों ही चीज़ें पुरुषों में ज़्यादा प्रचलित थीं.
यूनिवर्सिटी अस्पताल ज़्यूरिख़ के शोधकर्त्ताओं ने एक बयान में कहा, ‘हमारी स्टडी में पता चला कि पुरुषों में, धूम्रपान करने और मोटा होने की प्रवृत्ति, महिलाओं की अपेक्षा अधिक थी, लेकिन महिलाओं में हार्ट अटैक्स और स्ट्रोक्स लाने वाले, ग़ैर-पारंपरिक कारकों में ज़्यादा वृद्धि देखी गई, जैसे काम का तनाव, अनियमित नींद और थकावट आदि’.
उन्होंने आगे कहा, ‘इत्तेफाक़ से ये इज़ाफा पूरे समय काम करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ने के साथ हुआ है. काम और घरेलू ज़िम्मेदारियां या दूसरी सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं को एक साथ संभालना, एक कारक हो सकता है और साथ ही महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी विशेष ज़रूरतें भी एक कारक हैं, जिनका हमारे रोज़मर्रा के ‘व्यस्त’ जीवन में कोई हिसाब नहीं रखा जाता’.
ह्रदय रोगों का जोखिम बढ़ाने वाले ग़ैर-पारंपरिक कारक
ज़्यूरिख़ यूनिवर्सिटी में न्यूरॉलजी की प्रोफेसर और स्टडी के लेखकों में से एक, सुज़ेन वेगनेर के अनुसार, डायबिटीज़, धमनियों में उच्च रक्तचाप, बढ़ा हुआ कॉलेस्ट्रॉल, धूम्रपान, मोटापा और शारीरिक निष्क्रियता, ह्रदय रोगों का जोखिम बढ़ाने वाले परिवर्तनीय कारक माने गए हैं.
लेकिन हाल ही में देखा गया है, कि काम के तनाव और नींद की समस्या जैसे ग़ैर-पारंपरिक कारक भी, ह्रदय रोगों का जोखिम बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं.
बयान में वेगेनर ने कहा, ‘डेटा से पता चलता है कि ह्रदय रोगों के जोखिम के पीछे बहुत तरह के कारक सामने आए हैं, और ये आधिकारिक रूप से माने गए चिकित्सकीय कारकों से आगे के हैं, और इनका संबंध सामाजिक दबावों से होता है. इससे हार्ट अटैक्स और स्ट्रोक्स की रोकथाम की बेहतर रणनीतियां बनाने में सहायता मिलेगी’.
उन्होंने आगे कहा, ‘पारंपरिक रूप से माना जाता है, कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में हार्ट अटैक्स और स्ट्रोक्स की प्रवृत्ति ज़्यादा होती है, लेकिन कुछ देशों में महिलाएं पुरुषों से आगे निकल गईं हैं. इसमें जेंडर का अंतर है जिसका कारण जानने के लिए, आगे शोध की ज़रूरत है’.
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