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Saturday, 23 November, 2024
होमएजुकेशन53% भारतीय अभिभावक बच्चों को फिर स्कूल भेजने के इच्छुक, सर्वे में जून के 20% की तुलना में बढ़ा आंकड़ा

53% भारतीय अभिभावक बच्चों को फिर स्कूल भेजने के इच्छुक, सर्वे में जून के 20% की तुलना में बढ़ा आंकड़ा

लोकल सर्किल की तरफ से किए गए एक सर्वे के मुताबिक, अपने बच्चों को स्कूल भेजने में हिचकिचाने वाले अभिभावकों की संख्या जून में 76 प्रतिशत की तुलना में घटकर अगस्त में 44 प्रतिशत रह गई है.

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नई दिल्ली: लोकल सर्किल की तरफ से हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि देश में लगभग 53 प्रतिशत अभिभावक अगस्त या सितंबर में स्कूल फिर से खोले जाने के पक्ष में हैं, जबकि 44 प्रतिशत इसके खिलाफ हैं.

यह निष्कर्ष इसके जून के सर्वेक्षण के एकदम विपरीत है, जब 76 फीसदी माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते थे, जो आंकड़ा पिछले दो महीनों में लगभग 30 फीसदी घट गया है, और तब केवल 20 फीसदी अभिभावक चाहते थे कि स्कूल जुलाई 2021 तक खुल जाएं.

लोकल सर्किल शासन, सार्वजनिक और उपभोक्ता हितों से जुड़े मुद्दों पर सर्वेक्षण का एक मंच है.

अपने ताजा सर्वेक्षण, जिसके नतीजे मंगलवार को जारी किए गए, में लोकल सर्किल ने कहा कि उसे भारत के 378 जिलों में रहने वाले 24,000 अभिभावकों की तरफ से 47,000 से अधिक प्रतिक्रियाएं मिली हैं. प्रतिभागियों में लगभग 66 प्रतिशत पुरुष थे जबकि 34 प्रतिशत महिलाएं थीं.

सर्वे में यह भी पाया गया कि माता-पिता चाहते हैं कि स्थानीय प्रशासन स्कूल के शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों का टीकाकरण कराए.

रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘सर्वेक्षण ने माता-पिता से इस पर राय मांगी गई थी कि क्या राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अगस्त और सितंबर में जिला प्रशासन स्कूलों में या उनके नजदीक मुफ्त टीकाकरण शिविर लगाएं ताकि सभी स्कूल कर्मचारियों को प्राथमिकता के आधार पर टीका लग सके. इसके जवाब में सर्वेक्षण में शामिल 89 फीसदी अभिभावकों में से अधिकांश ने ‘हां’ कहा.’

इसमें अमेरिकन कॉन्फ्रेंस ऑफ गवर्नमेंट इंडस्ट्रियल हाइजीनिस्ट्स (एसीजीआईएच) की तरफ से जारी किए गए डाटा का हवाला भी दिया गया जो यह संकेत देता है कि मास्क (एन 95) लगाने के साथ छह फीट की दूरी बनाए रखने वाले लोगों के बीच संक्रमण फैलने के लिए 677 घंटे की जरूरत होती है.

स्कूलों के संदर्भ में इसमें आगे जोड़ा गया, ‘जहां तक स्कूलों की बात है तो यदि एन-95 मास्क अनिवार्य कर दिए गए हों और स्कूल की अवधि दिन में बिना किसी ब्रेक या लंच ब्रेक के 3 घंटे तक सीमित रहे और छह फीट की सामाजिक दूरी का पूरी तरह पालन किया जाए तो संक्रमण की संभावना ना के बराबर हो जाती है.’


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रैपिड एंटीजन टेस्ट किट उपलब्ध होनी चाहिए

इन निष्कर्षों के अलावा, बड़े पैमाने पर 74 फीसदी माता-पिता यह भी मानते हैं कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिला प्रशासन नियमित रूप से रैंडम टेस्ट के लिए स्कूलों को आरएटी किट मुहैया कराए.

सर्वेक्षण में कहा गया है, ‘स्कूलों में रैंडम रैपिड एंटीजन टेस्ट ऐसा है जिसकी सिफारिश स्कूल फिर से खोलने के संदर्भ में दुनियाभर के विशेषज्ञ कर रहे हैं. क्योंकि अगर किसी कर्मचारी या किसी छात्र में मामूली लक्षण—सिर दर्द, गंध और स्वाद का पता न चलना, नाक बंद होना या बहना, खांसी, मांसपेशियों में दर्द, गले में खराश, बुखार, दस्त और सांस लेने में कठिनाई आदि—भी नजर आएं तो उनके एंटीजन टेस्ट के जरिये तुरंत यह पता लगाया जा सकेगा कि कहीं कोविड तो नहीं है.’

चूंकि, देश में कोविड के मामलों में पीक के दौरान वाले महीनों मई और जून की तुलना में लगातार कमी बनी हुई है, इसलिए कई राज्य सरकारों ने स्कूल खोलने का फैसला कर लिया है.

इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी और लर्निंग डिवाइस उपलब्ध न हो पाने के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में तमाम बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल होने में असमर्थ थे.

ओडिशा में जहां कक्षा 10 और 12 के लिए स्कूल 26 जुलाई से फिर खुल गए, वहीं कर्नाटक ने 25 अगस्त से कक्षा 9 से 12 तक के बच्चों के लिए स्कूलों को फिर से खोलने की घोषणा की है.

छत्तीसगढ़ ने कक्षा 10 और 12 के लिए 2 अगस्त से स्कूल 50 प्रतिशत क्षमता के साथ फिर से खोल दिए हैं.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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