देहरादून: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि हमेशा अपनी सरकार के अच्छे कार्यों के लिए उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना मिलती थी, और उन्हें नहीं पता कि उन्हें इस साल 9 अप्रैल को पद से क्यों हटाया गया.
रावत ने कहा कि हालांकि उन्हें हटाए जाने का फैसला असामयिक था, लेकिन यह पार्टी का निर्णय था और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीबी माने जाने वाले भाजपा नेता रावत ने 2017 में राज्य चुनावों में भाजपा की प्रचंड जीत—जब पार्टी ने 70 सदस्यीय विधानसभा में 57 सीटें जीतीं—के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी.
लेकिन चार साल बाद पार्टी ने कथित तौर पर उनकी सरकार के ‘खराब-प्रदर्शन’ के कारण रावत को पद छोड़ने के लिए कह दिया गया. तभी से ऐसी अटकलें लग रही थीं कि भाजपा उत्तराखंड में 2022 के विधानसभा चुनावों में ‘नए चेहरे’ के साथ मैदान में उतरना चाहती है.
रावत के बाद कुर्सी संभालने वाले लोकसभा सांसद तीरथ सिंह रावत भी सरकार में अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर सके, और शपथ लेने के तीन महीने के भीतर ही जुलाई में पुष्कर सिंह धामी को उनकी जगह मुख्यमंत्री बना दिया गया.
हालांकि, रावत ने तीरथ सिंह को हटाए जाने के बारे में टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि उन्हें पद छोड़ने के लिए क्यों कहा गया था.’ बहरहाल, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनकी सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा नेतृत्व की उम्मीदों पर खरी उतरी है.
पूर्व मुख्यमंत्री ने पिछले महीने धामी सरकार की तरफ से उठाए गए उस कदम का भी विरोध किया जिसमें दिसंबर 2019 में रावत सरकार की तरफ से बनाए गए और 15 जनवरी 2020 को गठित उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड की समीक्षा का फैसला किया गया है.
उन्होंने कहा कि पंडितों और पुरोहितों का एक छोटा-सा समूह इसका विरोध कर रहा है, जिनके अपने निहित स्वार्थ हैं, जबकि धर्म स्थल बोर्ड दुनिया भर में पूरे हिंदू समुदाय की जरूरतों को पूरा करता है.
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‘प्रधानमंत्री ने हमेशा सराहना की’
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटाए जाने के फैसले को ‘असामयिक’ बताया और कहा कि ‘इसे किसी भी तरह एक सही निर्णय नहीं कहा जा सकता.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन कई बार मौजूदा परिस्थितियों के नतीजे ऐसे फैसलों के तौर पर ही सामने आते हैं और नेतृत्व को संगठन के हित में इन्हें लेना पड़ता है. यह मेरे लिए हैरान करने वाला फैसला था लेकिन पार्टी ने आगे संगठनात्मक सुधारों और मजबूती के साथ कुछ लक्ष्यों को ध्यान में रखकर यह निर्णय लिया होगा.’
उन्होंने कहा, ‘हालांकि मुझे पार्टी की तरफ से अचानक हटाए जाने के फैसले के बारे में पता नहीं था, लेकिन ऐसा आभास हो रहा था कि दिल्ली में कुछ चल रहा है. फिर भी, जब मुझे बताया गया तो मैंने ये सोचकर निर्णय स्वीकार कर लिया कि यह कदम पार्टी के हित में उठाया गया है और कुछ और संगठनात्मक सुधारों की शुरुआत है.’
रावत ने दावा किया कि प्रधानमंत्री ने हमेशा उनकी सरकार के कार्यों की प्रशंसा की है, खासकर बेहद थकाऊ और हाड़ कंपा देने वाले मौसम की स्थितियों के बीच केदारनाथ मंदिर क्षेत्र—केदारपुरी—के पुनर्निर्माण के लिए. सर्दियों में भी यह काम जारी था जब क्षेत्र में जलवायु की स्थिति बहुत कठोर होती है.
2013 की बाढ़, जिसने उत्तराखंड में अत्यधिक तबाही मचाई थी, के बाद केदारपुरी का पुनर्निर्माण पीएम मोदी के सबसे पसंदीदा प्रोजेक्ट में एक रहा है. 2014 में सत्ता में आने के बाद से वह खुद परियोजना पर नजर रखे थे और उत्तराखंड सरकार से सात साल से अधिक समय से लगातार चल रहे केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यों पर अपडेट मांगा था.
रावत से जब यह पूछा गया कि क्या मोदी उनके कार्यकाल के दौरान सरकार के प्रदर्शन से नाखुश हैं, तो उनका कहना था, ‘जिस तरह से हमने केदारनाथ के पुनर्निर्माण और राज्य में सार्वजनिक योजनाए लागू करने की चुनौतियों का सामना किया, उसके लिए प्रधानमंत्री ने हमेशा मेरी सरकार की सराहना की है.’
उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री हिमालय में 11,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित मंदिर में साल भर चलने वाले काम में आने वाली कठिनाइयों से अच्छी तरह वाकिफ हैं. उन्होंने कुछ दिनों पहले अपनी आखिरी मुलाकात में भी मेरी सरकार की सराहना की और इस पर भी चर्चा की कि भाजपा कैसे 2022 में (उत्तराखंड में) सत्ता में वापसी कर सकती है.’
देवस्थानम बोर्ड की समीक्षा के धामी के फैसले के खिलाफ
रावत ने उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को लेकर विरोध और मौजूदा मुख्यमंत्री की तरफ से इसकी समीक्षा किए जाने के फैसले पर भी बात की.
उन्होंने कहा, ‘देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट, सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट और देश के अन्य हिस्सों से इसी तरह के संगठनों के बारे में गहन अध्ययन के बाद किया गया था. मुख्यमंत्री (धामी) खुद भी उस विधानसभा का हिस्सा थे जिसने इसे बनाया था.’
उन्होंने कहा, ‘पूरे बोर्ड की समीक्षा करने और उसे खत्म करने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि राज्य के अधिकांश लोगों ने इसका समर्थन किया है. केवल पुरोहितों का एक छोटा समूह इसका विरोध कर रहा है जिनके निहित स्वार्थ हैं. अगर सरकार को कोई प्रावधान अनुपयुक्त लगता है तो वह उसमें संशोधन कर सकती है, लेकिन इसे खत्म नहीं किया जा सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘यह बोर्ड दुनियाभर के 120 करोड़ से अधिक हिंदुओं की जरूरतों और मांगों को पूरा करने के लिए बनाया गया था, न कि अकेले उत्तराखंड की.’
उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन मुख्यत: राज्य के लगभग 53 मंदिरों की संपत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन की जिम्मेदारी संभालने के लिए किया गया था. इसमें गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ के प्रसिद्ध चार धाम मंदिर भी शामिल थे.
रावत सरकार के इस कदम का चार धाम मंदिरों के पंडितों और पुरोहितों ने समर्थन नहीं किया, जो अब इस बोर्ड को खत्म करने की मांग कर रहे हैं. उन्होंने बोर्ड को मंदिरों के धार्मिक कामकाज में सरकार का दखल करार दिया है. धामी सरकार ने पिछले महीने कहा था कि राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी बोर्ड की समीक्षा करेगी.
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