लखनऊ: अभी कुछ समय पहले तक उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण उपेक्षा और उत्पीड़न की शिकायत कर रहे थे. समुदाय के नेताओं की तरफ से दावा किया जा रहा था कि यूपी में भाजपा के चार साल के शासन के दौरान दर्जनों ब्राह्मण मारे गए है. यहां तक कि एनकाउंटर में गैंगस्टर विकास दुबे के मारे जाने ने भी जाति का रंग ले लिया था.
लेकिन राज्य में विधानसभा चुनाव से मात्र सात महीने पहले ब्राह्मण अचानक सबसे अधिक अहमियत पाने वाला समुदाय बन गया है.
बहुजन समाज पार्टी ब्राह्मण सम्मेलन कर रही है. समाजवादी पार्टी कई जिलों में प्रबुद्ध सम्मेलन (मुख्यत: ब्राह्मणों पर केंद्रित) आयोजित करने की तैयारी में जुटी है.
कांग्रेस किसी ब्राह्मण को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करने का विकल्प तलाश रही है. और भाजपा एक प्रमुख ब्राह्मण नेता जितिन प्रसाद को पहले ही अपने खेमे में शामिल कर चुकी है, जो कथित अत्याचारों के विरोध में समुदाय को लामबंद कर रहे थे.
तो ब्राह्मणों के लिए इतना कुछ अचानक क्यों बदल गया? कारण साफ है. वे राज्य की आबादी का लगभग 12 प्रतिशत हिस्सा हैं और कई विधानसभा क्षेत्रों में तो उनका वोट शेयर 20 प्रतिशत से अधिक है.
सरकार आलोचनाओं के घेरे में
2017 के बाद से ही ब्राह्मण समुदाय के अंदर यह आवाज तेजी से उठने लगी थी कि वह उत्तर प्रदेश में अपना दबदबा खो रहा है और योगी आदित्यनाथ सरकार की तरफ से उसे दरकिनार किया जा रहा है.
2020 में गैंगस्टर विकास दुबे के पुलिस ‘एनकाउंटरट’ में मारे जाने के बाद यह सुगबुगाहट और तेज हो गई.
कई ब्राह्मण संगठनों की तरफ से मुठभेड़ की निंदा की गई और मामले की निष्पक्ष जांच की अपील की गई.
अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा (आर) के अध्यक्ष राजेंद्र नाथ त्रिपाठी का दावा है कि पिछले चार वर्षों में आदित्यनाथ सरकार के दौरान 500 से अधिक ब्राह्मण मारे गए हैं.
त्रिपाठी ने दिप्रिंट को बताया कि पिछली सरकारों के समय में भी ब्राह्मणों के खिलाफ हिंसा हुई है लेकिन ‘यह सरकार आने के बाद ऐसी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं.’
उन्होंने कहा, ‘ब्राह्मणों के गुस्से का मुख्य कारण यही है.’
जुलाई 2020 में तत्कालीन कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद ने ब्राह्मण के अधिकारों की रक्षा के लिए ब्राह्मण चेतना परिषद का गठन किया था. इसके बाद अक्टूबर 2020 में उन्होंने ‘ब्राह्मण चेतना परिषद’ के तहत हर जिले में ‘टी-20’ टीम बनाने के फैसले की घोषणा की थी, ताकि कानूनी लड़ाई लड़ने वाले समुदाय के लोगों को सहायता दी जा सके.
ब्राह्मणों की बेचैनी का एक और बड़ा कारण योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में राजनीति में समुदाय का घटता प्रभाव भी है.
यूपी में 53 सदस्यीय कैबिनेट में नौ ब्राह्मण हैं, लेकिन केवल दिनेश शर्मा, श्रीकांत शर्मा और ब्रजेश पाठक के पास महत्वपूर्ण विभाग हैं, जो कि क्रमशः माध्यमिक और उच्च शिक्षा, ऊर्जा और विधि विभाग संभालते हैं.
अन्य सभी राज्य मंत्री हैं—राम राम नरेश अग्निहोत्री (आबकारी), नीलकंठ तिवारी (पर्यटन और संस्कृति, स्वतंत्र प्रभार), सतीश द्विवेदी (बुनियादी शिक्षा), अनिल शर्मा (वन, पर्यावरण), चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय (लोक निर्माण), और आनंद स्वरूप शुक्ला (ग्रामीण विकास).
इनमें से कोई भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का करीबी नहीं माना जाता है.
भाजपा के एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘यह सच है कि ब्राह्मणों के एक वर्ग को महसूस होता है कि इस शासन में उनकी उपेक्षा हो रही है, खासकर ब्राह्मणों के उस वर्ग को जो राजनीति को अच्छी तरह समझते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘वे बेहतर विकल्पों की तलाश में हैं और हमें उनको रोकने के लिए खासे प्रयास करने होंगे. मुझे उम्मीद है कि पार्टी इसकी कोशिश करेगी और टिकट वितरण के समय इस बात को भी ध्यान में रखेगी. अगर ब्राह्मण वोट बंट गए तो फिर इतने बड़े बहुमत से जीतना आसान नहीं होगा.
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विपक्ष की कवायदें
विपक्ष सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ ब्राह्मणों की नाराजगी का फायदा उठाने की कोशिश में जुटा है. राजनीतिक पार्टियों ने लगातार योगी सरकार को ‘ब्राह्मण विरोधी’ दर्शाने के प्रयास किए हैं.
बसपा प्रमुख मायावती ने हाल में इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ भाजपा पर हमला करते हुए आरोप लगाया कि 2017 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण समुदाय के वोटों की मदद से जीत हासिल करने बाद ‘इसकी उपेक्षा और शोषण’ किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने ब्राह्मणों के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन इस समुदाय के कल्याण के लिए काम करने के बजाये उन पर अत्याचार किया जा रहा है. उन्हें परेशान किया जा रहा है और उनका शोषण हो रहा है और वे भाजपा को अपना समर्थन देने पर पछता रहे हैं. इसलिए ब्राह्मण समाज की जागरूकता के लिए बसपा अब एक बार फिर सम्मेलन करने जा रही है.’
समाजवादी पार्टी के विधायक मनोज पांडे ने दिप्रिंट से कहा कि योगी सरकार में ब्राह्मणों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व भी नहीं मिला है.
उन्होंने दावा किया, ‘इस शासन के दौरान ब्राह्मणों ने बहुत अत्याचारों का सामना किया है. कोई बड़ा राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिला नहीं और हत्या और मुठभेड़ों के भी शिकार बने. ब्राह्मणों का एक बड़ा वर्ग समाजवादी पार्टी को वोट देगा.’
उन्होंने बताया, ‘हम प्रबुद्ध जन सम्मेलन करने जा रहे हैं जिसकी शुरुआत 23 अगस्त को बलिया से होगी. हम अन्य जिलों में भी ऐसे सम्मेलन आयोजित करेंगे. यह पहली बार नहीं है जब हम इस तरह के सम्मेलन करने रहे हैं. मैं खुद 1997 से इनका आयोजन कर रहा हूं.’
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने अन्य दलों पर ब्राह्मणों के प्रति महज सांकेतिक राजनीति करने का आरोप लगाया.
उन्होंने सवाल उठाया, ‘भाजपा ने ब्राह्मणों के लिए क्या किया? बसपा ने क्या किया? क्या उन्होंने अब तक ब्राह्मण मुख्यमंत्री नियुक्त किया है?’ साथ ही जोड़ा, ‘यह एकमात्र कांग्रेस पार्टी ही है जिसने कमलापति त्रिपाठी और एनडी तिवारी सहित छह ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिए हैं.’
यूपी कांग्रेस के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी जल्द ही विधानसभा चुनावों के लिए अपनी प्रचार समिति के प्रमुख के रूप में किसी ब्राह्मण चेहरे की घोषणा कर सकती है.
विपक्षी धारणा का विरोध करते हुए यूपी भाजपा के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने दिप्रिंट को बताया कि सपा और बसपा दोनों जाति-आधारित दल हैं.
उन्होंने कहा, ‘वे हमेशा जाति और तुष्टीकरण की राजनीति करते हैं. भाजपा विकास की राजनीति करती है. उत्तर प्रदेश के लोग, खासकर प्रबुद्ध माने जाने वाले ब्राह्मण समुदाय, जाति की राजनीति के फेर में नहीं पड़ने वाला है और राज्य के विकास और भविष्य पर ध्यान देगा. इस बार कोई भी समुदाय विपक्ष के झांसे में नहीं आएगा.
ब्राह्मण वोट की अहमियत
यूपी में ब्राह्मण समुदाय की हिस्सेदारी राज्य की आबादी में 10-12 प्रतिशत के बीच हैं और कई विधानसभा क्षेत्रों में इसका वोट शेयर 20 फीसदी से अधिक है.
यूपी के कई ब्राह्मण संगठनों का दावा है कि अगर त्यागी और भूमिहारों को जोड़ लिया जाए तो राज्य में ब्राह्मणों की आबादी और भी बढ़ जाती है.
अखिल भारतीय ब्राह्मण संगठन महासंघ के अध्यक्ष असीम पांडे ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य में ब्राह्मण 13 प्रतिशत से ऊपर हैं और एक सबसे प्रभावशाली जाति में शुमार हैं.
उन्होंने कहा, ‘ब्राह्मण सत्ता बनाता है, गिराता है यूपी में. ये चुनावी इतिहास रहा है यूपी का.’
दिल्ली स्थित सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) की तरफ से किए गए विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि 2017 के विधानसभा चुनावों में ब्राह्मण वोटों ने भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
सीएसडीएस के मुताबिक, 2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में क्रमश: 40 और 38 फीसदी ब्राह्मणों ने भाजपा को वोट दिया था. लेकिन 2017 में समुदाय के 80 फीसदी वोट इसी पार्टी को मिले.
इन अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में जब सपा और बसपा ने हाथ मिलाया, तो वो ब्राह्मण वोट-बैंक ही था जिसने भाजपा की सफलता सुनिश्चित की. पार्टी ने 70 में से 62 सीटों पर जीत हासिल की थी.
रिटायर्ड प्रो. आशुतोष मिश्रा ने कहा कि बेचैनी के बावजूद विपक्ष के लिए ब्राह्मणों को भाजपा से दूर कर पाना मुश्किल होगा.
मिश्रा ने कहा, ‘ब्राह्मण राज्य में एक महत्वपूर्ण वोटबैंक हैं, लेकिन उनके लिए इस मोदी-योगी युग में हिन्दुत्व फैक्टर सबसे ज्यादा मायने रखता हैं. वास्तव में, केवल ब्राह्मण ही नहीं बल्कि सभी उच्च जातियां अभी भी भाजपा के साथ हैं. हां, कोविड के कुप्रबंधन को लेकर गुस्सा है लेकिन उनके पास कोई अन्य राजनीतिक विकल्प भी नहीं है.
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