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Friday, 22 November, 2024
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मुद्रास्फीति के बीच अनियमित मानसून से शीर्ष उत्पादक राज्यों में अनाज, दलहन, तिलहन की बुवाई प्रभावित

कम बारिश ने मूंग, उड़द और सोयाबीन जैसी फसलों की बुवाई को प्रभावित किया है, जिसने उच्च कीमतों के कारण खाद्य मुद्रास्फीति सूचकांक को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है.

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नई दिल्ली: देश के विभिन्न हिस्सों में मानसून की बारिश औसत से कम रहने के कारण प्रमुख कृषि उत्पादक राज्यों में खरीफ फसलों की बुवाई बुरी तरह प्रभावित हुई है. इस कमी का सबसे ज्यादा असर दलहन और तिलहन की फसलों पर पड़ता दिख रहा है जो कि, जैसा पूर्व में ही बताया जा चुका है, इस साल रिकॉर्ड उच्च कीमतों के कारण खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि की वजह बनी हैं.

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 15 जुलाई तक खरीफ फसल के तहत कुल क्षेत्रफल 611.89 लाख हेक्टेयर (एलएचए) था, जो एक वर्ष पूर्व इसी अवधि में 691.93 एलएचए था, जो वार्षिक आधार पर तुलना में 11.5 प्रतिशत कम था.

गन्ना और जूट को छोड़कर सभी खरीफ फसलों जैसे चावल, दाल और मोटे अनाज का कवरेज पिछले साल की तुलना में कम है.

रकबे में सबसे ज्यादा गिरावट मोटे अनाज के मामले में आई है, जो 20.62 प्रतिशत घटा (115.07 एलएचए की तुलना में 91.34 एलएचए तक) है. तिलहन, कपास और दालों में क्रमश: 13.69 प्रतिशत, 12.94 प्रतिशत और 12.09 प्रतिशत की गिरावट नजर आई है. धान की फसल का रकबा भी 2020-21 में 174.77 एलएचए से सात प्रतिशत घटकर 2021-22 में 161.97 एलएचए रह गया है.

भारत में जुलाई के दूसरे और तीसरे सप्ताह के दौरान मानसून की प्रगति मोटे अनाज, दालों और तिलहनों की फसल के लिए बहुत अहम होती है, क्योंकि इसके अभाव में ये बड़े पैमाने पर असिंचित रह जाती हैं.

मंत्रालय के मुताबिक, देशभर में कुल बुवाई क्षेत्र का 51 फीसदी हिस्सा सिंचाई के लिहाज से वर्षा आधारित है और कुल खाद्य उत्पादन का करीब 40 प्रतिशत इसी में होता है.

किसानों पर मानसून की मार ऐसे समय पड़ी है जबकि एफएओ खाद्य मूल्य सूचकांक में तेज उछाल दर्ज किया गया है. मई में जारी आंकड़ों के मुताबिक, सूचकांक ने अक्टूबर 2010 के बाद से महीने-दर-महीने के लिहाज से सबसे बड़ा उछाल दर्ज किया है.

जून में जारी सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में खुदरा मुद्रास्फीति मई में 6 प्रतिशत से ऊपर पहुंच गई थी, जिसकी मुख्य वजह थी खाद्य तेल, मांस और मछली, अंडे और दालों की कीमतों में तेज वृद्धि. खाद्य तेल मुद्रास्फीति बढ़कर 30.8 प्रतिशत हो गई, जो इस उपसमूह में अब तक दर्ज की गई सबसे अधिक दर्ज वृद्धि है.


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मानसून फैक्टर

उपरोक्त फसलों में से अधिकांश की बुवाई अवधि काफी छोटी होती है— जून से जुलाई के तीसरे सप्ताह तक. हालांकि, धान की रोपाई पर मध्यम मानसून का बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता है, क्योंकि इस फसल के एक अहम हिस्से को अगस्त के दूसरे सप्ताह तक की अवधि में सिंचित होने का फायदा मिलता है.

पहले से ही मुद्रास्फीति बढ़ने का कारण बनी महत्वपूर्ण खरीफ फसलों के मौजूदा रकबे में गिरावट मुख्य तौर पर जून की दूसरी छमाही और इस महीने की शुरुआत में मानसून में कमी के कारण आई है.

भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक इस साल 14 जुलाई तक मानसून सामान्य से 5 फीसदी कम रहा है. यद्यपि बारिश में 5 प्रतिशत की कमी को सामान्य माना जाता है, लेकिन इसमें कमी वाले क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति भी काफी मायने रखती है.

इस साल कुछ राज्यों में सामान्य या अधिक बारिश हुई है. लेकिन कृषि के लिहाज से अहम माने जाने वाले गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में क्रमशः 34 प्रतिशत, 25 प्रतिशत, 24 प्रतिशत, 23 प्रतिशत, 17 प्रतिशत और 15 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है.

पिछले साल की तुलना में देश के प्रमुख जलाशयों में भी इस बार जल भंडारण कम है. केंद्रीय जल आयोग के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल के 62.13 बीसीएम के मुकाबले मौजूदा भंडारण 57.62 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) ही है.


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तिलहन

मानसून की कमी की मार झेल रहे गुजरात में मूंगफली की फसल के रकबे में भारी गिरावट दिखाई दी है, जिस फसल के मामले में यह राज्य देशभर में शीर्ष उत्पादक है.

गुजरात में मूंगफली का रकबा 2020-21 में 18.28 एलएचए से गिरकर 2021-22 में 15.40 एलएचए हो गया है.

जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है कि भारत के प्रमुख तिलहनों में से एक सोयाबीन का रकबा, इस फसल के शीर्ष उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में काफी गिरा है. एक अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान में इसका रकबा 9.23 एलएचए से गिरकर 5.55 एलएचए रह गया है.

सभी खरीफ फसलों में सबसे अधिक एमएसपी वाले तिलहन तिल का रकबा भी इसके प्रमुख उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में 1.19 एलएचए से घटकर 1.02 एलएचए हो गया है.


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दलहन

प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों मध्य प्रदेश और राजस्थान में बारिश की कमी के कारण कुछ प्रमुख दलहनों के रकबे में गिरावट देखी गई है. दालों की ऊंची कीमतों के कारण सरकार को स्टॉक-लिमिट लागू करने और मुक्त आयात खोलने को बाध्य होना पड़ा था.

राजस्थान में उड़द का रकबा 2.3 लाख हेक्टेयर से घटकर 0.94 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है. इसी तरह, मूंग का रकबा 11.17 लाख हेक्टेयर से गिरकर 7.45 लाख हेक्टेयर हो गया है. मध्य प्रदेश में भी उड़द का रकबा 11.42 एलएचए से घटकर 8.44 एलएचए रह गया है.

देश की प्रमुख नकद फसलों में से एक कपास के रकबे में भी दो अंकों की गिरावट देखी गई है जो 113.01 एलएचए से 98.38 एलएचए पर पहुंच गया है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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